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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, September 1, 2013

कुमाउंनी- गढ़वाली व राजस्थानी लोकगीतों में कर्मफल भाग्यवाद -भाग 3

Fatalism in Rajasthani, Kumaoni-Garhwali Folk Songs Part -3 

                                Comparison between Rajasthani Folk Songs and Garhwali-Kumaoni Folk Songs-15

                                     राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-15     


                                                                      भीष्म कुकरेती


                   राजस्थानी  लोकगीतों में  कर्मफल और भाग्यवाद  -भाग 3 

 कर्म के लेख को पढ़ना  है।  इस  बात की अभिव्यक्ति हेतु लोक - गायकों -रचनाकारों ने कई उपमान प्रस्तुत किये हैं।  
कागद वे तो बांच लूँ करम बांचिया ना जाय 
बड़लो वे तो काट लूं पीपल काट्यो न जाय 
नाडूलिया वे तो थाग लूँ , समन्दर थागियो न जाय 
--------------याने-------------------- -
कागज हो तो बांच लूं , कर्मफल बांचा ना जाय 
बट बृक्ष हो तो काट लूं , पीपल काटा ना जाय 
तालाब हो तो थाह लूं , समुद्र की थाह कैसे लूं ? 

                कुमाउंनी-  गढ़वाली   लोकगीतों में  कर्मफल और भाग्यवाद  -भाग 3 


कुमाउंनी और गढ़वाली लोक गाथाओं , लोक गीतों में भाग्यवाद की दुहाई  जोर शोर से दी गयी है ।
निम्न जीतू बगड्वा सम्बन्धी लोक गीत के एक  खंड में भाग्यावाद और कर्मफल  की दुहाई दिया गया है -

नौ बैणी ऐ पड़ि बारों बैणी भराड़ी 
क्वै मातरी बैठी रौ काम्यों का पाह 
क्वै मातरी बैठी रौ आंखूं का हां:
ल्वैई पी रौ तूं सिकार खै 
त्यूं जोड़ी बैलों जीतू डबी रौ 
भर्युं कुटुंब तैरो मल्ला की क्यारी रैगे 
बौलू न होंदू जीतू त नाश नि होंदू
------------अर्थात---------------------- 
अप्सराओं ने जीतू का हरण किया , कोई अप्सरा कानो के अंदर बैठी , कोई अप्सरा आँखों में बैठी , उन्होंने जीतू का रक्त पान किया और उसका मांश भक्षण किया। इस प्रकार जीतू बगड्वाल , दोनों बैलों सहित  खेत में डूब गया .  भरा पूरा कुटुंब छोड़ कर चला गया (जहां से कोई वापस नही आता ). जीतू बाबला ना होता तो अपनी माँ और पत्नी के रुकने से रुक जाता।  और इस वह मर गया।  

अन्य लोक गीतों में भी कर्मफल और भाग्य वाद को  है। 

Copyright@ Bhishma  Kukreti 31/8/2013 

सन्दर्भ 
 
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली 
डा जगदीश नौडियाल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर:रवाँई क्षेत्र का लोक साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन  

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