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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, September 5, 2013

खस्सी बुगठ्याs सुपिन !

चबोड़्या -चखन्योर्या - भीष्म कुकरेती 

बुगठ्या  १- सूण ! तीन कबि मटन नाम बि सूण  ?
बुगठ्या २- ना भै ! पण ह्वाइ क्या च ?
बुगठ्या १- एक छ्वारा म्यार तरफ देखिक बुलणु छौ बल व्हट ए  मटन शॉप   !
बुगठ्या २-हां याद आयि ! मि जब छौनु छौ त कबि कबि हमर गोसी (मालिक ) अर गुस्याण बुल्दा त छया  बल अबि फसल कटण लैक नि ह्वै , मटन लैक नि ह्वै ! मि त कबि नि ग्यों मटनौ पुंगड़ उज्याड़ खाणों !
बुगठ्या १- पण वु छ्वारा बुलणु छौ बल व्हट  ए  मटन शॉप   !
बुगठ्या २-ये सूण यूं अजकालौ छ्वारों भकलौण मा नि आण हां !
बुगठ्या १- हाँ ! सै ब्वाल तीन बड़ा बदतमीज छन अचकालौ छ्वारा !   
बुगठ्या २-उंह ! छोरि कम छन ! स्या  मलकिनै छोरि आँख कताड़ी  कन रौन्दि त्वै तैं घुरणी
बुगठ्या १- त्वै तैं हमेशा में से जौळ हूंदी , इर्ष्या हूंदी कि  सरा बखरोड़ा बखरी म्यार ऐथर पैथर सुंग सुंग करणा रौंदन !
बुगठ्या २-अरे मि मजाक करणु छौ पण मालिकै छोरि त्वै तै इना उना जपकाणि नि रौन्दि क्या ?
बुगठ्या १- अरे उन त मालिक अर मालिकण बि जपकाणा रौंदन।  
बुगठ्या २-हां पण मालिका छोरी तेरी रान अर फट्टा पर इन हाथ फेरदी कि …
बुगठ्या १- त्वै तैं जळणो अलावा क्वी काम नी च।   
बुगठ्या २-हाँ ! पर दगड़म वा इन किलै बुल्दि कि यी रान फट्टी ही त मेरा गुलबन्द छन , सोना की चूड़ी छन , सुहाग की माळा छन।     
बुगठ्या १- पता नि किलै ? अर मालकण  बि इनि कुछ बोल्दि कि यी रान -फट्टी मेरी बेटी सुहाग की माळा छन। 
बुगठ्या २-ये तू मालकण  अर वींक बेटि तैं सुदि नि जपकाण दिया कौर हाँ ! तंदला की बखरी इर्ष्या से जळ जांदन
बुगठ्या १- अब तुम सौब इनि जळणा रावो हां।   
बुगठ्या २-अरे हम नि दिखणा छां ! मालिक , मालकिन  अर बेटी त्वै पर कथगा मेहरबान छन !
बुगठ्या १- अरे वो में से बहुत प्यार जि करदन।  
बुगठ्या २-हाँ वू त दिख्याणु च। इ सबि चारा , किनग्वडु पत्ता त्यारि समिण डाळदन।     
बुगठ्या १- प्यार से रै !
बुगठ्या २-हाँ ! इ लोग त्वै तैं इथगा खलांदन कि यीं छुटि उम्र मा तु खस्सी बुगठ्या ह्वे गे। खलै खलै त्वै तैं ज्वानि आण से पैलि खस्सी बुगठ्या बणै दे हां ! 
बुगठ्या १- मालिक परिवारौ प्यार च भै 
बुगठ्या २-अरे हाँ !  पैल तेरि जगाम वो बुगठ्या नि छौ वै से बि इ सबि खूब प्यार करदा छा।  
बुगठ्या १- हाँ यार ! मालिक लोग वै बुगठ्या की क्या सेवा , टहल करदा छा हाँ ! मालिकन वै बुगठ्या रान -डौणि जपकांद जपकांद  बुल्दि छे बल तेरी रान त हमकुण द्वी जोड़ी नया नया  गद्दा -खंतुड़ छन।   
बुगठ्या २-अच्छा सूण  फिर एक दिन मालिक लोग वै बुगठ्या तैं पशु -मेला लीग छया ?
बुगठ्या १- हाँ ! लिजांद दैं मालकण अर मालिक इनि बुलणा छा बल चल बेटा पशु मेला दिखणौ जौंला ! अर मालकिन मालिक तै समजाणि छे कि बुच्चर का दगड़ ठीक से मोल -भाव करिन हाँ ! 
बुगठ्या २-इ पशु मेला क्या हूंद ?
बुगठ्या १- मि तैं त नि पता पण सूण च कि उख सर दुन्या क पशु आंदन अर नाच-गाण-खाण -पीण अर फिलम शो हूंद।  
बुगठ्या २-अच्छा सूण ! यि बुच्चर क्या हॊन्द ?
बुगठ्या १- इनि ह्वाल जन कि हऴया , गुठळ , धनकुर्या , ग्वेर    
बुगठ्या २- अर इ मोल -भाव क्या हूंद। 
बुगठ्या १- ह्वाल इनि जन कि तै बखर तै चारु दे , तै तैं मथि तर्फां बाँध , तै चिनख तैं फ़ुचि छोड़ दे
बुगठ्या २- अर सूण जु बि बुगठ्या पशु मेला  ग्यायि वु बौड़ि नि आंद , किलै ?
बुगठ्या १- सुणन मा आयि बल उख बुच्चर बुगठ्यों तैं कै अनजान मजेदार, स्वर्ग समान चारगाह ली जांद बल जख बिटेन बखर इना आण इ नि चांदन 
बुगठ्या २- अरे मालिक -मालकण ऐ गेन।  
मालिक (बुगठ्या १ तैं खुलद)    - चल म्यार बुगठ्या पशु मेला जौंला। 
मालकण - सूणो ! बुच्चर का  दगड़  ठीक से मोल भाव करिन हां।  बेटीक  ब्यौवक जार -जेव्हरात सब लाण हाँ ! 
मालिक - हाँ भै हाँ ! इथगा बड़ो खस्सी बुगठ्या बणाइ तो बेटी ब्यौवक जेवर त आला ही ! अर सूण तै बुगठ्या २ तैं बुगठ्या एक  की जगा बांधी दे अर अब तै तैं चारा देकि  जल्दी खस्सी बणान हाँ ! 
बुगठ्या २ -(अपण मन मा ) म्यार दिन कब आल जब मि बि पशु -मेला जौंल अर उख बुच्चर दिखलु अर स्वर्ग समान चारगाह मा मजा करुल !

Copyright@ Bhishma Kukreti 5 /9/2013 



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