उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Thursday, September 19, 2013

उत्तराखंड के परिपेक्ष में उड़द , मूंग दाल का इतिहास

    History of Lentil Black Gram (Vigna mungo) and Green Gram (Vigna radiata) in Uttarakhand context
                                             दालों /दलहन का उत्तराखंड के परिपेक्ष  में इतिहास -भाग -4 

                               History of Pulses Agriculture and food in Uttarakhand Part-4                          
         
                                              उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --15  
                                               History of Gastronomy in Uttarakhand 15

  

                                          आलेख :  भीष्म कुकरेती

   उड़द -मूंग कृषिकरण इतिहास सस्थ साथ चलता है।  दक्षिण भारत -महाराष्ट्र में प्रागैतिहासिक उड़द -मूंग के अवशेस मिले हैं जो साबित करते हैं कि 2200 BC पहले दक्षिण भारत में उड़द -मूंग की खेती शुरू हो चुकी थी या जंगली उड़द -मूंग को भोजन में शामिल कर लिया गया था. इसी तरह उत्तर भारत के मैदानों में व  हिमालय में भी जंगली उड़द -मूंग या कृषि से उड़द -मूंग प्राप्त करने के प्राचीन  प्रमाण मिले हैं।  भारत को उड़द -मूंग का जन्मस्थल माना जाता है और भारत में ही उड़द -मूंग का कृषिकरण हुआ ।
          
 संस्कृत में मूंग को मुद्ग और उड़द के लिए शब्द थे माश जो क्रमश: मूंग और माश में परिवर्तित हुए. पंजाबी में मा दी दाल माश की  दाल का अपभ्रंश है। ऐसा लगता है कि तमिल शब्द उळुन्दु  से उड़द शब्द प्रचलित हुआ होगा।  माश का प्रयोग वेद  टिप्पणी शास्त्र 'वृहदअर्यणक (5500 BC ) में आया है. मूंग शब्द यजुर्वेद में प्रयोग हुआ है। 
               
                    उड़द मूंग भोजन का उत्तराखंड में उत्तर प्रस्तर युग में प्रवेश 
डा बबराल ने मजूमदार व पुसलकर के अन्वेषण सन्दर्भके आधार पर लिखा कि उत्तराखंड में उत्तर प्रस्तर युग (15000 -3500 BC ) में मूंग -उड़द को कृषि उपयोग में लाया जाता  था। 
 
                             उड़द , मूंग  दाल के बीज और बोने के सन्दर्भ 
 डा डबराल ने जातक  निग्रोधजातक जा सन्दर्भ देते लिखा है कि कुलिंद जनपद (500 -400 BC ) में उत्तराखंड में उड़द,मूंग व अरहर की खेती होती थॆ।   कौटिल्य के अर्थ शास्त्र (321 -296 BC ) में उड़द -मूंग के दानो  को दूसरे मौसम के लिए बीज बोने हेतु सुरक्षित रखने का सन्दर्भ मिलता है।  लिखा गया है कि बोने से पहले बीजों को ओस व धूप  में सुखाने चाहिए। सुल्तान  व मुग़ल काल में बीजों को गोबर व बीजों को चिड़िया के बीट के साथ मिश्रित कर बोया जाता था। सोलहवीं सदी के भावप्रकाश निघन्टू पुस्तक में उड़द -मूंग की कई जातियों का जिक्र किया है. वाट (1889 ) ने भी मूंग -उड़द के कई जातियों के बारे में उल्लेख किया है।

                                 खेतों में उड़द -मूंग 
कश्यप (800 ) ने उड़द -मूंग को पंक्तियों में बोने का दृष्टांत दिया और कहा कि बोने के एक माह बाद गुड़ाई करनी आवश्यक है। पत्तियों के हरे या पीले  होने से पता लग जता है कि फसल पक गयी है कि नहीं। 
वाट (1889 ) ने बुआई में छिटकाने वाली पद्धति का जिक्र भी किया है। अधिसंख्य किसान मूंग  -उड़द को अनाज के साथ उप अनाज जैसे बोते थे। वाट ने उड़द की विभिन्न बीमारियों का भी जिक्र किया है।
    
                          उड़द -मूंग का बजार भाव 

वाट ने लिखा है कि उन्नीसवीं सदी में भारत में मूंग पैदावार अलग अलग प्रदेश में अलग अलग थी -500 -550 KG /हेक्टेयर।  उड़द की  पैदावार पिदावार तामिल 800 Kg /हेक्टेयर। 
रिसाला -दर -फलाहत (1450 AD ) में लिखा है कि दालों को बडे बर्तन में भंडारित किया जाता था. बर्तन के आंतरिक तलों पर तेल लगाया  जाता था. और उपरी भाग में राख रखी जाती थी.  
आइन -ए -अकबरी (1590 AD ) में कहा गया है कि उड़द गेंहू की कीमत के आधे दाम में मिलती थी. मूंग दाल अरहर और मसूर से मंहगी थी।  

                   उड़द -मूंग के खाद्य पदार्थ 
 साहित्य में दाल का उल्लेख मिलता है।  
बौद्ध साहित्य में खिचडी का उल्लेख है जो कि मूंग -चावल से ही बनती रही होगी। बुद्ध ने अपने शिष्यों को मूंग पानी (मुंगणि /सूप ) पीने की सलाह दी थी।  
बौद्ध वा जैन साहित्य (300 AD से पहले ) में परपता (पापड़ ) का उल्लेख मिलता है।  
कश्यप ने भी मूंग पानी (सूप ) का उल्लेख किया है।  
कश्मीरी लेखक कल्हण (1200 AD ) ने मोंग को हीन दाल माना है। 
इब्न बातुता (1325 AD ) , अब्दुर रजाक (1443 AD ) वा ट्राविनियर (1640 -1667 AD ) जैसे पर्यटकों ने उल्लेख किया है कि भारत में मूंग खिचड़ी प्रसिद्ध थी। 
राजस्थानी सैनिक (चौदवीं सदी ) कागल कुटा (पापड़ ) पसंद करते थे।  
प्राचीन काल में उड़द -मूंग से शराब भी बनती थी (आचाया 1998 सन्दर्भ नेने )।  
वाट ने  भारतवासियो द्वारा उड़द -मूंग का उपयोग जानवरों के चारे का उपयोग के बारे में उल्लेख किया है।  
सुश्रुवा (400 BC ) ने मोंग दाल को सुपाच्य व बीमारी म इ उपयोगी दाल मानि  है। 
भाव प्रकश (16th सदी ) ने उड़द को ताकतकारी दल व वीर्य शक्ति वर्धक माना  है। उस काल में उड़द -मूंग उपचार के भी कामा आते  थे. 
वाट (1889 ) ने भी भारत में मूंग उड़द को उपचार प्रयोग का जिक्र किया है। मूंग का आता त्वचा को मुलायम करने के लिए भी उपयोग होता था। 
सुरपाल (1000 AD ) अनुसार दक्षिण में उड़द को नारियल पेड़ों में खाद के लिए उपयोगी बताया है। 
उत्तराखंड के पहाड़ों में उड़द का उपयोग मकान बनाने  के लिए मिट्टी  के साथ मिलाने (सीमेन्टिंग )   की कला/तकनीक प्राचीन   काल रही है।  


                                      References 
Dr. Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand ka Itihas 1- 9 Parts
Dr K.K Nautiyal et all , Agriculture in Garhwal Himalayas in History of Agriculture in India page-159-170 
B.K G Rao, Development of Technologies During the  Iron Age in South India 
V.D Mishra , 2006, Prelude Agriculture in North-Central India (Pragdhara ank 18)
Anup Mishra , Agriculture in Chalolithic Age in North-Central India
Mahabharata
All Vedas 
Inquiry into the conditions of lower classes of population  
Lallan Ji Gopal (Editor), 2008,  History of Agriculture in India -1200AD
K.K Nautiyal History of Agriculture in Garhwal , an article in History of Agriculture in India -1200AD
Steven A .Webber and Dorien Q. Fuller,  2006, Millets and Their Role in Early Agriculture. paper Presented in 'First Farmers in Global Prospective' , Lucknow  
Joshi A.B.1961, Sesamum, Indian central Oil Seeds Committee , Hyderabad  
Drothea Bradigian, 2004, History and Lore of Sesame , Economic Botany vol. 58 Part-3 
Chitranjan  Kole , 2007  ,  Oilseeds 
P.S.Mehta, K.S.Negi, S.N. Ojha,2010,Nativa Plant genetic resources and traditional food of Uttarakhand Himalaya ...Indian Journal Of Natural Products and Resources, Vol 1(1) March 2010 page 89-96
K.S.Negi and R.D Gaur, 1994 Principal Wild Food Plants of Western Himalaya , Indian Forester
Gopinath Mohanty et all, 2007, Tappasu Bhallika of Orissa : Their Historicity and Nativity  
Y .L .Nene ,2006, Indian Pulses Through Millenia, Asian Agri-History, Vol.10,No.3 (179-200)
K.T. Achaya, 1998, A Historical Dictionary of Indian Food
Michael Matern , A.A.Reddy   Commercial Cultivation and Profitability in  2007, Lentil: An ancient Crop for Modern Time (edited by Shyam S. Yadav et all) 
Danial Zohary et all, 2012, Domestication of Plants in old World: The Origin and Spread ....

Copyright Bhishma  Kukreti  15 /9/2013 

Notes on History of Gastronomy in Uttarakhand; History of Gastronomy in Pithoragarh Uttarakhand; History of Gastronomy in Doti Uttarakhand; History of Gastronomy in Dwarhat, Uttarakhand; History of Gastronomy in Pithoragarh Uttarakhand; History of Gastronomy in Champawat Uttarakhand; History of Gastronomy in Nainital Uttarakhand;History of Gastronomy in Almora, Uttarakhand; History of Gastronomy in Bageshwar Uttarakhand; History of Gastronomy in Udham Singh Nagar Uttarakhand;History of Gastronomy in Chamoli Garhwal Uttarakhand; History of Gastronomy in Rudraprayag, Garhwal Uttarakhand; History of Gastronomy in Pauri Garhwal, Uttarakhand;History of Gastronomy in Dehradun Uttarakhand; History of Gastronomy in Tehri Garhwal  Uttarakhand; History of Gastronomy in Uttarakhand Uttarakhand; History of Gastronomy in Haridwar Uttarakhand; 

 ( उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )
Notes on History  Black Gram (Vigna mungo) and Green Gram (Vigna radiata)Pulses in Uttarakhand;History of Black Gram (Vigna mungo) and Green Gram (Vigna radiata) Pulses in Pithoragarh ,Uttarakhand;History Aspects of Black Gram (Vigna mungo) and Green Gram (Vigna radiata) Pulses in Champawat Uttarakhand; History Aspects of Black Gram(Vigna mungo) and Green Gram (Vigna radiata) Pulses in Nainital, Uttarakhand;History Aspects of Black Gram (Vigna mungo) and Green Gram (Vigna radiata) Pulses in Almora Uttarakhand;History Aspects of Black Gram (Vigna mungo) and Green Gram (Vigna radiata) Pulses in Bageshwar Uttarakhand;History Aspects of Black Gram (Vigna mungo) and Green Gram (Vigna radiata) Pulses in Udham Singh Nagar Uttarakhand;History Aspects of Black Gram (Vigna mungo) and Green Gram (Vigna radiata) Pulses in Haridwar ,Uttarakhand; History Aspects of Black Gram (Vigna mungo) and Green Gram (Vigna radiata) Pulses in Dehradun, Uttarakhand; History Aspects of Black Gram (Vigna mungo) and Green Gram (Vigna radiata) Pulses in Pauri Garhwal Uttarakhand;History Aspects of Black Gram (Vigna mungo) and Green Gram (Vigna radiata) Pulses in Chamoli Garhwal Uttarakhand;History Aspects of Pulses in Tehri Garhwal, Uttarakhand; History Aspects of Black Gram (Vigna mungo) and Green Gram (Vigna radiata) Pulses in Uttarkashi, Uttarakhand; History Aspects of Black Gram (Vigna mungo) and Green Gram (Vigna radiata) Pulses in Rudraprayag, Uttarakhand;

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments