उत्तराखंड परिपेक्ष राजमा /लुब्या इतिहास
History of Pulses Agriculture and food in Uttarakhand Part-10
उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --21
History of Gastronomy in Uttarakhand 21
आलेख : भीष्म कुकरेती
Copyright @ Bhishma Kukreti 24/9/2013
References
Dr. Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand ka Itihas 1- 9 Parts
Dr K.K Nautiyal et all , Agriculture in Garhwal Himalayas in History of Agriculture in India page-159-170
Anup Mishra , Agriculture in Chalolithic Age in North-Central India
Chitranjan Kole , 2007 , Oilseeds
William Shurtleff , Akiko Aoyagi 2010, History of Soyabeans and Syfood in South Asia / Indian subcontinent (1665-)
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उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --21
History of Gastronomy in Uttarakhand 21
बीन्स या राजमा या लुब्या /छीमी 150 में उगाया जाता है जाता है ।
मध्य व लैटिन अमेरिका में लुब्या /राजमा या बीन्स का इतिहास 11000 पुराना है।
पेरू व मैक्सिको में किडनी बीन्स का कृषि इतिहास 7000 साल पुराना है।
पुरानी दुनिया को किडनी बीन्स /राजमा /लुब्या कोलम्बस अमेरिका की खोज के बाद ही पता चला।
स्पेनी घुमन्तु अन्वेषक किडनी बीन्स /राजमा /लुब्या को पन्द्रहवीं सदी में स्पेन लाये।
स्पेनी व पुर्तगाली व्यापारियों अफ्रिका व एसिया वासियों को किडनी बीन्स /राजमा /लुब्या का ज्ञान कराया।
स्पेनी व पुर्तगाली व्यापारियों अफ्रिका व एसिया वासियों को किडनी बीन्स /राजमा /लुब्या का ज्ञान कराया।
इसका अर्थ हुआ कि भारत में वास्को दा गामा के भारत आगमन (1498 AD एवं 1502 ) के बाद ही भारत में किडनी बीन्स /राजमा /लुब्या का प्रवेश हुआ होगा।
सबसे पहले किडनी बीन्स /राजमा /लुब्या का प्रवेश दक्षिण भारत में हुआ।
प्राचीन काल ही नही आज भी नये बीज को अनुकूलन में समय लगता है। अत किडनी बीन्स /राजमा /लुब्या को भारत में कृषि लायक होने में समय अवश्य लगा होगा।
धीरे धीरे यह पता लगा कि हिमालयी पहाड़ियाँ किडनी बीन्स /राजमा /लुब्या खेती के अनुकूल हैं।
इन तथ्यों से पता चलता है कि उत्तराखंड में सत्तरहवीं सदी से पहले किडनी बीन्स /राजमा /लुब्या नही आया होगा और फिर धीरे धीरेकिडनी बीन्स /राजमा /लुब्या खेती ने पग पसारे होंगे। इसका सीधा अर्थ थ हुआ कि अठारवीं सदी से ही किडनी बीन्स /राजमा /लुब्या खेती ने उत्तराखंड में प्रमुखता पाई होगी।
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कुछ क्षेत्रीय अपवाद छोड़कर स्वतन्त्रता से पहले किडनी बीन्स /राजमा /लुब्या गढ़वाल -कुमाऊं में प्रथम श्रेणी की दाल नही मानी गयी। यद्यपि किडनी बीन्स /राजमा /लुब्या का बहुपयोग अवश्य होता था जैसे दाल , भरी रोटियाँ या स्वाळ बनाना , बुखण प्रयोग आदि।
स्वतन्त्रता से पहले शादियों में या तो उड़द की दाल बनती थी या साबुत तोर की दाल बनती थी।
Copyright @ Bhishma Kukreti 24/9/2013
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