History of Black Soya (Glycine max ), Bhatt in Uttarakhand context
उत्तराखंड परिपेक्ष में दालों /दलहन का इतिहास -भाग 9 History of Pulses Agriculture and food in Uttarakhand Part-9
उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --20
History of Gastronomy in Uttarakhand 20
जहां तक सोया का भारत में इतिहास का प्रश्न है , सोया इतिहास रिकॉर्ड करीब सत्तरहवीं सदी से मिलता है।
चीन में चीन में कृषि व औषधि जनक सम्राट शेन नंग से ह्सुरु हुआ। शेन नंग के समय 5000 साल पहले सोया का उल्लेख मिलता है ।
काला सोया भट्ट उत्तराखंड , नेपाल , आसाम, मणिपुर , नागा पहाड़ियों से लेकर बर्मा की हिमालयी पहाड़ियों में उगाया जता है। कहते हैं कि भट्ट या काला सोया भारत में बर्मा -आसाम के रास्ते प्रवेश हुआ.
जहां तक उत्तराखंड का प्रश्न है काला सोया या भट्ट सीधा तिब्बत से उत्तराखंड में आया होगा।
शायद भट्ट उत्तराखंड में दो हजार साल पहले ही आ गया होगा। चूंकि भट्ट या काला सोया का अधिक उपयोग नही होता रहा होगा कि भट्ट मैदानी पर्यटकों को भाये अत: भट्ट का उल्लेख साहित्य में नही मिलता।
क्किन्तु यह सत्य है कि उत्तराखंड की पहाड़ियों में प्रत्येक परिवार कम ही मात्रा सही किन्तु भट्ट या काला सोया उगाता था. भट्ट या काला सोया का मुख्य उपयोग भुने व उबले चबेना (बुखण /खाजा ) के रूप में अधिक होता रहा है और डुबकणी अथवा भटवणी के रूप में दाल के विकल्प के रूप में कुमाऊं में अधिक उपयोग होता रहा है। सर्दी -खांसी के समय मरीज को भुने भट्टों को गरम् गरम सुंघाया जाता था।
उत्तराखंड में इसका नाम भट्ट क्यों पड़ा शायद सोया के लिए कोई चीनी ध्वनिआत्मक शब्द रहा होगा और उसका परिवर्तन भट्ट में हुआ होगा।
चूंकि भारत के अन्य मैदानी भूभाग में भट्ट या काला सोया का आगमन 800 -900 साल पहले हुआ तो इसका संस्कृत साहित्य में कोई उल्लेख नही है और ना ही आइन -ए -अकबरी में उल्लेख मिलता है।
क्किन्तु यह सत्य है कि उत्तराखंड की पहाड़ियों में प्रत्येक परिवार कम ही मात्रा सही किन्तु भट्ट या काला सोया उगाता था. भट्ट या काला सोया का मुख्य उपयोग भुने व उबले चबेना (बुखण /खाजा ) के रूप में अधिक होता रहा है और डुबकणी अथवा भटवणी के रूप में दाल के विकल्प के रूप में कुमाऊं में अधिक उपयोग होता रहा है। सर्दी -खांसी के समय मरीज को भुने भट्टों को गरम् गरम सुंघाया जाता था।
उत्तराखंड में इसका नाम भट्ट क्यों पड़ा शायद सोया के लिए कोई चीनी ध्वनिआत्मक शब्द रहा होगा और उसका परिवर्तन भट्ट में हुआ होगा।
चूंकि भारत के अन्य मैदानी भूभाग में भट्ट या काला सोया का आगमन 800 -900 साल पहले हुआ तो इसका संस्कृत साहित्य में कोई उल्लेख नही है और ना ही आइन -ए -अकबरी में उल्लेख मिलता है।
बंगाल में भट्ट या काला सोया को गारी -कलाई , मध्य भारत में कुल्टी कहते हैं बाकी जगह भारत में सोयाबीन ही कहा जाता है। सिंहली भाषा में सोया को भटवान कहा जाता है।
1668 में जापान से बारह कीलो सोया -जल जहाज से मद्रास बंदरगाह आया था।
1677 /1681 में ब्रिटिश ईस्ट इन्डियन व्यापारियों ने सोया सूरत , श्री लंका के बंदरगाहों में मंगाया था।
रौक्सबर्ग (1832 ) ने बंगाल के बोटानिकल गार्डन में भट्ट या काला सोया उगने का उल्लेख किया है।
वाट (1889 ) ने उत्तराखंड , बंगाल व उत्तर पूर्वी हिमालयी पहाड़ियों में सोया कृषि का उल्लेख किया है और लिखा है कि सोया को हिन्दुस्तानी में भट कहते हैं।
1932 से ब्रिटिश राज में सोया की खेती पर विशेष ध्यान दिया गया।
1933 में बड़ोदा के महाराजा ने भट्ट लिए राजकीय घोषणा ही नही सोया उगाने के लिए प्रोत्साहन भी दिया।
1935 में महात्मा गांधी ने भी सोया में प्रोटीन की प्रचुरता के कारण सोया कृषि को प्रोत्साहित किया।
1960 से सोया कृषि को अधिक बल मिला और आज सोया भारत का एक महत्वपूर्ण भोजन बना गया है। मुंबई की परचून की आम दुकानों में पारम्परिक बड़िया नही मिलती हैं और सोया बड़ी ही मिलती हैं।
अब उत्तराखंड में सोया की नई वेराइटी (बड़ा व सुफेद -दाना ) की खेती भी होने लगी है।
कुमाउंनी या गढ़वाली बच्चों में क्वाशिओर्कोर (kwashiorkor ) बीमारी क्यों नही पायी जाती है ?
मै भट्ट , काला सोया के उत्तराखंड में इतिहास पर खोज था तो एक तथ्य सामने आया कि कुमाउनी बच्चों में क्वाशिओकोर नही पाई जाती। क्वाशिओकोर बच्चों में प्रोटीन की कमी से होती है। इस बीमारी से पैरों में सूजन , त्वचा का फटना , बाल गिरना आदि।
वैज्ञानिक हाइम्नोविट्ज (Hymnowitz ) 1969 में कुमाऊँ में भट या काला सोया के जर्मोप्लास्ट पर अन्वेषण कर रहे थे तो उन्होंने पाया कि भट्ट भोजन के कारण बच्चों में प्रोटीन के कमी नही होती और इस इलाके में क्वाशिओकोर बीमारी नही होती।
Copyright @ Bhishma Kukreti 24/9/2013
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