सरsद्या या पुड़क्या बामण -भीष्म कुकरेती
दक्खण गांवक कुकुर (हूऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊउ ) -ये फलण गाँवों झबरा कुकुर !
दक्खण गांवक कुकुर (हूऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊउ ) -ये अलण गांवौ रींडु कुकर !
दक्खण गांवक कुकुर (हूऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊउ ) -ये अलण गांवौ रींडु कुकर !
फलण गांवक कुकुर -जै हड्डी ! जै हड्डी ! जै अंदड़ -पिंदड़ . हे दक्खण गांवक कुकुर ! भौत दिनु माँ अवाज निकाळ भै ?
अलण गांवक कुकुर -जै टंगड़ि , जै नाड़ि , जै कंदूड़ी ! आज क्या बात भै दुइ गांवक कुकरुं तैं 'कुकर्याट कौन्फ़ेरेन्स ' भट्याइ भै ? क्या उत्तराखंड सरकारन हौर राज्यों से बाघ बुलै ऐन क्या ?
दक्खण गांवक कुकुर -नै नै रै नै ! उत्तराखंड सरकार त अजकाल आपदा पुनर्वसन मा व्यस्त च। बाघुं फिकर त तब होंद जब मनिखुं पुटुक भर्युं ह्वावो !
फलण गांवक कुकुर -त फिर भेड़िया आण वळ छन ?
दक्खण गांवक कुकुर -नै भै नै ! भेड़िया त अजकाल खादी झुला -टुपला पैरिक शहरुं मा नेता बण्या छन !
अलण गांवक कुकुर -अरे त क्या आफत आयि जो इमरजेंसी मा 'कुकर्याट कौन्फ़ेरेन्स ' बुलाइ।
दक्खण गांवक कुकुर -अरे यु पुछण छौ बल यि श्राद्ध या सराद कै बीमारी नाम च ? अर सरादुं मौसम क्या हूंद ?
फलण गांवक कुकुर - नाम सुण्यु त छ पण आज अचाणचक सरादुं याद किलै आयि भै ?
दक्खण गांवक कुकुर - अरे आज भौत सालुं बाद मि अपण बूडि ननि क हड्युं मा लिख्याँ संस्मरण पढ़णु छौ त उखमा सराद अर सरादुं मौसम पर छै अध्याय छन।
अलण गांवक कुकुर -हाँ भै तेरि बूडि ननि बामणु इख स्वान छे त पढ़ीं लिखीं छे त वींन संस्मरण लिखण इ छौ। हमर पूर्वज त विचारा अनपढुं कुकुर था त हम सुणि सुणयुं बथों याने लोक कथनों से काम चलौंदा। पण अचकालै न्यू जनरेसन की कुकुर जात त बुल्दि बल लोक कथा -लोक गीत सब बकबास च। अब क्या बुले जावो !
फलण गांवक कुकुर -भै लोक कथनुं पर विश्वास त करण इ पोड़ल। मि तैं मेरि ननिन सरादुं बारा मा बथै थौ अर मेरि ननि तैं वींक बूडि ननिन पित्री पक्ष का बारा मा बतै थौ बल बर्सातौ आखिरी समौ पर यूं गाऊं मा मनिख सोळ दिन सराद पक्ष मनांद था।
दक्खण गांवक कुकुर - हाँ ! मेरि बूडि ननिन लिख्युं च बल जै दिन हमार दिमाग खराब (पूर्णमासी ) जादा हूंद अर जैदिन चिट्ट रात हूंद (औंस ) तक गां मा कै न कैं मौक इख सराद हूंद।
अलण गांवक कुकुर -अरे हमर लोक गीतुं मा बि च युं दिनों गढ़वाळि गाऊं मा कव्वा , कुकर अर बामणु मौज रौंद छे।
दक्खण गांवक कुकुर -मेरी बूडि ननिक संस्मरण मा लिख्युं च युं दिनों गाऊं माँ जख जावो मनिख कुत्तो तै भट्याणा रौंदा छा -लो - लो !आ आ !
फलण गांवक कुकुर - अरे हमर इख त एक बड़ी लोक कथा च जख मा विरतांत च बल युं दिनों जैं मौक इख सराद ह्वावो त उख दाळ , भात , गुदड़ि, लमेंडा-चाचिंडा -खीरा , मूळा पिंडाळु की भुजी , झुळी बणदि छे।
दक्खण गांवक कुकुर -मेरी बूड ननि लिख्युं च बल झुळी अर खीर त सराद मा एक आवश्यक खाणक हूंद छा।
अलण गांवक कुकुर -हमर लोक गीत मा बथायुं च बल पैल पंडित पितृ पूजन करदो छौ अर फिर पत्तों मा कुकुर अर कव्वों कुण खाणक धरे जांद छौ अर कुत्ता -कव्वों तै खाणो निमंत्रण दिए जांद छौ।
दक्खण गांवक कुकुर - मेरी बूडि ननिन लिख्युं च युं सरादुं दिनों मनिख जन कुकुर बि शाकाहारी ह्वे जांद छौ। अरे औंस आंद आंद कुत्तों यी हाल ह्वे जांद छ कि जादा खीर -झुळी खैक अपच ह्वे जांद छौ त कुत्तों तैं घास खाण पड़द छौ
फलण गांवक कुकुर -अरे बल ये बगत कुत्तों तै खाणकै कमी हूंद इ नि छे त किलै कुत्ता मर्यां गाय -बैल खावन भै ?
अलण गांवक कुकुर -मेरि ननि एक कहावत या लोकोक्ति बुल्दि छे बल जख अनाज जादा ह्वावो तो उख गोर भैंस नि कट्यांद छा अर कुत्ता बि शाकाहारी ह्वे जांद छा।
दक्खण गांवक कुकुर - हां अब हमि तै देखि ल्यावो जब हमतैं शाकाहारी भोजन नि मिल्दो त हम मूस , कवा बि नि छुड़दां !
फलण गांवक कुकुर -अरे पण हमन बि क्या करण पैल यूँ गढ़वाळि गाऊं मा मनिख रौंद था अर हम तै पाळदा छा , हम तैं सराद इ ना रोजाना खाणक मिल्दो छौ त हमर पुरखा सुखी छा।
दक्खण गांवक कुकुर -अरे अब त ये क्षेत्र मा यी हाल छन कि सालों क्वी मनिख , गौड़ -भैंस -बखर नि दिखेंदन। सि द्वी मैना पैल म्यार नौनान एक मनिख द्याख त वु डौरन छळे ग्यायि। वु त कव्वा काकान रख्वळी कार त तब वै तैं होश आयि।
अलण गांवक कुकुर -अरे वी मनिख ना ! वै तैं देखिक मया बुबा बि छळे गै ।
फलण गांवक कुकुर - भई जु गणत करे जावो त दस साल पैल तक ये क्षेत्र मा हरेक गां मा आठ दस मनिख छैं छया।
दक्खण गांवक कुकुर -मेरि बूडि ननिन अपण संस्मरण मा लिख्युं च बल ये गां मा तीन सौ मनिख छा। अर आज मीलों तलक आदिम नि दिखेंदन। वींक लिख्युं च बल ये गां मा चार सौ करीब पालतू जानवर बि छा। अर अब सब मनुष्य पलायन कौरिक पहाड़ छोडि चलि गेन ।
अलण गांवक कुकुर -छोड़ रै ये फादो से पलायन की बात म्यार बूड ददा , पड़ ददा मरदां बि बरड़ाणा रैन बल पहाडुं से पलायन से कुत्तों बि नुक्सान हूण।
दक्खण गांवक कुकुर - पलायन का कारण ये से जादा नुक्सान क्या हूण कि हम कुत्तों तैं सरादुं समौ पर खीर नि मिल्दि
फलण गांवक कुकुर - यार या खीर हूंदी कन होलि ? सरादौ खीर चखणो ज्यू बुल्याणु च।
दक्खण गांवक कुकुर -मेरि बूड ननिक लिख्युं च बल दूध , गुड़ अर चौंळ से खीर बणदि छे। ज्यू त म्यार बि …
अलण गांवक कुकुर -एक बात बताओ बल यी मनिख पित्री पक्ष मा सराद या मोरणों बाद तिरैं -बरखी किलै पुजदन ?
दक्खण गांवक कुकुर - जाँसे पितर लोग सोराग जावन , नरक नि जावन या भूत नि बौणन
फलण गांवक कुकुर -ये मनिख भूत किलै बणदन या नरक किलै जांदन ?
दक्खण गांवक कुकुर - किलैकि मनिख पाप करदन त या त भूत बणदन या नरक जांदन
अलण गांवक कुकुर -यि मिनख पाप इ किलै करदन ?
गांवक कुकुर - किलै कि ऊंमा भारी दिमाग च
दक्खण गांवक कुकुर -अच्छा हम कुकर अपण पुरखों वास्ता सराद या तिरैं -बरखी किलै नि करदां ?
अलण गांवक कुकुर - किलैकि हमम उथगा बड़ो दिमाग /बुद्धि नी च त हम पाप नि करदां त हम तैं नरक या भूत योनि की चिंता नि होंदी।
फलण गांवक कुकुर -चलो भै फ़ोकट मा सरादुं की खीर की इच्छा भौत ह्वे गे। अब कुकर्याट कौन्फ़ेरेन्स बंद करे जाव। जै बाघ सुरक्षा जतन !
दक्खण गांवक कुकुर - जै बाघ सुरक्षा जतन !
गांवक कुकुर -जै बाघ सुरक्षा जतन !
अलण गांवक कुकुर -जै टंगड़ि , जै नाड़ि , जै कंदूड़ी ! आज क्या बात भै दुइ गांवक कुकरुं तैं 'कुकर्याट कौन्फ़ेरेन्स ' भट्याइ भै ? क्या उत्तराखंड सरकारन हौर राज्यों से बाघ बुलै ऐन क्या ?
दक्खण गांवक कुकुर -नै नै रै नै ! उत्तराखंड सरकार त अजकाल आपदा पुनर्वसन मा व्यस्त च। बाघुं फिकर त तब होंद जब मनिखुं पुटुक भर्युं ह्वावो !
फलण गांवक कुकुर -त फिर भेड़िया आण वळ छन ?
दक्खण गांवक कुकुर -नै भै नै ! भेड़िया त अजकाल खादी झुला -टुपला पैरिक शहरुं मा नेता बण्या छन !
अलण गांवक कुकुर -अरे त क्या आफत आयि जो इमरजेंसी मा 'कुकर्याट कौन्फ़ेरेन्स ' बुलाइ।
दक्खण गांवक कुकुर -अरे यु पुछण छौ बल यि श्राद्ध या सराद कै बीमारी नाम च ? अर सरादुं मौसम क्या हूंद ?
फलण गांवक कुकुर - नाम सुण्यु त छ पण आज अचाणचक सरादुं याद किलै आयि भै ?
दक्खण गांवक कुकुर - अरे आज भौत सालुं बाद मि अपण बूडि ननि क हड्युं मा लिख्याँ संस्मरण पढ़णु छौ त उखमा सराद अर सरादुं मौसम पर छै अध्याय छन।
अलण गांवक कुकुर -हाँ भै तेरि बूडि ननि बामणु इख स्वान छे त पढ़ीं लिखीं छे त वींन संस्मरण लिखण इ छौ। हमर पूर्वज त विचारा अनपढुं कुकुर था त हम सुणि सुणयुं बथों याने लोक कथनों से काम चलौंदा। पण अचकालै न्यू जनरेसन की कुकुर जात त बुल्दि बल लोक कथा -लोक गीत सब बकबास च। अब क्या बुले जावो !
फलण गांवक कुकुर -भै लोक कथनुं पर विश्वास त करण इ पोड़ल। मि तैं मेरि ननिन सरादुं बारा मा बथै थौ अर मेरि ननि तैं वींक बूडि ननिन पित्री पक्ष का बारा मा बतै थौ बल बर्सातौ आखिरी समौ पर यूं गाऊं मा मनिख सोळ दिन सराद पक्ष मनांद था।
दक्खण गांवक कुकुर - हाँ ! मेरि बूडि ननिन लिख्युं च बल जै दिन हमार दिमाग खराब (पूर्णमासी ) जादा हूंद अर जैदिन चिट्ट रात हूंद (औंस ) तक गां मा कै न कैं मौक इख सराद हूंद।
अलण गांवक कुकुर -अरे हमर लोक गीतुं मा बि च युं दिनों गढ़वाळि गाऊं मा कव्वा , कुकर अर बामणु मौज रौंद छे।
दक्खण गांवक कुकुर -मेरी बूडि ननिक संस्मरण मा लिख्युं च युं दिनों गाऊं माँ जख जावो मनिख कुत्तो तै भट्याणा रौंदा छा -लो - लो !आ आ !
फलण गांवक कुकुर - अरे हमर इख त एक बड़ी लोक कथा च जख मा विरतांत च बल युं दिनों जैं मौक इख सराद ह्वावो त उख दाळ , भात , गुदड़ि, लमेंडा-चाचिंडा -खीरा , मूळा पिंडाळु की भुजी , झुळी बणदि छे।
दक्खण गांवक कुकुर -मेरी बूड ननि लिख्युं च बल झुळी अर खीर त सराद मा एक आवश्यक खाणक हूंद छा।
अलण गांवक कुकुर -हमर लोक गीत मा बथायुं च बल पैल पंडित पितृ पूजन करदो छौ अर फिर पत्तों मा कुकुर अर कव्वों कुण खाणक धरे जांद छौ अर कुत्ता -कव्वों तै खाणो निमंत्रण दिए जांद छौ।
दक्खण गांवक कुकुर - मेरी बूडि ननिन लिख्युं च युं सरादुं दिनों मनिख जन कुकुर बि शाकाहारी ह्वे जांद छौ। अरे औंस आंद आंद कुत्तों यी हाल ह्वे जांद छ कि जादा खीर -झुळी खैक अपच ह्वे जांद छौ त कुत्तों तैं घास खाण पड़द छौ
फलण गांवक कुकुर -अरे बल ये बगत कुत्तों तै खाणकै कमी हूंद इ नि छे त किलै कुत्ता मर्यां गाय -बैल खावन भै ?
अलण गांवक कुकुर -मेरि ननि एक कहावत या लोकोक्ति बुल्दि छे बल जख अनाज जादा ह्वावो तो उख गोर भैंस नि कट्यांद छा अर कुत्ता बि शाकाहारी ह्वे जांद छा।
दक्खण गांवक कुकुर - हां अब हमि तै देखि ल्यावो जब हमतैं शाकाहारी भोजन नि मिल्दो त हम मूस , कवा बि नि छुड़दां !
फलण गांवक कुकुर -अरे पण हमन बि क्या करण पैल यूँ गढ़वाळि गाऊं मा मनिख रौंद था अर हम तै पाळदा छा , हम तैं सराद इ ना रोजाना खाणक मिल्दो छौ त हमर पुरखा सुखी छा।
दक्खण गांवक कुकुर -अरे अब त ये क्षेत्र मा यी हाल छन कि सालों क्वी मनिख , गौड़ -भैंस -बखर नि दिखेंदन। सि द्वी मैना पैल म्यार नौनान एक मनिख द्याख त वु डौरन छळे ग्यायि। वु त कव्वा काकान रख्वळी कार त तब वै तैं होश आयि।
अलण गांवक कुकुर -अरे वी मनिख ना ! वै तैं देखिक मया बुबा बि छळे गै ।
फलण गांवक कुकुर - भई जु गणत करे जावो त दस साल पैल तक ये क्षेत्र मा हरेक गां मा आठ दस मनिख छैं छया।
दक्खण गांवक कुकुर -मेरि बूडि ननिन अपण संस्मरण मा लिख्युं च बल ये गां मा तीन सौ मनिख छा। अर आज मीलों तलक आदिम नि दिखेंदन। वींक लिख्युं च बल ये गां मा चार सौ करीब पालतू जानवर बि छा। अर अब सब मनुष्य पलायन कौरिक पहाड़ छोडि चलि गेन ।
अलण गांवक कुकुर -छोड़ रै ये फादो से पलायन की बात म्यार बूड ददा , पड़ ददा मरदां बि बरड़ाणा रैन बल पहाडुं से पलायन से कुत्तों बि नुक्सान हूण।
दक्खण गांवक कुकुर - पलायन का कारण ये से जादा नुक्सान क्या हूण कि हम कुत्तों तैं सरादुं समौ पर खीर नि मिल्दि
फलण गांवक कुकुर - यार या खीर हूंदी कन होलि ? सरादौ खीर चखणो ज्यू बुल्याणु च।
दक्खण गांवक कुकुर -मेरि बूड ननिक लिख्युं च बल दूध , गुड़ अर चौंळ से खीर बणदि छे। ज्यू त म्यार बि …
अलण गांवक कुकुर -एक बात बताओ बल यी मनिख पित्री पक्ष मा सराद या मोरणों बाद तिरैं -बरखी किलै पुजदन ?
दक्खण गांवक कुकुर - जाँसे पितर लोग सोराग जावन , नरक नि जावन या भूत नि बौणन
फलण गांवक कुकुर -ये मनिख भूत किलै बणदन या नरक किलै जांदन ?
दक्खण गांवक कुकुर - किलैकि मनिख पाप करदन त या त भूत बणदन या नरक जांदन
अलण गांवक कुकुर -यि मिनख पाप इ किलै करदन ?
गांवक कुकुर - किलै कि ऊंमा भारी दिमाग च
दक्खण गांवक कुकुर -अच्छा हम कुकर अपण पुरखों वास्ता सराद या तिरैं -बरखी किलै नि करदां ?
अलण गांवक कुकुर - किलैकि हमम उथगा बड़ो दिमाग /बुद्धि नी च त हम पाप नि करदां त हम तैं नरक या भूत योनि की चिंता नि होंदी।
फलण गांवक कुकुर -चलो भै फ़ोकट मा सरादुं की खीर की इच्छा भौत ह्वे गे। अब कुकर्याट कौन्फ़ेरेन्स बंद करे जाव। जै बाघ सुरक्षा जतन !
दक्खण गांवक कुकुर - जै बाघ सुरक्षा जतन !
गांवक कुकुर -जै बाघ सुरक्षा जतन !
Copyright@ Bhishma Kukreti 21 /9/2013
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी के जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण वाले के भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य;सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]
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