(व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , भावनाऊँ मिऴवाक : ( भाग - 7 )
भीष्म कुकरेती
26/ 8/2015 Copyright @ Bhishma Kukreti
विद्वानुं मध्य या बहस पुराणि च कि व्यंग्य एक विधा (genre ) च या शैली (style ) च। व्यंग्यकार हरीश परसाईं का हिसाब से व्यंग्यौ क्वी स्ट्रक्चर नी च तो यु असल मा एक स्पिरिट च ना कि विधा। हरिशंकर कु बुलण च बल व्यंग्य कथा , निबंध , नाटकआदि मा लिखे जांद। व्यंग्य कु दायरा बृहद च अर हर विधा मा प्रयोग ह्वे जांद। परसाई का हिसाब से व्यंग्य सभी विधाओं तै समाग्रहीत करदो। व्यंग्य को इष्ट भाव प्रेषण च ना कि विधा।
डा श्याम सुंदर घोष का अनुसार - व्यंग्य लेखन मा वस्तु तत्व ही विधा शिल्प का शीर्ष मा चमकद। इलै इ कुछ लोग विधा तै व्यंग्य का अधीन समझदन।
रवीन्द्र र त्यागी का हिसाब से विधा तो तीन इ छन - गद्य , पद्य अर नाटक। व्यंग्य तो रस च जु कैं बि विधा मा प्रयोग ह्वे सकद।
डा बालेन्दु तिवारी कु मनण च बल जब क्वी शैली या प्रविधि भौत लिख्याणु हो तो फिर व शिल्प एक विधा कु सम्मान अफिक प्राप्त कर लींदु। याने तिवारी व्यंग्य तै विधा मंणदन।
पप्रा किरीट का हिसाब से व्यंग्य विधा ना बल्कण मा एक शैली मात्र च।
शेरजंग का मुताबिक व्यंग्य तै एक स्वतंत्र विधा नि माने जै सक्यांद किलैकि व्यंग्य जौं विधाओं मा साहित्यिक रूप मा उभरिक आंद वु त य वास्तव मा पैलि विधा छन -निबंध , उपन्यास , कथा , नाटक , कविता आदि। शेरजंग कु मनण च जनि व्यंग्य तै विधा मने जाल वु हास्य का तरफ अधिक ढळक जालो। हास्य व्यंग्य का वास्ता एक साधन अवश्य ह्वे सकद किन्तु साध्य नि ह्वे सकुद।
अर म्यार मनण च कि व्यंग्य वास्तव मा एक भौण च , शैली च ना कि विधा।
26/ 8/2015 Copyright @ Bhishma Kukreti
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