रचना - अबोध बंधु बहुगुणा (1927 -2003 , झाला , चलणस्यूं , पौड़ी गढ़वाल )
इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती
जन्मभूमि , मातृभूमि , माँ हिंवाळ वासनी
तेरी पैतुऴयौं प्रणाम हे प्राणी उलारिणी !
तू उघाड़दी किवाड़ , धर्ति माँ उद्यों कि बाढ़
बाछि सि त्यरा खल्याण रुम्क रैन्दि रामणी !
द्यख्द त्यरि क्वदड़ि सार चऴळ ह्यूंचळौ हपार
छुणक्याळि च दाथि , फंचि पर तु घास काटणी।
बगदि आंख्युं की गाड , माँ त्यरो अथाह लाड ,
क्वांसि छै बणी हिलांस , बौणु बौणु बासणी।
(साभार -शैलवाणी , दिल्ली , )
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