चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
मीन गरीब से पूछ ," तुम कथगा खाणा खांदा ?"
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
मीन गरीब से पूछ ," तुम कथगा खाणा खांदा ?"
गरीब - साब कथगा माने क्या ?
मि -मलसन तुमर परिवार कथगा भुजि खांद ?
गरीब -यि त भुजि कीमतों पर निर्भर करद
मि - मतबल ?
गरीब -जनकि अजकाल गोभी आठ अन किलो सस्ती ह्वे गे त हम सबि खुसी खुसी एक एक जखेलि गोभि खै लीन्दा
मि - बंद कारो एक जखेलि गोभि खाण बि.
गरीब - अरे एकै जखेलि गोभी खाण बंद करि द्योला त फिर रुटि क्यांमा खाण ?
मि -अरे तुम लोग गरीब छावो त गरीब जन रावो
गरीब -त हम एक जखेलि भुजि मा सात आठ रुटि त खांदा !
मि -नै नै तुम तै क्वी हक नी च कि तुम भुजि का सुपिन बि द्याखो
गरीब -त रुटि क्यामा खाण ?
मि -जन पैल खांद छा ?
गरीब -प्याज मा ?
मि -हां
गरीब -साब प्याज मैंगो ह्वे तबि त हम अब भुजि तरफ दिखणा छंवां
मि -नै नै ! कुछ बि कारो तुम भुजि खाण बंद कारो।
गरीब -पण साब कुछ दिन पैल त तुमन सलाह दे छे कि हम गरीबुं तैं खरीदी बढ़ाण चयेंद
मि -तब वित्त मंत्री अर प्रधान मंत्री रूणा छा कि भारत मा उपभोक्ताओं खपत नी बढ़णि च त मीन देश की आर्थिक दसा सुधारणो बान तुम गरीबों तैं सलाह दे छे कि खपत बढ़ावो।
गरीब -अर अब क्या कांड लगि गेन जु तुम हम गरीबुं तैं सलाह दीणा छवां कि भुजि खाण बंद कारो। कु असुण्या , बिलंच , बेगैरत , बेरहम हम गरीबुं से जळणु च ? वैकि त जीब रुंगड़ी दीण चयेंद !
मि -नै नै ! वु गरीबुं सबसे बड़ा हितचिंतक छन पण वूंक स्टेटिस्टिक्स बताणि च कि अब समय ऐगे कि देस हित , देसौ आर्थिक हितार्थ गरीबुं तैं भुजि नि खाण चयेंद।
गरीब -जरा बतावो त सै वैक नाम जु बुलणु च कि गरीबुं तैं भुजि नि खाण चयेंद। मि वैक दांत तोड़ि द्योलु ,वैक आँखि फोड़ द्योलु , वैक झुगल्युं पर आग लगै द्योलु ! कुलैल्वैखतरी (माथे के नीचे वाला हिस्सा फोड़ना ) कौरि दींदु।
मि -तुम गरीबुं मा ये ही बीमारी च तुम असंवैधानिक शब्दों प्रयोग करदा। अब हिंसा की बात पर केवल नेता या आतंकवाद्यूं अधिकार च !
गरीब -नै तुम बतावो त सै वैक नाम जु बुलणु च बल गरीबुं तैं भुजि नि खाण चयेंद मि वैक हत - खुट नि तोड़ि द्यूं त म्यार नाम बि गरीब नी च।
मि -नै नै भै ! वो त देस हित मा हि बुलणा छा।
गरीब -क्या ?
मि -कि चूंकि गरीबुंन द्वि भुजि खाण शुरू कौर त मंहगाई , इनफ्लेशन बढ़ी गे !
गरीब -वै , जालिम , जालिया (धोखेबाज ) , कोढ़ीक नाम त बतावो ? वै पर चीरा लगैक कवौं मा नि बाँटि द्योलु त म्यार नाम गरीबी लिस्ट से निकाळ देन।
मि -देखो ! गरीबुं तैं गुस्सा नि हूण चयेंद । वो बड़ा जुम्मेवार पद पर छन अर मंहगाई से भौत परेसान छन. देस मा मंहगाई बढ़ण से वूंकि भूक -तीस -निंद हर्चीं च । वो चाणा छन कि मंहगाई कम ह्वे जावो। तो ऊं तैं मंहगाई बढ़णो एकि कारण नजर आयि कि चूँकि गरीब लोगुंन भुजि जादा खाण शुरू कार तो मंहगाई बढ़ गे।
गरीब -वै मूर्ख, पाजी , अज्ञानी , अहमक तै ब्वालो कि मंहगाई इलै नि बढ़ कि गरीब लोग सब्जी जादा खाणा छन।
मि -त फिर मंहगाई किलै बढ़ ?
गरीब -मंहगाई इलै बढ़ कि संसाधनो पर द्वी चार लोगुं अधिकार ह्वे गे , सरकारी योजनाऊँ कु अद्धा से जादा पैसा त भ्रस्टाचार्युं तिजोरी जोग ह्वे जांद।
मि -पण आर्थिक सर्वेक्षण यीं बात पर सहमत नी च।
गरीब - जरा वै कमदिमग्या नाम तो बताओ जु झूट बुलणु च?
मि -अपण केंद्रीय मंत्री श्री कपिल सिब्बलन ब्वाल कि गरीबुं आय -इनकम बढ़ण से गरीबुंन दु दु भुजि खाण शुरू कार त मंहगाई बढ़ गे।
गरीब -सॉरी ! मि अपण सौब अल्फाज वापस लींदो।
मि -कनो क्या ह्वाइ ?
गरीब - वै वकील कपिल सिब्बल की दलीलों समिण ज्यूंरा बि नि जीत सकुद त हम गरीबुं औकात क्या च ? एक बात बतावो चुनाव कब छन ? छन कब चुनाव ?चुनाव की तारीख बतावो ?
मि -कनो चुनाव अर मंहगाई को क्या संबंध ?
गरीब -इन बेरहम , निरदयी , गैरजरुरी , संवेदनहीन, गैरवाजिब , गरीबुं मजाक -हंसी उड़ान वळ , गरीबुं घावुं पर लूण -मर्च लगाण वळ कुतर्कों /दलीलुँ का असली , सुडौल जबाब त केवल वोटिंग मशीन का पास ही च !Copyright@ Bhishma Kukreti 24/11/2013
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी के जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण वाले के भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य;सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य ; अन्धविश्वास पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]
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