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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, November 20, 2013

भीषम ! जरा ये रूंद नौनु तैं हँसै दे

 चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती 

     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )
जु म्यार स्कूल या कॉलेजो दगड्या छन या म्यार गांवक पुरण लोक छन वु म्यार आजौ तीन चरित्र देखिक खौंळे जांदन कि मि चेन स्मोकर छौं , मि शराब बि पींदु अर सबसे बड़ी खौंळेणै बात च बल मि व्यंग्य लिखुद। 
  सबसे जादा आश्चर्य म्यार दगड्यों तैं म्यार व्यंग्य लिखण पर हूंद।  वूंक बुलण च बल जो साम्यवादी , असलियतवादी साहित्य को प्रेमी ह्वावो वो हंसोड्या साहित्य लेखि नि सकुद। 
जादातर लोग समजदन कि व्यंग्य साहित्य  हास्य साहित्य हूंद।  
अधिकतर लोग समजदन कि मि महमूद या कपिल शर्मा जन हंसांदु।  
 तबक छ्वीं छन मुंबई मा गढ़वाली समाज मा अफवाह फैलि गे कि मि हास्य -व्यंग्य लिखुद बस लोगुं मांग शुरू ह्वे गेन कि मि जोक्स सुणौ !
एक दिना बात च , मि सड़क क्रॉस करणु छौ कि समिण पार सैन सिंगन मै देखि अर  खत खत हंसण बिसे गे।  लोगुन समज वै पर पागलपन को दौरा पड़ि गे। 
मी सैन सिंगम पौंछु अर पूछ - ये भै सैन सिंग क्या ह्वाइ भै ?
सैन  सिंगन और जोर से हंसद हंसद ब्वाल - ओ भैजि ! तुम तैं देखिक ही हंसी ऐ जांद , ही ही ही .... ।
मीन अपण कपड़ों पर ध्यान दे तो कपड़ा साधारण ही छा।  तो मीन पूछ- कनो क्या ह्वे ग्यायि ?
सैन  सिंग की हंसी बंद नि होणि छे , हंसद हंसद वैन जबाब दे - मीन सूण बल तुम गढ़वाळी मा जोक्स  लिखदा बल ! ही ही ही .... । जरा एकाद जोक त सुणाओ।  ही ही ही .... ।
 मीन बड़ी मुस्किल से सैन सिंग तैं समजाई कि मि व्यंग्य लिखुद ना कि जोक्स।  सैन सिंगs हिसाब से व्यंग्य अर जोक्स मा क्वी अंतर नी च। 
एक दैं एक पछ्याण वाळ म्यार ड्यार ऐन अर बुलण मिसे गेन बल - भीषम यार ! मि उना कखि जाणु छ्यायि कि स्वाच कि चलदा चलदा गढ़वाळी जोक्स बि सूण ल्यूं।  जरा एकाद बढ़िया गढ़वाळी जोक्स सुणै दे।  दिखला कि गढ़वाळी अर हिंदी जोक्सुं मा क्या अंतर हूंद धौं। 
मीन चायक  प्याला पकड़ांद पकड़ांद वूं तैं जब व्यंग्य अर जोक्स मा अंतर बिंगाइ कि व्यंग्यकार गंदगी दिखादं अर वीं गंदगी तैं साफ़ करदो तो वूं तैं चरचरी मिठि चाय बि क्वाथ जन कडुवी लग। 
एक दैं एक सांस्कृतिक सभा मा उद्घोसकन अनाउंस कौर दे कि अब मुम्बई के घना भाई या मुबई के जूनियर महमूद श्री भीष्म कुकरेती गढ़वाली में जोक्स और चुटकले सुनाएंगे। 
मीन जब लोगुं तै बताइ कि मि व्यंग्य लिखुद अर चुटकला नि लिखुद। मीन जब समझाइ कि व्यंग्य एक गम्भीर आलोचना हूंद अर व्यंग्य मा हास्य केवल मसाला जन हूंद  त एक  दर्शकै  आवाज आइ - जावो ! जावो ! बैठ जावो ! व्यंग्य क्वी सुणाणै चीज च ?
एक दिन हमर पट्टीक क्वी मोरि गेन।  मी बि श्मशान ग्यों।  जन कि रिवाज च बल कपाल क्रिया बाद मृतक तै श्रद्धांजलि दिए जांद।  खमण का अर मुम्बई मा नामी गिरामी सामजिक कार्यकर्ता श्री रमण  कुकरेती श्रद्धांजलि दीणो विशेषज्ञ छन. वू वैदिन नि ऐन।  त कैन बोलि दे - तै भीषम से ही श्रद्धांजली भाषण बुले द्यावो।  त पैथर बिटेन एक आवाज आइ ," श्रद्धांजलि दीण ! जोक्स थुड़ा सुणान !:
खैर मीन श्रद्धांजली वक्तव्य दे त लोगुं तैं भर्वस ह्वे कि मी गम्भीर वक्तव्य बि दे सकुद छौं। 
 इथगा सालुं मा  मीन कुज्य़ाण कथगा दैं हरिशंकर परसाई जीक शब्द दोरैन कि "व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार करता है , जीवन की आलोचना करता है , विसंगतियों , मिथ्याचारों और पाखंडो का पर्दा काटा करता है " पण अबि बि लोग बुल्दन बल "यार भीषम ! यु नौनु रुणु च जरा जोक्स सुणैक ये रुंदा तैं हँसै दे ' 


Copyright@ Bhishma Kukreti  21/11/2013 



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