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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, November 10, 2013

तिमला और बेडू की व्यावसायिक खेती

   डा. बलबीर सिंह रावत 

तिमला , यानी अंजीर , और इस का रिश्तेदार बेडू , उत्तराखंड के हर क्षेत्र में अपने आप उगने वाले फल दार पेड़ हैं। लोग इसके फलों को चाव से खाते हैं , लेकिन इसकी खेती नहीं करते। तिमला , जिसे हिन्दी नाम अंजीर से जाना जाता है, एक लाभ दायक फल है जो सूखा मेवा की तरह बेचा जाता है , जिसका सेवन पेट को  तन्दुरुस्त रखने के लिए किया जाता है।  
सन 2007 में विभिन्न मुख्य पांच उत्पादक देसों मे अंजीर का उत्पादन इस प्रकार था 
देस ------------------हजार टन 
मिश्र -------------------2 62 
टर्की -------------------210 
ईरान -----------------88 
अल्जीरिया ---------64 
मोराको -----------63 

यह फल प्रकृति की अनूठी रचना है की यह तना भी है और फूल भी , बाहरी आवरण तने का हिस्सा होता है और इसके शूक्ष्म फूल इसके अन्दर होते हैं जो दिखाई नहीं देते। भारत में अंजीर महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडू , उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में होता है, लेकिन भारत की भागीदारी विश्व उत्पादन स्तर पर बहुत कम है।  विश्व भर में १० लाख टन के लगभग अंजीर का उत्पादन होता है , और इसमें अकेले तुर्की से, ३० % आता है।  ताजा अंजीर की बाजार में मांग बहुत कम है,इस लिये इसके सकल उत्पादन  का ८०% भाग सुखाकर बेचा जता है   सुखा कर सूखे मेवों के रूप में बेचा जाता है।  अंजीर में ऊर्जा, प्रोटीन, केल्सियम  और लौह  प्रचुरता मे पाया जाता है और यह रेचक भी है तो  इसका उपयोग पाचन तंत्र को ठीक रखने के लिए किया जाता है। 
बाजार में सूखे मेवे के रूप में अंजीर की कीमत  साढ़े तीन ,चार सौ रूपये प्रति किलोग्राम के आस पास रहती है  जो ताजे ७-८ किलो ग्राम के लगभग होता है और करीब ५० रूपये प्रति किलो  होती है . अगर इसका आधा भी उत्पादक को मिलता है तो अंजीर की खेती लाभ दायक हो सकती है। 
अंजीर के लिए नम लेकिन अच्छी जल निकासी वाली दोमट  और क्षारीय मिट्टी वाली भूमि उपयुक्त होती है, जिसमे ऊपरी सतह में लगभग ४ फीट मिट्टी हो, जड़ों के सही विकास के लिए । चट्टानी जगहें उपयुक्त नहीं होतीं। 
जिस भूमि में अंजीर का बाग़ लगनो हो , उसमे मई के महीने में , १५ फीट x  १५ फीट की दूरियों पर डेढ़ फीट व्यास के दो फीट गहरे गड्ढे खोद कर  दो हफ्तो के लिए खुला छोड़ दें , फिर उनमे खाद, हो सके तो नीम की खली, और  नाइट्रोजन , फॉस्फोरस और पोटाश वाले उर्वरक और मिट्टी मिला कर गढ़े भर दें। प्रति एकड़ करीब १६० गड्ढे बनेंगे (प्रति नाली ८ )
अंजी के पौधे , पुराने पेड़ो से ५ -६ आँखों वाली, १० इंच ( २५ सेंटीमीटर ) लम्बी , पिछले साल निकली टहनियों से काट कर ली जाती हैं।  रोपण के लिए बरसात का समय सबसे अच्छा रहता है। 
तीन साल की उम्र में पेड़ फल देना शुरू करता है, प्रति पेड़ ३ किलो फल मिलते हैं , ४ साल के पेड़ से ६ किलो, ६ साल वाले से १२ किलो और ८ साल से १८ किलो प्रति किलो , या २८०० -३००० किलो प्रति एकड़ फल मिलते  हैं।  समुचित विक्री प्रबंध हो तो क्रेट में भरे फल ५० रूपकये प्रतिकिलो के हिसाब से बिक सकते हैं। चूंकि अब स्थानीय बाजारों में फलों की मांग बढ़ रही है तो ताजी अन्जीरें आसानी से बिक सकती हैं।  अंजीर के पेडो की छाया कम होती है, इसलिए इसके बगीचों में मौसमी सब्जिया , मूंग, मसूर जैसे दलहनी फसलें भी ली जा सकती हैं।   

अंजीर के फलों की गुणवता तो ग्राहकों को ज्ञात है , लेकिन फल जल्दी ही ख़राब हो जाते हैं। अगर स्थानीय बाजारों में मांग कम है  तो इन्हें सुखा कर बेचना ही उचित है। सुवे अंजीर बनाने के लिए अलग से प्रबंध करने होते हैं , तो एक ही क्षेत्र में पर्याप्त बाग लगें तो ही यह सम्भव है ।  

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