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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, November 6, 2013

गां मा जीमण /फौड़

चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती 
     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )
 कति दोस्त -दगड्या मि तैं पुछदन बल - भीषम यार ! क्या बात ! तु गां नि जांदु ? तिसालि पूजा   होंदि तबि बि नि जांदु ? गां मा ब्यौ कारज  हूंदन तो बि नि जान्दि ?
अब मि क्या बोल कि अब गां गां नि रै गेन।  गांव बि अब मिनि टाउन जन ह्वे गेन। अब जीमण -जामण मा वा मजा कख रै गयाइ। 
एक टैम छौ जब गाँव मा क्वी जीमण ह्वावो त  द्वी तीन मैना पैल सरा गां का लोग चिंतित हूण शुरू ह्वे जांद छा कि ये ब्वे क़ुज्याण कैदिन लखड़ फड्याल अर कैदिन लखड़ लाणो जाण पोड़ल धौं।  तब शादी ब्यौ , जै जीमण एक संजैत कारिज  माने जांद छौ।  अब जैक घौरम जीमण हुणि च लखडुं इंतजाम करणै जुमेवारी वैकि हूंद।  अर पैसा ह्वावन तो कोटद्वार -ऋषिकेश से लखड़ मंगाण सरल हूंद बजाय कैकुण ब्वालो कि म्यार लखड़ फाड़ि दे या लखड़ सारि दे।  अब  सहकारी  कार्य को अर्थ च द्वी चार बोतल फुड़ण , चखणा वास्ता मुर्गा मारण  त इथगा मा त कोटद्वार -ऋषिकेश से ही लखङ लाण सरल पड़दन।    
फिर अब पत्तळू झंझट बि खतम ह्वे गेन।  थर्मोकोल का पत्तळ -गिलास ऐ गेन।  सहकारिता तबि तक भलि लगदि जब तक साधन नि ह्वावन।  सहकारिता मजबूरीक  नाम च।  अब लाबुं पत्तळु  जरूरत नी  च त सहकारिता बि जंगळम माळु बुज्या पुटुक बैठि गे। 
पैलो जमनम जीमणो बान पाणि लाणो बान बि सहकारिता क दर्शन हूंद छौ त अब पाणि गांव मा ऐगे।.  अब सहकारिता आदिनिवास्युं निसाणी ह्वे गे अर अब क्वी बि आदिवासी नि दिख्याण चांदो  त सहकारिता बि सिंवळ बौणि कै गदन मा इकुलस्या दिन काटणि च। 
पैल जीमणो बान खाणौ बणाण एक सामाजिक जुमेवारी छे।  हरेक मनिख अपण अपण हिसाब से जुमेवारी निभै जांदो छौ।  अब हर पट्टी , हर क्षेत्र मा कैटरिंगै   दुकान खुलि गेन त सर्यूळ फर्यूळ ह्वे गेन।  कैटरर आंदो अर सब काम कौरिक चलि जांद।  पैल इना फौड़ मा खाणक  बणनु रौंद छौ अर बगल मा लोग दुनिया भर की छ्वीं लगांदा छा।  अब इना कैटरर खाणा बणाणु रौंद त लोग बाग़ अपण ड्यारम सास भी कभी बहू थी जन सीरियल दिखणम व्यस्त रौंदन, फिर  पीण-पिलाण जन महत्वपूर्ण कार्यक्रम छन।    अर लोग तबि जीमण का पास तबि आंदन जब भोजन परोसणो तैयारी चलणी  ह्वावो। गां मा बि शहरं जन जीमण खाण अब एक औपचारिक कार्यक्रम ह्वे गे। जीमण कु असली मजा इन्वॉल्वमेंट मा छौ , जीमण को जजबा शामिल हूण अर सम्म्लित कार्य करण मा छौ , जीमण को परम आनंद भागीदारी मा छौ अर जब अब हम भागीदारी ही नि निभांदवां  त जीमण को मजा बि दूर ह्वे गे।   सहकारिता गरीबीs  जेवर च अर अब गरीब क्वी नी  च।  
त मि बोल्दु बल जब गां अर शहरूं मा अंतर नि  रै गे त क्या गाँव अर क्या शहर तो फिर गां जैक क्या करण ? 



Copyright@ Bhishma Kukreti  7 /11/2013 


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