इस कालजयी कविता को भी गढवाली काव्य को आधुनिक बनाने का सहयोगी कविता माना जाता है
समाजवादी भितर खंड
कवि : स्व विनोद उनियाल (जन्म -1957 , अमाल्डु , डबराल स्यूं )
बिर्जु दा कि
फटीं कुर्ति /फटीं सुलरि
समाजवादै खोज मा /मैदानु मा ऐ ग्ये।
वे की फटीं टुपली
बदलेगे खादी सफेद टोपि मा
कुर्ति -खादी कुर्ता झकाझक
अर सुलरि -चम्म सुलार !
बिर्जु दा /अब पक्कू बगुला भगत
बृजमोहन बण्यु च
मैदानु मा रै कि
पहाडै कल्पना हूणी च
ऊंचि ऊँचि डांड्युं माँ
कागजी कुआं खुदेणाँ छन
अर तब /व्याख्यान दियेणा छन
ऊं बिर्जु थैं
जौंक गात पर /फटीं कुर्ति बि नी च
भुलौं ! / टक लगै सुणों
समाजवाद सुदि नि आंद
यांक बान
खाण पुड़दि -खैरि सुसगरि
ख्यलण पुड़दीं -कतनै खंड
बदलण पुड़दीं-दल-क -दल
जन कि /मि थैं हि देखि ल्यावदि
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