Kuninda Ganrajya and Kingdom Administration
कुणिंद राज्य में शासन व्यवस्था
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 157 हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 157
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 7 /8/2015
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --158
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -158
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कुणिंद जनपद की गणना गणराज्यों में की जाती थी और कुणिंद गणराज्य का नाम श्रष्ठ गणराज्यों में कुणिंद अवसान के बाद भी सम्मान के साथ उल्लेख किया जाता था। छटी सदी में वराहमिहिर रचित वृहत्संहिता में कुणिंद को शिरोमणि कहा गया है। एस विशेषण किसी अन्य गणराज्य के लिए नही किया गया है।
उस युग में कुणिंद , यौधेय व औदुंबर तथा त्रिगर्त प्रमुख गण थे। गणमुद्राओं में गण नाम व गणसूचक अंक व लक्षण अंकित हैं और कुणिंद के प्रारम्भिक कालीन सिक्कों में भी यही अंकित हैं।
गण शक्ति किसी विशेष व्यक्ति , राजा या प्रशाशक के पास होकर क्षत्रियों में वुभक्त रहती थी। सभा द्वारा निर्णय लिए जाते थे। (अग्निहोत्री )
अष्टाध्यायी में कुणिंद -कालकूट जनपद की गणना एकराज जनपदों में की गयी है। इससे सिद्ध होता है कि चौथी पांचवीं सदी में की राजयप्रणाली में परिवर्तन आ चुका था और राजा शासक बन चुके ।
जायसवाल (हिन्दू राजतंत्र भाग -१ ) ने वृहतसंहिता के संदर्भ में सिद्ध करने की कोशिस की कि कुणिंद में राजा व सभसद का चुनाव जनता द्वारा होता था।
संभवतया अग्रराज के समय यवन आक्रमण के कारण प्रशासन प्रणाली बदलाव आया होगा और गणतंत्र से एकाधिकारी राजतंत्र प्रणाली का उदय हो गया होगा।
यवन काल के बाद कुणिंद शुंग के अधीन आ गया था और फिर स्वतंत्र हो गया था।
स्रुघ्न कुणिंद काल में भी राजा मंत्रिपरिषद को अधिक महत्व देता था।
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