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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, November 14, 2013

अपड़ो ही क्षेत्र मा बेटि ब्यो करण नामुश्किल किलै च ?

  चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती 

     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )
कुजाण कथगा सालुं मा परसि अपण ममा कोट  ग्यों धौं। 
 चार छै लोग बजार बिटेन शराब की जग्वाळ  मा बैठ्यां छा बल  द्वीएक पैग गौळुन्द जावन अर सबि  ग्राम विकास का मुद्दा पर गहन विचार कौर साकन । अचकाल बिचरू ग्राम विकास बि शराब की जग्वाळ करदु । 
इनि बोर हूणा छा कि सुरेन्द्र मामन  बात शुरू कार ," अरे कखि मेरि बेटि कुण बि नौनु द्याखा रै ! MA कौरी याल अर ब्यौ नि ह्वाल त झख मारिक मी तैं PhD कराण पोड़ल !"
सुरेन्द्र मामा अपण बेटि छ्वीं शुरू करण थौ कि पंडि जी बि ऐ गेन अर बुलण बिसेन ," मीन सूण कि बजार बिटेन मॉल मसाला आणु च त …।   "
सब्युंन बोलि ," हाँ हाँ ! द्वी घुटांग लगै जा। "
सुरेन्द्र मामन  बोलि ,"क्या पंडि जी ! तुमर हूंद बि मेरि बेटि अणब्य्वा च ?"
पंडि ,"जी  त समिण गौंक गजेन्द्रs नौनु दगड़ टीप मिलै द्यावो !"
जन्ना नना न बोलि ," न्है न्है ! बेटि बुड्या बि किलै नि ह्वे जावो हम समिण गां मा हम अपण बेटी ना त द्योला ना इ वै गां बिटेन ब्वारि लौंला !"
मीन पूछ ," कनो , किलै ?"
जन्ना नना   ," अरे म्वाड़ मोरल ऊँ समणि गौं वाळुन्क ! तौंक गांक पाणि गदन बिटेन हमर गांव कुण पाणि नळ आण वाळ छा कि तौन इन ढकोसला कार कि पाणि नि ऐ साक।  ये पाणि पर द्वी गाँव वाळु मध्य भौत बड़ो झगड़ा ह्वे तीन   साल ह्वे गेन हम वै गां वाळु भिड्युं पाणि त छ्वाड़ा हम ऊंक मुख दिखण बि पाप समजदां। "
पंडि जी - त  तौळ  गांव को राजेन्द्रक नौनु बि अणब्यवा च !
जन्ना नना  - पंडि जी ! तौळ  गाँव वाळु नाम लेल्या त हम तुम तै इ छोड़ द्योला  फिर चाहे हम तैं कै शिल्पकार तैं इ बामण किलै नि बणाण पोड़ल धौं ! 
मीन ब्वाल -पण तौळ  गाँव वाळु दगड़ त आपक  रिस्तेदारी छे ?
जन्ना नना  -रिस्तेदारी जावो भाड़ मा।  सालोंन हम तैं चार दिन जेल दिखाइ।
मीन पूछ - क्या व्हाइ छ्याइ कि जेल जाण पोड़। 
जन्ना नना  -अरे ऊ  पली सारिक  हमर बेकार बगदो पाणि नि छौ ?   सरकारन वै पाणि तै तौळ गां वाळ तै दीणो  फैसला कार अर उख बौड़ी बणै दे , सरकारी कारिंदा नळ लगाण इ वाळ छा कि हमन बौड़ि तोड़ि दे अर वै पाणि तै इन खत्यायी कि पाणि ई चौळ ग्याइ,
सुरन्द्र मामा - हाँ अपण अधिकार की लड़ाई छे।  ठीक च हम चार दिन जेल रौंवां  अर  मैना कोर्टम हाजरी दीण पोड़द पण हमन बि सालों तैं अपण पाणि नि लिजाण दे। 
गोविन्द भैजि -अब हम ऊंक सारीम बि कदम नि धरदा ना वो हमर सारी तरफां दिखदन।  जर , जोरू अर अपण पाणि पर कैतै  अधिकार किलै  दिए जावो भै ?
पंडि जी - अगल -बगल  गांव मा भूपेंद्रक बि नौनु च ?
हरी मामा - पंडी जी अगल -बगल  गाँव वाळ ? कतल्यो ह्वे जालो जु हमर गांवक बेटी उख दिए जाव अर वै गां बिटेन ब्वारि लये जावो। 
मी - हैं पण मामा ! ननि याने तुमर मां त अगल -बगल  गाँव की  ही च ?
हरी मामा - त क्या ह्वाइ ? ऊंक गदन जैक पाणि वो सुपिन मा बि इस्तेमाल नि कर सकदन।  वै   बिटेन हमर गां कुण सिंचाई बिभाग की नहर स्वीकृत ह्वे गे छे पण सालों ने  ऐसा पेंच लगाया कि हमर इक नहर नि ऐ साक।  मि ना त अपण ममाकोट जांद ना म्यार ममाकोटी इना खुट धौर सकदन।  'अगल -बगल' अर हमर गां  इन छन जन कश्मीर का मामला मा हिंदुस्तान -पाकिस्तान। 
पंडि जी - अब मि बुलल कि 'न्याड़ -ध्वार' गां मा प्रोफेसर नौनु च तो बि तुमन बुलण कि बेटी तैं ज़िंदा इ खड्यार द्योला पण बेटि 'न्याड़ -ध्वार' मा नि दीण।
गोविन्द भैजि -हां तो ! इ 'न्याड़ -ध्वार' गाँ वाळ हम तै क्या समजदन ? साले हमारे गदन से सिंचाई के लिए नहर ले जा रहे थे।  हमन बि इन खुरापाती दिमाग  लगाइ कि सौ साल तक तो 'न्याड़ -ध्वार' गां वाळ हमर  गदन से पानी नै लिज्या सकते हैं।  
पंडी जी - द्याखो ! सरा अडगैं (क्षेत्र ) मा पाणि बान हेरक गांवक  एक हैंक गांवक दगड़ भयंकर झगड़ा चलणु च कि अब आस -पास ब्यौ करणि बंद ह्वे गे त अब तुम दूर ही ब्यावो बात चलावो ! 
 

Copyright@ Bhishma Kukreti  15/11/2013 


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