गढवाली लोक नाटकों / लोक गीतों में विबोध भाव
Review of Characteristics of Garhwali Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays part -44
Awakening means downing the alcohol or addiction effect, coming to reality and remembering the event. Many times, a person is deeply focused on a thought and comes to point of awareness by disturbance. In the position of awakening, person does many acts.
According to Bharat’s Natyashastra (7/76), awakening sentiment in drama is demonstrated by yawning, rubbing the eyes, leaving the bed etc.
There are many examples of awakening sentiment in Garhwali folk drama or community ritual dramas.
There are two scenes of awakening sentiment in the following folk song or Jagar a religious ritual song of Arjun Vasudatta love story. In the following poetic folk drama, first the dream or subconscious mind or sleep sentiment is shown and then awakening sentiment is shown.
पंडो नृत्य - अर्जुन वासुदत्ता प्रेमगाथा में विबोध भाव
(स्रोत्र : डा गोविन्द चातक,सन्दर्भ : डा शिवा नन्द नौटियाल)
द्रोपती अर्जुन सेयाँ छया
रातुड़ी होयें थोडं स्वीणा ऐन भौत
सुपिना मा देखद अर्जुन
बाळी वासुदात्ता नागुं कि घियाण ,
मन ह्वेगे मोहित , चित्त ह्वेगे चंचल
वींकी ज्वानी मा कं उलार छौ
वींकी आंख्युं मा माया को रैबार छौ
समळीक मुखड़ी वींकी अर्जुन घड्याण बिसे गे
कसु कैकु जौलू मै तै नागलोक मा
तैं नागलोक मा होला नाग डसीला
मुखड़ी का हँसीला होला, पेट का गसीला
मद पेंदा हठी होला, सिंगू वाल़ा खाडू
मरखोड्या भैसा होला मै मारणु आला
लोहा कि साबळी होली लाल बणाइ
चमकादी तलवार होली उंकी पैळयाँयीं
नागूं की चौकी बाड़ होलो पैरा
कसु कैकु जौलू मैं तै नागलोक मा
कमर कसदो अर्जुन तब उसकारो भरदो ,
अर्जुन तब सुसकारो भरदो
मैन मरण बचण नागलोक जाण
रात को बगत छयो , दुरपदा सेइं छयी
वैन कुछ ना बोले चाल्यो , चल दिने नागलोक
मद्पेंदा हाती वैन चौखाळी चीरेन
लुवा की साबळी नंगून तोड़ीन
तब गै अर्जुन वासुदत्ता का पास
घाम से घाम, पूनो जसो चाम
नौणीवालो नाम , जीरी वल़ो पिंड
सुवर्ण तरूणी छे , चंदन की लता
पाई पतन्याळी, आंखी रतन्याळी
हीरा की सी जोत , ज़ोन सी उदोत
तब गै अर्जुन सोना रूप बणी
वासुदत्ता वो उठैकी बैठाए अर्जुन
वींको मन मोहित ह्व़े ग्याई
तब वीन जाण नी दिने घर वो
तू होलो मेरो जीवन संगाती
तू होलो भौंर मै होलू गुलाबो फूल
तू होलो पाणी मै होलू माछी
तू मेरो पराण छई, त्वे मि जाण न देऊँ
तब तखी रै गे अर्जुन कै दिन तै
जैन्तिवार मा दुरपदा की निंद खुले ,
अर्जुन की सेज देखे वीन कख गये होला नाथ
जांदी दुरपदा कोंती मात का पास
हे सासू रौल तुमन अपण बेटा बि देखे
तब कोंती माता कनो सवाल दीन्दी
काली रूप धरे तीन भक्ष्याले
अब मैमू सची होणु आई गए
तब कड़ा बचन सुणीक दुर्पति
दणमण रोण लगी गे
तब जांदी दुरपदी बाणो कोठडी
बाण मुट्ठी बाण तुमन अर्जुन बि देखी
तब बाण बोदन , हम त सेयान छया
हमुन नी देखे , हमुन नी देखे
औंदा मनिखी पुछदी दुरपता
जांदा पंछियों तुमन अर्जुन बि देखे
रुंदी च बरडान्दी तब दुरपदी राणी
जिकुड़ी पर जना चीरा धरी ह्वान
तीन दिन ह्वेन वीन खाणो नी खायो
ल़ाणो नी लायो
तब आंदो अर्जुन का सगुनी कागा
तेरो स्वामी दुरपति, ज्यूँदो छ जागदो
नागलोक जायुं वासुदत्ता का पास
तब दुरपता को साँस एगी
पण वासुदत्ता क नौ सुणीक वा
फूल सी मुरझैगी डाळी सी अलसेगी
तिबारी रमकदों झामकदों
अर्जुन घर ऐगे
In the above folk song समळीक मुखड़ी वींकी अर्जुन घड्याण बिसे गे and
जैन्तिवार मा दुरपदा की निंद खुले , अर्जुन की सेज देखे वीन कख गये होला नाथ ,जांदी दुरपदा कोंती मात का पास
are the example of awakening sentiment examples.
Awakening Sentiment in Poetic Prose Folk Drama performed By Badis
I remember a folk drama played by Badis in village Jaspur, Malla Dhangu, Pauri Garhwal, India around 1964-65. In this drama) would call it E Bwe daru pilai de) a boy was sleeping and when he awoke he was yawning and rubbing eyes etc. he called his mother and asks through song
माँ - हूं टुंड ह्वेक इनी गंदा झूलों मा से गए छे. अर अब क्या छे दुफरा मा आँख उफारणि ?
नौनु (बिजद बिजद ) - ये ब्वे तु मै दारु पिलै दे, दारु पिलै दे
तैन बि पे वैन बि पे तु मै दारु पिलै दे
नौनु (बिजद बिजद ) - ये ब्वे तु मै दारु पिलै दे, दारु पिलै दे
तैन बि पे वैन बि पे तु मै दारु पिलै दे
Copyright@ Bhishma Kukreti 20/11/2013
Review of Characteristics of Garhwali Folk Drama, Community Dramas; Folk Theater/Rituals and Traditional to be continued in next chapter.
References
1-Bharat Natyam
2-Steve Tillis, 1999, Rethinking Folk Drama
3-Roger Abrahams, 1972, Folk Dramas in Folklore and Folk life
4-Tekla Domotor , Folk drama as defined in Folklore and Theatrical Research
5-Kathyrn Hansen, 1991, Grounds for Play: The Nautanki Theater of North India
6-Devi Lal Samar, Lokdharmi Pradarshankari Kalayen
7-Dr Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand ka Itihas part 1-12
8-Dr Shiva Nand Nautiyal, Garhwal ke Loknritya geet
9-Jeremy Montagu, 2007, Origins and Development of Musical Instruments
10-Gayle Kassing, 2007, History of Dance: An Interactive Arts Approach
11- Bhishma Kukreti, 2013, Garhwali Lok Natkon ke Mukhya Tatva va Charitra, Shailvani, Kotdwara
12- Bhishma Kukreti, 2007, Garhwali lok swangun ma rasa ar Bhav , Chithipatri
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