ब्यळमु -ब्यूराळ
उपन्यासकार - बलदेव प्रसाद नौटियाल (कड़ाकोट, गग्वाड़स्यूं , पौ.ग. १८९५-१९८१ )
रचनाकाल- १९४०
प्रकाशक- गढवाली साहित्य परिषद् , लाहौर
इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती
चमलोतड़ सिंग , लोक बदन , माळ का बद्युन को नौनो छौ. हर्बि जन्नि स्कूल जा ण लगे, इस्कूल्या वे सणि चिरडौण अर चुगन्यौण लगिने . बाठाअ बटवैइ तक वै सणि उळयौण लगिने, हीरे चिमडू -चिमड़ा तड़काला त्वे ! ब्वेबुबों कि ढोलक अर लांग छोडिइ अबपंडित बण लगि गै. हैं! त्यरी दीदि भूलि नाचण गाण का नकचौलौं मान आंछरी बणिइ द्यसू की रस्याळु उडालि, ब्वेबुबा रातु रातु स्वांग बणाइक भस्य्ला, गवणौ का बिकः नमान खल्याणअ मळयौ की चाअर घुजकुड्या ह्वेक अर अग्वाड़ी -पिछाड़ी , ढेस -तीर, कख्वडौं-कख्वडौं , रळबिजळ बैठिक ऊंको भासेणो सूणला, निअडौंदारौं का छ्वबुन्द्या सांद आफु बि भासेणो आर उंदारौणो सीखला, ऊं सनकौंद अर आँखा नचौन्द देखला, हहह ! हिहिहि ! ' हैंसला त्यरी ब्वे बादण चौन्त्युर का मुड ऐंच घाघरा का फफराट कअरलि , पल्ला ,पसारीइ इनाम किताब मांगलि. गौं का सिंग्याळ स्वांग द्यखदि दौं गंडेळअ सी सिंग गाडीइ अगन्याई ह्व़े जाला. देंदी धांसिंग भितनाई खैंचीइ घाघराइ झिमलाट मा हाटी का कोणों जाने सरकला. ! ओलेअर ऊं दिखाई तड़बड़-तड़बड़ ताळी
बजाला , खुटा घुर्सी - घुर्सिक हैंसला ! फीर बाद्दी बादेण सिंग्याळ - ज्वंग्याळ आर सेट-सौकानी का स्वांग द्यखाला, सबा मा हैन्सारत पोडली ! गौं की छमना मोर्युं आर दुंळो बिटि बाद्दि का भंड्वळौ आर बाद्यणि का नकचौलौं पर खितड़क हैंसलि अर सौजाड़यौं
चुगन्यालि ! आर टु यख 'बिसगुणु खा ! कंदड़ खा ! (बिजगनी क कन्दानु का , ) का उलटा जप से गअळो खराप कन्नु और आपणो धर्म-यमान बिगाणणु छै।"
चिमडु यूँ हवळि का कजीलै छरौळयूँन बिछान ऐ गे . उ नि रै इ सौक्यो . वेन अपणा नना मा बोले. वेका ननान भेख्राज गाडे आर वेको मुंड माठी देय . हींग लगि ना फटगडि , नाई बुलौण पोडे ना न्युटर, बामण त ये कलजुग मा जैन पुछणाइ छौ! पुराणौ का साक्युं काज्रायाँ भेखराज न इ खटड़म-थचड़क खुटर - खुटर मुंड को घोल नीछि-नाछीइ, ल्वंच्याइ-ल्वंच्याइक , कूड़ाअ कअरा की काख पर बाळ- ऊळा को थुपड़ी लगे दे घोल का उड्या पंछि, ल्वेसुरा बच्चा आर घुसराण्या , किटगणयाँ, फिटगणयाँ आंडरु उळा का पिलौं दगड़ी हड़हड़ घिलमंडी ख्यन लगिने . खुस्यलोँ चिम्लाट जानू ब्वलेंद किन्ना बरखणा होन. चिमडु का बर्मंड पर फैड़ी लगि गैने . माळ का बाद्युं नौना की जड़यूण ह्वेगे .उ डौळि मुंडि ल्हेंइक हैकि इस्कूल मा बिसगुण खा ! कन्दूड़ खा ! की संता संता का संतराड़ा से ज्यू छूवडाइक चिमराटचिम्राट अर चबराट का शांत कोठो का कोंसळा बणौण लगे- एक दोअणा द्वी दोण ! द्वी दोअणा चार दोण .
छ्वूटा मा चिमड़ पाअड़ी गौं मा आपणा माई ममौं का यख जिरू जरू जिवाळ लगाइक मिसपिगुड़ाआर कळजेंट मार्या करदु छौ. वैको नना मनसाराम जी घाट को मुर्दा ह्व़े गे छौ . दांत खुर सौब झअडि गै छा. दिन मा, जब जौ जनाना पुंगड़ा चलि जांदा छ्या उ बिस्गुणसुकाया करदा छा आर गुठ्यार मां जाळ ल्म्तम कैक घ्यंडुड़ा आर घुगतौं की रासी मा बैठ्याँ रंअदा छा. कबारी जब कैइ औंदा- जौंदाअ झिमलाटअन सग्वाड़ाअ खडिक पर घकचक मा बैठ्याँ घ्यंडड़ो डार फुर्र उड़ी जांदी छै , आर उर्ख्याल़ा ढेस- मळौणि जुप जुप बैठण वाळाआर दिवालि का दान्दा पर मोंण गडण वाळा घुगता इनाई उनाई टपराइक आपणा उड़ाण- खांटलोँ ल्हेइक सटगि जांद छा; आर लोळा भौण्याअ ण भसराअ, ज्यूजळौण्या स्यंटुल़ा छौदाणा मू सबा लगाइक 'चुचुचू ! टुर्र-टुर्र , च्वीं च्वीं , ढेंचु- ढेंचु ! मंसाराम जी की खौळ कन्नलगदा छा, तब ऊं का मुंडाअ लटला खड़ा ह्व़े जांद छा, ऊं की जिकुडि मा ततलाट मची जान्दो छौ आर दाअडि किटिकिटिइ गाळि देण लगदा छा....
असूज-कातिग और चैत-बैसाख आर भटग रुड्यू बी चिमड़ पान्चा सातां दिन गौं का ख्यचर्या गवैर छवारौं बटोळिक पंछ्युं का घ्वलू की चराख्वडि मा पाक्युन दुरु दुरु का भेळा-भंगार , बोण- बळवुंडा, बाड़ी-बड्यार, बोट-ब्वट्या, ढया-खया, गाड-गदना, चंगी औंदो छौ.कखी आंडरु फोड़ीइ घोल उज्याडि देन्दु छौ, कखी ल्वे-पाणी का फुकणा, घ्वलु का ल्वैसुरा बच्चों रुगडिक स्वटगिन धडकौंदु छौ, आर उ ? उ चीं ! क्यां-प्यां जनु ब्वलेंद वेका हुंदा- जलमदौ कु रोणअ हों ! फीर अज्ञलू झाड़ीअ ग्वफळौ आर सौळक्यडौ मा भड्याइक गौणिटांगणि , बूटी बाटि आफ चाटगाई छौ आर फान्जगा-फुन्जगा , आन्दड़ा प्यंदड़ा दगडा का फंडध्वळयाँ , अबोळ अखळेड ग्वैर छवारों ग्वल्याई देंदो छौ! कैकी सुता जाग न जाग , क्वीइ ध्यणो चा झिंझडौ, चिमड़ की हुकुम अर्दुली क्वीइ नि कै सकदो छौ (तड़कौणे जीइडअर रअन्दी छे . खिर्साइक कैइ नाणा केणा नौना की कुंगळि हात्युं आर स्वाळि सि गल्वाड़ तड़काई देव त उत बबराटनै मोंअरि जाव !) सौंजड्यों आर दगडा का काणा-कच्चों दगड नादिरसा अ छौ! काणों देखीअ वेका मुख पर मड्याञण पोड़ी जांदी छै! आर जथे गरुड़रिटद छौ उथे बिटि झप आँखा बुजी देन्दु छौ ! वे दिन हिंग्वसा न कागा द्योल लम्योंद कागू का ठञठु का ठवल्लौ से डाळा बिटि लमडद लमडद जोई बचे ! आर गरुड़ न त उ कफ़न काई भेळ जोग कै यालि छौ! सांसु देखा न वे चाडा पर चणण लगे. आर उ बि गरुडोद्योल खंदरोंळू !
ह्युन्द्- हिंवाळु चिमड़ गोद्युं को झमणाट ल्हेइक रातु-रातु नजखाण तांइ निपण्या चिमचोण्या गदनो रउ रउ की पैमाईस करदू रअदु उन्द छौ, आर बिन्सर्या धोरा झुळमुळ उठीअ फीर गदन्यू पौंछ जान्दो छौ. गडवाळ -उड्याळ त दीनैइ ख्वचरीइ दुंळयूँक्या होणा छा, हाँ कैकी गोद्युं पर क्वीई माछी प्वड़ीइ होन त ऊं घर ल्हाई जांदू छौ आर ऊं की जगा आपणी गोद्युं डौखा खण्याइ औंदु छौ.
सयाणा मा, जौं दिनु चमलो तड़ सिंग कालेज मा पढ़दु छौ, एक दिन उ ठाकुर जीहोस सिंग की बन्दुक ल्हेइक छत का बर्वठाअ भितर मल्यों का दोब मा बैठे . मल्यों डर्या छा ऐ नीन . कागो आय , वेण कागा पर इ फैर कर दिने . बस जी, ब्याखुनदा कागा को चांजोपांजो,निछानिछी चीर फाड़ सुरु ह्व़े गे. मैणमस्यालों दगड़ी भूटिभाटिक , उज्याई - गळाइक , अखंडि बणाइक तंदूराअ ढुंगळौ दगड़ी चाटी -पूंजीइ खैगे ! ब्वन लगे मॉस इ त च ! कळजेट को हो चा कागा को ! हमन बोले अजी दागदार जी, तुमन एक गलती कर दिने . छ, यपाडा का आंडरु आर कुर्गळा पीसिक बी धोळि छा ट हौर सवादी ह्व़े जांदु! द्वी फुल्का गअळा उंदी हौर छीरि जांदा . दगड्या खौंळेइ गैने , घंकाणेइ गैने, ! हैका दिन ऊन उ डेरो रो ई छोडि देय.
आभार- गाड म्यटेकी गंगा - पृष्ट १८१-१८३
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