उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Wednesday, August 26, 2015

व्यंग्य अर व्यंग कु टंटा

(व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , भावनाऊँ मिऴवाक  : भाग 3  ) 

                         भीष्म कुकरेती 

            चूँकि गढ़वळि  मा माध्यम नि हूण से कबि बि साहित्यिक  विमर्श अधिक नि ह्वे तो व्यंग्य अर व्यंग का  टंटा गढ़वळि मा नि ह्वे।  हिंदी मा सटायर तै क्वी व्यंग्य बुल्दु तो क्वी व्यंग।  चबोड़ , चखन्यौ गँवाड़ी शब्द माने गेन तो कवियुंन या समीक्षकुंन  कबि नि ब्वाल कि वु या फलणी चबोड़्या कवि /कवित्र्याणि  च। . व्यंग्य तै राजगद्दी मील अर चबोड़ , चखन्यौ शब्दुं तै गढ़वाली साहित्य या समीक्षा मा पटरानी रखैल /ढाँटणि (?) कु पद बि नि मील। बस शायद मि इ चबोड़ , चखन्यौ से चिपक्युं छौं  . निथर चाहे ललित केशवान हो  , पूरण पंत 'पथिक  हो ' या हरीश जुयाल हो सब अफु तै चबोड़्या /चखन्यौर्या नि बुल्दन बल्कणम   व्यंग्यकार बुल्दन।  असलम चबोड़ या चखन्यौ शब्द गढ़वळि मा कुछ कुछ नकारात्मक शब्द छन अर कमजोरी तै हंसी -मजाक मा दिखाणो कुण प्रयोग हुँदन अर वास्तव  मा छन  कतल्यौ करदारा शब्द अर कार्य।   
      पर जु व्यंग्य पर मि इथगा लिखण इ मिसे ग्यों तो व्यंग अर व्यंग मा भेद की छ्वीं त लगाणी पोड़ल कि ना ? व्यंग माने अंग मा कुछ ना कुछ कमी।  व्यंग्य  निर्देशन याने व्यंग पर आघात।  
 संस्कृत मा व्यंग्य शब्द अवश्य च अर अर्थ बि च पर आज व्यंग्य पर धारणा अलग च तो संस्कृत का प्राचीन साहित्य मा अलग धारणा छे । 
  संस्कृत काव्यशास्त्रीय अध्यन साहित्य माँ व्यंग्यार्थ पर बात ह्वेनि ना कि व्यंग्य पर। 
विश्वनाथ कु साहित्यदर्पण अनुसार अर्थ तीन प्रकार का हूंदन -व्याच्यार्थ ( अमिघा शक्ति द्वारा प्रतिपादित ) ; लक्षणार्थ (लक्षण शक्ति द्वारा बोधित ) अर व्यंग्यार्थ अर्थात जु व्यंजना शक्ति द्वारा अवगत कराये जांद। 
 साहित्यदर्पण मा व्यंग्यार्थ द्वी किस्मौ हूंद -
अ -गूढ़ प्रयोजनवती
ब- अगूढ़ प्रयोजनवती 
गूढ़ प्रयोजनवती  साहित्यिक व्यंग्य ह्वे अर इख्मा अध्ययन , मनन चिंतन से प्रतिफल प्राप्त हूंद।  तो अगूढ़ प्रयोजनवती आज  हिसाब से ठट्टा , सस्ता   हास्य आदि ह्वे। 
संस्कृत माँ वक्रोक्ति सिद्धांत च। 
वास्तव मा संस्कृत कु व्यंग्य एक व्यापक रूप च।  अर अंग्रेजी कु सटायर कखि ना कखि व्यंग्य का नजिक बैठद। 
अंग्रेजी कु सटायर लैटिन कु सैटुरा शब्द से निकळ।  सैटुरा शब्द कु अर्थ च उबड़ खाबड़ या गड़बड़झाला याने हौच पौच।  दुसरै निंदा /काट सटुरा का वास्ता प्रयोग हूंद  छौ। अमर्यादित नाटकुं वास्ता तो रोम मा 1965 मा बि सटुरा ही बोल्दा छ।   सटायर कु व्यापक रूप ह्वे गे जन भारत मा व्यंग्य अब एक व्यापक रूप मा प्रयोग हूंद।
भोळ -व्यंग्य की परिभाषा ह्वे सकद पर     .... 

18/8/2015 Copyright @ Bhishma Kukreti 

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments