चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
मि ब्याळि बड़ु घंघतोळम थौ बल दिवळि -बग्वळि पर क्या लिखे जावु ?राजनीति पर लिखुद त दिवळि -बग्वळि मिठै पर दुःख को वर्क लग जाण छौ कि हम राजनीतज्ञों से क्या क्या उम्मीद करदां अर राजनीतिज्ञ हमारी उम्मीदों पर खुले आम रंदा लगै दीन्दन। पण स्वाच विचार कि यूं नाशपिटों पर लेखिक मिठै स्वाद पर रड्यांण ऐ जाण त खुशी मौक़ा पर किलै स्वाद कसैला करे जावो ? समाज का बारा मा लिखुद त फ़ोकट मा निराशा फ़ैल जाण। कख दिवळि -बग्वळि उलार -उत्साह को त्यौहार अर समाज - सामाजिक कार्यकर्ताओं पर लिखुद त पाठक विचारा निरुत्साहित ह्वे जाल।
मेरि ब्वेन पूछ - ये भीषम ! ई क्या छे रे तू उना -उना रिंगणि। कुछ तब्यत खराब च ?
मि - ना ना ! मि घंघतोळ मा छौं कि दिवळि -बग्वळि पर क्या लिखे जावु ?
ब्वे - इखमा सुचणै बात क्या च। तु अपणि ददि -ददों टैमौ दिवळि -बग्वळि पर लेख।
मि -क्या ?
ब्वे - कि कन लोग वैबरि द्वी द्यू बणवाणो बान दस दैं सुचदा छा अर द्यू ऐ बि गे त , तेलै टरकणि रौंदि छे , फिर स्वाळ पक्वड़ बणाणो कुण एक साल पैल सुचे जांद छौ कि ग्यूँ बुते जावन कि ना। एक पाथ ग्यूँ जगा दस पाथ जौ ह्वे जांद छौ। फिर चौंळु हाल बि ग्यूँ जन छौ। त वै बगत कैक चौक का दीवाल मा चार द्यू जळि गे तो समजे जांद छौ कि जरुर यीं मौ की फसल बिंडी ह्वे। भैर द्वी द्यू जलाण मा इथगा उत्साह हूंद छौ कि पैथरा बरसातौ चार मैनौं थक दिवळि -बग्वळि बगत पर उतरि जांदि छे। गरीबी छे पण उलार -उत्साह निडाणो/इकट्ठा करणो बिंडि साधन छा तब।
मेरि घरवळि - नै नै उथगा पैथर जाणै जरुरत नई च। तुम अपण जवानी टैमौ पहाड़ों मा दिवळि -बग्वळि पर ल्याखो कि कन प्रवास्युं लयां पैसा से दिवाली मनाणम बदलाव आयि कि ये बगत पर दिवाली मनाण से जादा दिवळि -बग्वळि मनाण तै दिखाण याने शो करणै शुरुवात ह्वे। दिवाली याने शोबाजी !
म्यार भुलाs ब्वारि - नै नै ! तुम सब लोग इख मुम्बई मा रैक बि म्यार पहाड़ , म्यार पहाड़ की छ्वीं करणा रौंदा। अरे कबि त मुम्बई का बारा मा ल्याखो ! आप मुंबई मा दिवळि -बग्वळि सेलिब्रेसन मा क्या क्या चेंजेज ह्वेन वै विषय पर ल्याखो।
ब्वे -ह्यां पण अपण पहाडुं पुरण संस्कृति त नि बिसरण चयांद कि ना।
भुलाs ब्वारि -सासू जी ! तुम हम तैं वर्तमान मा नि रौण दींदा। बस मेरो भूतकाल को पहाड़- मेरो भूतकाल को पहाड़ की रट लगैक हम तैं वर्तमानै ख़ुशी इंज्वाय नि करण दींदा।
म्यार नौनान ब्वाल - आंटी बिलकुल सै बुलणि च हम तैं प्रेजेंट मा रौण चयेंद। वी शुड लिव इन प्रेजेंट ऐंड नोट इन पास्ट। डैडी ! आप मुम्बई की दिवाली पर ल्याखो। मुम्बई मा रौंदा अर पहाड़ों की सोचदा। यू आर स्प्वाइलिंग पास्ट ऐंड प्रेजेंट ऐज वैल।
म्यार भैजिs नातीन ब्वाल - सभी गलत छन। ग्रैंड पापा शुड राइट फ्यूचर डीपावली । प्रेजेंट इज नथिंग बट प्योरली पास्ट। लेट अस बि फ्युचरिस्टिक , फ्यूचर ओरिएंटेड
म्यार नौनान पूछ - त डैडी तैं कखक दिवळि -बग्वळि पर लिखण चयेंद ?
म्यार भैजिs नाती- ग्रैंड पापा तै लिखण चयेंद कि भोळ जब भारतीय चाँद -मंगल ग्रह पर वास कारल त उख कै हिसाब से दिवळि -बग्वळि मनाला ? ऑक्सीजन नि हूण अर अलग खाणो ढंग से उख चाँद -मगल मा दिवाली -होली मनाणमा क्या क्या बदलाव आला जन विषय पर ग्रैंड पापा तैं लिखण चयेंद।
म्यार भैजिs नाती- ग्रैंड पापा तै लिखण चयेंद कि भोळ जब भारतीय चाँद -मंगल ग्रह पर वास कारल त उख कै हिसाब से दिवळि -बग्वळि मनाला ? ऑक्सीजन नि हूण अर अलग खाणो ढंग से उख चाँद -मगल मा दिवाली -होली मनाणमा क्या क्या बदलाव आला जन विषय पर ग्रैंड पापा तैं लिखण चयेंद।
सब नातीs बात सूणी इना उना चलि गेन। नाती अपण अल्ट्रा वीडियो गेम मा व्यस्त ह्वे गे अर मि घंघतोळ/आसमंजस्य मा छौं कि अपण दादी समौ की , अपण समौ की , इख मुम्बई की या फ्यूचर की दिवळि -बग्वळि मादे कखाकि दिवाली पर लेख लिखुं ?
आप को हिसाब से कखाकि अर कब की दीवाली पर लेख जादा सही , सटीक होलु ?
Copyright@ Bhishma Kukreti 2 /11/2013
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी के जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण वाले के भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य;सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]
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