भीष्म कुकरेती
काली प्रसाद घिल्ड़ियालौ गढ़वळि कथा संसार
Copyright @ Bhishma Kukreti 16/11/2013
आज जब दिल्ली बिटेन पाराशर गौड़ जीक फोन आयि बल काली प्रसाद जी गुजर गेन। मीन दिल्ली गढ़वाळी कवि श्री जयपाल रावत जी कुन फोन लगाइ त ऊँ तैं बि नि पता छौ कि गढ़वळि गद्यौ खाम यीं दुनिया मा नि छन। जय पाल जीन साहित्यकार श्री रमेश घिल्डियाल जी से पता लगाइ त श्री रमेश घिल्डियाल जीन उत्तराखंड पत्रिका क नवंबर 2013 अँकौ हवाला से बताइ कि श्री काली प्रसाद जीक देहावसान 22 अक्टूबर 2013 दिन न्वाइडा (उ प्र ) मा ह्वे।
या एक त्रासदी च कि हम अपण पुराणा साहित्यकारुं बारा मा उदासीन छंवां। कै साहित्यकारौ स्वर्गारोहण का एक महीना बाद तक हम तैं पता इ नि चलदो कु बच्युं च अर कु ज़िंदा च। काली प्रसाद घिल्डियाल कु आजौ गढ़वळि साहित्य तै प्रखर योगदान का बारा मा सवर्णिम अक्षरुं मा लिखे जाल।
काली प्रसाद घिल्ड़ियालौ जनम पदल्यूं , पट्टी कटळस्यूं , पौड़ी गढ़वाळम सन 1930 मां ह्वे। घिल्डियाल जी दिल्ली माँ सरकारी नौकरी करदा छा।
काली प्रसाद घिल्ड़ियालौ गढ़वळि नाटक
काली प्रसाद घिल्ड़ियालौ गढ़वळि नाटक
काली प्रासाद घिल्डियाल का तीन गढ़वळि नाटक मचित ह्वेन।
कीडु ब्वे -कीडु ब्वे नाटक एक इन विधवा ब्वेक संघर्ष की कथा च जैन अपण इकुऴया नौनु तै उच्च शिक्षा दीणो बान पड्याळ -मजदूरी कार अर वु नौनु बड़ी नौकरी पांदु। पण नौनु नौकरी पाणो अर ब्यौ हूणो बाद अपण मां क अवहेलना करदु। ब्वे अपण नौनो अवहेलना -उदासीनता से अतयंत दुखी ह्वेक मोरि जांद। ये नाटक मा घिल्डियाल जी गढ़वाळौ एक ख़ास युग दिखाण सफल ह्वेन अर कथगा ही भाव पूर्ण दृश्य ये नाटक मा छन ।
दूणो जनम -दूणो जनम छुवाछूत संबंधी नाटक च जखमा ग्राम सभा का सदस्यों अर सरकारी प्रशासन का शिल्पकारों प्रति दुर्भावनापूर्ण कुटिलता दर्शाये गे ।
रग ठग -रग -ठग नाटक एक पुत्रविहीन दम्पति कथा च जखमा या दम्पति एक उछ्दी नौनु तेन गोद लींदन अर वैक ब्यौ करदन। जब वै बच्चा ब्यौ हूंद त दम्पतिs बि बच्चा ह्वे जांद। ये नाटक की मूल कथा च कि भगवान सदा न्याय ही करद।
श्री पराशर गौड़ का अनुसार काली प्रसाद घिल्डियाल 'किशोर 'का सबि नाटक सरोजनी नगर कम्युनिटी हाल, दिल्ली मा खिले गेन।
मेरी सितम्बर 2012 मा भग्यान काली काली प्रसाद जी दगड़ फोन पर छ्वीं लगी छे। काली प्रसाद जीन बतै कि ऊनं न तकरीबन 20 कथा लेखिन।
कुछ कथौं बिरतांत इन च।
अबोध बंधु बहुगुणा जीन काली प्रसाद जीक 'कुछ न बोल्यां (हिलांस मई , 1984 ) अर विरणु जीवन (हिलांस , अप्रैल 1984 ) की बड़ी प्रशंसा कार। .
रूपा बोडी -रूपा बोडी (हिलांस , अगस्त 1984 ) एक मनोवैज्ञानिक कथा च। इखमा रूपा बोडी तैं अपण कजे सुटकी मार खाणम बेहंत मजा , आनंद आदु।
सतपुळी डाकबंगला - सतपुळी का डाकबंगला (हिलांस, मार्च 1985 ) एक संस्मरणात्मक शैलीs मा द्वी बैण्यूं एक मनिख से प्रेम से उपजीं प्रतियोगिता अर मनभावुं कथा च। कथा सतपुळीs भौगोलिक -सांस्कृतिक चित्र का अलावा मानवीय मनोवैज्ञानिक का कथ्या भेद बि खुलद।
खट्टी छांच -खट्टी छांच (हिलांस ,दिसम्बर 1985 ) आर्थिक अर भावनात्मक शोषण की कथा च। यीं कथा माँ घिल्डियाल जीक चरित्र चित्रण करणै क्षमता गुण दृस्टिगोचर हूंदन।
जोग लहर - जोग लहर (हिलांस , मई 1988 ) गढ़वाली दार्शनिक कथाउं मादे एक भौत ही बढ़िया कथा च। या कथा सिद्ध करदी कि काली प्रसाद जी आकर्षक कथा बुणण म उस्ताद छा। घिल्डियाल जीन दर्शन जन गम्भीर विषय तैं बड़ो ही सरल ब्योंत से बिंगाइ।
मनख्यात -मनख्यात (हिलांस ,जुलाई , 1988 ) कथनी अर करनी पर चोट करण वाळ कथा च। एक सवर्ण लिख्वार अछूत उद्धार पर साहित्य रचद पण जब समय आंद त जात -पांत भेद मा ही शामिल हूंद।
बंद कपाट -बंद कपाट (सितंबर , 1988 ) एक इन जनानीक संघर्ष कथा च जैंक पति घौर से दूर च अर एक मर्द वींक शारीरिक शोषण करण चांद , वा विरोध करदी । फिर वींक पति अर समाज बि शोषकुं साथ दींदन। कथा मा गढ़वाली शब्दुं प्रयोग दिखण लैक च।
दूसरी मौत - दूसरी मौत (हिलांस , जनवरी ,1989 ) एक मनोवैज्ञानिक कथा च। काली प्रसाद घिल्डियाल इन इन चरित्र गठ्याँदन कि गढ़वाली कथाओं तैं एक नई गरिमा , चमक मिलदी।
स्याणि - स्याणि (हिलांस मई 1989 ) बि एक मनोवैज्ञानिक कथा च। कथा मा माँ कि इच्छा अर पुत्र की महत्वाकांक्षा व अभिलाषा बीच संघर्ष अर तनाव की कथा च। असलियतवादी कथा आधुनिक गढ़वाली कथाउं मादे एक बड़ी महत्वपूर्ण कथा च।
सहारा - सहारा (हिलांस , सितम्बर , 1989 ) एक प्रतीकात्मक शब्दुं से कथा लिखणै शैली बान याद करे जाली। कथा बतांदी कि लता अर जनानी तैं एक सबल सहारा की जरूरत हूंद। कथा स्त्री द्वारा भौतिक सहारा लीण अर भावनाउं मध्य द्वंद की बि खोज करद।
रग ठग -रग ठग (हिलांस , अक्टूबर ,1990 ) एक प्रेरणादायक कथा च। पण प्रेरणा दायक कथा हूण पर बि असलियत का समिण दिखेंद।
किस्सा बिंदु का - किस्सा बिंदु का (रंत रैबार , अक्टूबर , 2011 ) मनुष्य द्वारा जानवरों बच्चा दगड़ असीम प्रेम की अनोखी, रहस्य भरीं कथा च।
घिल्डियाल जी सरल शब्दुं मा कथा रचद छा अर कथा माँ सदैव आकर्षण रौंद कि बंचनेर तै पूरी कथा पढ़न पड़द। गढ़वाली मुहावरा , चित्र , प्रतीक का प्रयोग काली प्रसाद की खासियत च। कथा मा एक मोड़ अवश्य रौंद। बचऴयात - वार्तालाप असली लगदन।
काली प्रसाद घिल्डियाल की मनो वैज्ञानिक कथा आधुनिक गढ़वाली कथाओं मी विशिष्ठ कथा छन। काली प्रसाद घिल्डियाल की कथाओं मा जनान्युं चरित्र खासकर ग्रामीण गढ़वाली जनान्युं मनोवैज्ञानिक चरित्र समिण आंद। कथा असलियतवादी छन अर इन लगद कि कथा की घटना पाठक का न्याड़ -ध्वार घटणि छन। प्रतीक संयोजन से कथा मा असली बिम्ब समिण आंदन।
काली प्रसाद घिल्डियालौ गढ़वाली गद्य माँ एक विशिष्ठ व चिरस्मरणीय स्थान च।
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