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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, August 16, 2015

स्वतन्त्रता दिवस पर विशेष--- कुल्ली बेगारा

(सन्दर्भ :डा त्रिलोचन पांडे :कुमाउनी  भाषा और  साहित्य )

(इंटरनेट प्रस्तुती व व्याख्या - भीष्म कुकरेती )


ओ झकूरी यों ह्रदय का तारा , याद ऊँ छ जब कुल्ली बेगारा ।  . 
खै गया ख्वै गया बड़ी बेर सिरा , निमस्यारी डाली गया चौरासी फेरा । 
सुण रे पधाना यो सब पुजी गो , धान ल्या चौथाई घ्यू को ।
ह्यूंन चौमास , जेठ असाढ़ा नंग भुखै बाट लागा अलमोड़ी हाट। 
बोजिया बाटा लागा यो छिन कानै धारा , पाछी पड़ी रै यो कोड़ो की मार । 
यो दीन दशा देखी दया को कुर्माचल केसरी बदरीदत्त नाम । 
यो विक्टर मोहना ,  हरगोविन्द नामा , ये पूजा तीन वीर। 
सन इक्कीस उतरैणी मेला यो , ये पूजा तीन वीरा गंगा ज्यू का तीरा ।
सरजू बगड़ा बजायी लो डंका , अब नौ रौली यो कुल्ली बेगारा । 
क्रुक सन सैप यो चाये रैगो , कुमैया वीर को जब विजय है गो । 
सरयू गोमती जय बागनाथ , सांति लै सकीगे कुल्ली प्रथा ।



(स्वतन्त्रता आन्दोलन सबंधी लोक गीत 

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