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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, December 2, 2013

प्रवास्यूं द्वी ब्यौ जरुरी छन !

चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती 

     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )
                   हाँ तुमन बि बुलण बल यु ढाँगुवाळ बि क्या टुटबाग सिखाणु च। कत्युंन बुलण भैरों ! ये सलाणी तैं इन असंवैधानिक छ्वीं लगांद शरम बि नि औणि ! कै कैन त बुलण बल तै कुकरेतीक हुक्का पाणि बंद करै दयावो। ह्वे सकद च द्वि चार मि तैं देखिक ही अपण ड्वार इ  बंद कौर द्याला बल दुनिया इकीसवीं सदी मा ऐ गे अर यु कळजुगि हम तैं खबेस जग मा दुबर लिजाणो कोशिस करणु च। ना ना ! म्यार बूड ददा से लेक अर में तक कैक बि द्वी ब्या नि छा कि मी द्वी ब्यौ की वकालत कौरु !
             हरेक प्रवासी द्वी ब्यौ जरुरी च जन राय , थिंकिंग , सोच विचार म्यार नि छन।  ना ही म्यरो मकसद च की भोळ प्रवासी घौर जैक अर हैंक ब्यौ कौरिक ऐ जैन।
                    असल मा परसि गां बिटेन घुमणा अयां डक्खु दा तैं छुड़णो जयुं छौ अर ट्रेन चलद दैं डक्खु दान बोलि बल हे  भीषम तुम प्रवासी जब तलक द्वी ब्यौ नि करिल्या तब तलक तुम गढ़वाळ विकास मा भागीदारी नि निभै सकदां !
 मि घंघतोऴयों ग्यों बल इ   डक्खु दा बोलि गे बल प्रवास्यूं द्वी ब्यौ जरुरी च पण असल मा क्या बोलि गेन। 
                प्रवासी द्वी ब्यौ कु सीधा अर्थ च , सिम्पल मीनिंग च बल प्रवासी एक ब्यौ मुंबई मा हैंक ब्यौ गाँव मा। एक दैं म्यार मन मा ख़याल आयि कि डक्खु दा बोलि ग्याइ बल जब क्वी प्रवासी गाँव आल त वै तैं ड्यारम बि मुंड मा ठुंग मारणो कज्याणि मीलली।  ड्यारम बि कज्याणि कुखली मीललि जै से प्रवासी उख बि अपण पत्नी कुखलि मा मुंड धरिक द्वि झपांग निंद ले साको।
                     डक्खु दा कबि बि रसीली , सेक्सीली, श्रृंगार भरीं छ्वीं नि लगांद तो अवश्य ही डक्खु दा को अर्थ कुछ हौर च। 
             मीन घड्याइ , मीन स्वाच कि यदि हरेक प्रवासीक द्वी ब्यौ ह्वाल त क्या ह्वे जाल।  सरल बात च जु पुंगड़ बांज पड़ीं छन , जौं बांज डांडों पुंगड्यूं मा कबि ग्युं हूंद छा उख अब कुंळै डाळ उपजी गेन ,   जौं पुंगडों मा   अब मळसु फुळणा छन वो सब पुंगड़ी फिर से आबाद  ह्वे जाला। 
            जु तिभित्या तिबारी डंडेळि   आज खंद्वार बणी छन वो फिर से चकाचक ह्वे जाला।  आज प्रवास्यूं भैर जाण से जौं चौकुं मा   किनग्वडु डाळु  झाड़ झंकार हुयुं च वुं चौकुं मा फिर से हरेक संग्रांदि दिन फिर से औँज्युं नौबत बजलि।
  जब हरेक प्रवासी का द्वी ब्यौ होलु त जौं मकानुं मा उळकाणु वास करणा छन उख मनिखों वास -निवास होलु। जब हरेक प्रवासी द्वी ब्यौ होला त जख मुर्दा घ्वाडॊ मा जाणा च तब मुर्दा आदम्युं काँध मा जाला।  
   पण फिर स्वाच क्या ग्रामीण गढ़वाळ बचाणो वास्ता क्या यो असंवैधानिक, अमानवीय , टुटबग्या, कुबगत्या , कुतरकीब ही आखरी रस्ता च ? क्या यु गढ़वाळ को दुर्भाग्य नी  च कि गढ़वाळ से पलायान की आंधी त नि रुके सक्याणि च पर लाचारीवस प्रवास्युं समिण द्वी ब्यौ करणो विकपल की बात करयाणि च ? आखिर ये आधुनिक , वैज्ञानिक युग मा क्वी ना क्वी तरकीब त होलि कि गढ़वाळ बि बच जाओ अर प्रवास्युं तैं द्वी ब्यौ बि नि करण पोडु ! 
      मीन खूब देर तलक स्वाच त पाइ बल आदर्श अध्यापक डक्खु दा की सलाह को असल अर्थ कुछ हौरि च।
        डक्खु दान मै सरीका प्रवासी पर व्यंग्य का बरछा , चबोड़ का बसूला चलाइ  अर चबोड़ -चखन्यौ मा ब्वाल बल गढ़वाल का विकास का वास्ता   प्रवास्यूं द्वी ब्यौ जरुरी छन !  डक्खु दा की हम मुंबई जन शहरों मा बस्याँ प्रवास्युं वास्ता असल मा एक धाद छे कि जु मुंबई मा समोदर का छाल  पर बैठिक गढ़वाल की बिगड़ती स्थिति पर मगरमच्छी आंसू बगांदन अर कबि बि ड्यार नि जांदन वूं तैं इक सेमीनार करणों जगा पर साल द्वी सालम अपण ड्यार जैक कुछ करण चएंद।
        डक्खु दान वूं प्रवास्युं पर शब्दों मार कार जु अफु त गढ़वाळो बाटु भूली गेन पण इक मंचों मा फोकट मा  गढ़वाल विकास पर भाषण दीणा रौंदन।  डक्खु दान  वूं प्रवास्युं  गाळ पर झनाटेदार थप्पड़ मार जौं तै शिक्षा बारा मा रति भर बि ज्ञान नी च वु इख मुंबई मा बैठिक गढवाल विश्वविद्यालय का सिलेबस तैयार करणा रौंदन।
 डक्खु दान वै पर चमकताळ लगाइ जु तीस साल से गढ़वाऴ नि गए वो गढ़वाळ पर्यटन विकास पर भाषण दीणु रौंद। 
 असल मा डक्खु दा की प्रवास्यूं द्वी ब्यॉवक बात को अर्थ च कि प्रवास्यूं तैं खालि भाषण नि दीण चयेंद बलकण मा   गढ़वाळ जैक  भागीदारी निभाण चयेंद। प


***यह लेख 'पराज' पत्रिका के जनवरी 1991 अंक में प्रकाशित हुआ था। इस लेख पर वुद्धिजीवीओं के मध्य एक सार्थक बहस भी मुम्बई में हुयी थी। 
 
Copyright@ Bhishma Kukreti  30/11/2013 


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