Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Uttarakhand
(Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--11 )
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 11
लेखक : भीष्म कुकरेती
(विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
(विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
ऐतिहासिक सत्य :दे दे बाबा सुई तागा तुई छे हमर ब्वेई बाबा
यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि अशोक व गुप्त काल के बाद समस्त भारत में कृषि अन्वेषण , कृषि औजार , उद्यान कृषि अन्वेषण , दुग्ध उद्यम अन्वेषण , फूल कृषि अन्वेषण , वानकी अन्वेषण , औषधि अन्वेषण , पशु संबर्धन अन्वेषण में गुणात्मक गिरावट आयी। जहां ब्रिटिश काल से भारत के अन्य भागों में कृषि अन्वेषण में क्रान्ति आती रही वहीं उत्तराखंड के पहाड़ों में तीन हजार साल से चली आ रही कृषि संबंधी व्यवसाय व वानकी व्यवसाय में भयंकर गिरावट आयी। कारण यह था कि राजकर इस तरह के थे कि लोगों ने परिवार पालन तक ही कृषि व वानकी व्यवसाय को सीमित कर दिया था। यही कारण है कि माधो सिंह भंडारी के पावड़े प्रसिद्ध होने के बाद भी गढ़वाल -कुमाऊं में नहरों का प्रचलन हुआ ही नही। जल घराटों का दोहन अन्य ऊर्जा स्रोत्र के लिए हुआ ही नही।
यदयपि पहाड़ी भीख नही मांगते किन्तु मौर्या काल के बाद कृषि , वानकी , औषधि व्यवसाय में गिरावट से पहाड़ के ग्रामीण पर्यटकों से केवल उन वस्तुओं की अपेक्षा तक सीमित रह गये थे जो पहाड़ों में दुर्लभ था। यह कहावत रुपया मांग -दे दे बाबा सुई तागा तुई छे हमर ब्वेई बाबा'बतलाता है कि पहाड़ियों ने ब्यापार को समाप्त ही क्र दिया था। पहाड़ों में वणिक जाती का ना होना , पहाड़ों में शिल्पकार (हरिजन ) समाज का केवल 15 % होना इस बात का द्योतक है कि पहाड़ियों ने पहाड़ों में कृषि व वानकी तत्तसंबंधी उद्यमों को तिलांजलि दी थी।
बहुत से वुद्धिजीवी पर्यटन विकास में केवल धन अर्जन की सम्भावनाएं तलासते हैं। किन्तु पर्यटन से केवल धन तलासना पहाड़ों की मुख्य समस्या नही हल कर सकता है। पर्यटन से केवल धन तलासना आपदा से अधिक नुकसान को बुलावा देगा जैसे इस साल की आपदा में हुआ।
वास्तव में उत्तराखंड में पर्यटन विकास का असली उद्येश्य निम्न होना चाहिए -
१-उत्तराखंड के सभी धार्मिक स्थलों में पहाड़ों में उगे फूल उपयोग में आयें
२- उत्तराखंड में पर्यटकों की उदर पूर्ति पहाड़ों में उपजे अनाज , सब्जियों , दालों , तेल ,घी आदि से ही हो. ऐसी पर्यटन व्यवस्था का निर्माण हो कि पहाड़ों के कृषि उपज के लिए निर्यात के नये वितरण मार्ग खुलें
३-उत्तराखंड में पर्यटकों को पहाड़ों में उपजी चाय , दूध , दही , फल आदि मिलें
४ -उत्तराखंड में पर्यटकों के मनोरंजन केवल गढ़वाल -कुमाऊं -हरिद्वार संस्कृति व कला से ही अधिक हो
५ -उत्तराखंड में प्रत्येक पर्यटक केवल पहाड़ में कुटीर उद्यम निर्मित यादगार वस्तु या सोविनियर अधिक से अधिक खरीदे।
६ - छोटे छोटे घराटों की असीमित ऊर्जा से संचालित सिंचाई के साधन को पर्यटन गामी बनाया जाय या पर्यटन उद्यम घराट निर्मित ऊर्जा को बढ़ावा दे।
७- पर्यटन को वानकी अन्वेषण के साथ जोड़ा जाय।
८- पर्यटन से पहाड़ों के वानकी व कृषि उद्यम , औषधीय उद्यम , चारा उद्यम , औषधीय व इनके अन्वेषण को आशातीत बल मिले
९-पर्यटन को कृषि औजार या वानकी औजार , दुग्ध उद्यम यंत्र अन्वेषण के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
१०-पर्यटन के लिए प्रवीण -कौशल युक्त श्रमिक या स्किल्ड लेबर प्रशिक्षण के लिए पहाड़ों में ही प्रशिक्षण संस्थान खुलें ना कि शहरों में
११-कुछ ही सर्किट की प्रसिद्धि से इन स्थलों पर पर्यटकों का भारी दबाब हो रहा है। आज समय आ गया है कि सैकड़ों अन्य धार्मिक स्थल व मेलों को प्रचारित कर यह दबाब कम किया जाय।
उत्तर प्रदेस व अब उत्तराखंड राज्य सरकारें उत्तराखंड में पर्यटन में आशातीत वृद्धि का ढोल पीटती आयीं हैं। किन्तु हमारे समाज ने यह नही पूछा कि इस पर्यटन से पहाड़ों में क्या फूलों का उत्पादन बढ़ा है ?नागरिकों को प्रशासन व नेताओं से पूछना चाहिए कि क्या पर्यटन वृद्धि से पहाड़ों में सब्जी उत्पादन बढ़ा है ? विद्धिजीवियों को सरकारी महकमे को पूछना चाहिए कि क्या पर्यटन उद्यम विकास से पहाड़ी दाल , फल ,शहद का उत्पादन बढ़ा है ? सभी को प्रश्न करना चाहिए क्या पर्यटन से पहाड़ों में दुग्ध उद्यम पोषित हुआ है ? एक सदाबहार प्रश्न यह भी है कि क्या पर्यटन उद्यम की आंकड़ों में चाय उद्यम में नई स्फूर्ति के आंकड़े है ? इस प्रश्न को कौन पूछेगा कि क्या पर्यटन उद्यम ने ग्रामीण रेशे उद्योग को गति प्रदान की है ? क्या किसी प्रशाशनिक अधिकारी या नेता के पास कोई जबाब है कि पर्यटक अपने साथ कौन सी पहाड़ी वस्तु बद्रीनाथ या नैनीताल से सोविनियर या यादगार वस्तु ले जाते हैं ? प्रश्न यह भी है कि वह कौन सी पहाड़ी कला है जो उत्तराखंड में आधुनिक पर्यटन से विकसित हुयी है ? क्या यह शर्म की बात नही है कि जब बद्रीनाथ मंदिर को फूलों से सजाया जाता है तो वे फूल पहाड़ों में नही उगाये जाते अपितु निर्यात किये जाते हैं। कोटद्वार या पौड़ी में नजीबाबाद से दूध की गाडी देर से पंहुचे तो होटल में चाय नही मिलती है। क्या यह पर्यटन विकास है कि दूध का निर्यात करना पड़ता है ?
पहाड़ों में पर्यटन हजारों साल से चल रहा है। ब्रिटिश काल से ही पहाड़ी लोग होटलों में काम करते आये हैं। किन्तु क्या ग्रामीण इलाकों में क्या होटल मैनेजमेंट के प्रशिक्षण केंद्र खुले हैं ? क्या हमारी शिक्षा पाठ्यक्रमों में पर्यटन प्रबंधन आवश्यक विषय है ?
प्रश्न यह भी है कि पहाड़ों के ग्राम प्रधान व अन्य लोकल सेल्फ गवर्मेंट के कर्ता -धर्ता आधुनिक पर्यटन के बारे में कितने प्रशिक्षित हैं ?
आज व अभी से हमें उत्तराखंड में पर्यटन विकास के मुख्य उदस्यों में बदलाव लाने पड़ेंगे और कहना पड़ेगा कि उत्तराखंड के पर्यटन का ध्येय पहाड़ों में कृषि , वानकी , औषधीय , दुग्ध , पशु उद्यम, कुटीर उद्यम , जल उद्यम आदि अन्य ग्रामीण उद्यम विकास होना चाहिए।
Copyright @ Bhishma Kukreti 9 /12/2013
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Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150 अंकों में ) , कोटद्वारा , गढ़वाल
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