उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Thursday, August 27, 2015

समाज मा व्यंग्य से सजा बि दिए जांदि

(व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , भावनाऊँ मिऴवाक  : भाग 6    ) 

                         भीष्म कुकरेती 

                       सब्युं तै अनुभव होलु बल घौरम , गांवम , मुहल्ला मा कै तै छुटि मुटि सजा दीण हो त वैका /वैकि ठट्ठा लगाये जांद।  कै तै शरमैक सजा दिलाये जांद अर याँकुण हंसी , व्यंग्य , चखन्यौ कु सहारा लीण आम बात च।  समाज द्वारा व्यंग्य से शरमवाण बड़ी सजा ही हूंदी। 
                  जब कैको नौनु या नौनी का नाक से सींप बगणु हो तो नॉन /नौनी कुण बुले जांद ," आह त्यार नाक से गंगा जमुना बगणी छन। अर इन मा द्वी चार लोग हंस जावन तो नौनु /नौनी रुणफ़त बि ह्वे सकदन।   " यु शब्द नौनु /नौनी कुण असल मा शाब्दिक सजा ही च।   शब्द बच्चा का माँ बाप का समिण बुले जादन तो भी ब्वे बाबु कुण शरम की बात च। शरम लैकि सजा दिलाण समाज मा मान्य च।  किन्तु यु केवल छुट समाज और एकसमान समाज याने छुटि जगा का वास्ता कामयाब तरीका च।  बड़ो समाज या बड़ो परिदृश्य मा हास्य व्यंग्य से सजा दिलाण जरा कठण इ च। 
 साहित्यिक समाज अपण आप मा छुटु समाज च , खासकर गढ़वळि साहित्यिक समाज।  इलै यु दिखे गे कि गढ़वळि साहित्यिक समाज मा एक साहित्यकार हैंको साहित्यकार की खिल्ली नि उड़ान्द।  उन आलोचना बि भौत कम मान्य च तो एक हैंक साहित्यकार पर व्यंग्य करण बि बुरु माने जांद।  यु साबित करदो कि हास्य अर व्यंग्य सजा दिलाणो  करदो। 
  हमारा सांस्कृतिक कर्मकाण्डुं मा हास्य -व्यंग्य शामिल च जखम एक हैंक तै नीचा या सजा दीणो अपरोक्ष कोशिस बि हूंदी।  ब्यौ काज मा बर पक्ष तै हौंस इ हौंस मा गाळी दीणो रिवाज एक तरह से नीचा दिखाणो कु एक रूप च। 
मजाक या मखौल उड़ाण  एक तरह को हथियार हि हूंद।
 
 साहित्य मा व्यंग्य से कै अभियोगी या बुराई तै सजा दीण कठिन च किलैकि साहित्य मा परिपेक्ष्य बड़ो ह्वे जांद। 
  


26/ 8/2015 Copyright @ Bhishma Kukreti 

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments