Management Issues of Tourism and Hospitality Industry
(Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--20 )
लेखक : भीष्म कुकरेती
(विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
(विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
उत्तराखंड ही नही अन्य भागों में भी कुछ ही समय पहले पर्यटन उद्यम एक पुराने ढर्रे का उद्यम था जो पुराने ढर्रे पर चलता था। इस लेखक ने सन 1974 से अब तक भारत व विदेशों में खूब यात्रा है और पर्यटन व मेहमानबाजी उद्यम के प्रत्येक क्षेत्र में सन 1974 में और 2013 में जमीन आसमान के अंतर पाया है व अनुभव किया है। ऋषिकेश -बद्रीनाथ सड़क से यह लेखक सन 1967 से लगातार यात्रा करता आया है और उत्तराखंड में भी अब पर्यटन व आतिथ्य उद्यम में आमूल -चूल परिवर्तन आ गया है।
कभी उत्तराखंड में पर्यटन धार्मिक स्थानो तक सीमित था या मसूरी की पहाड़ियों तक सीमित था। श्रमिक , कर्मिक व प्रबंधक निरा प्रशिक्षणहीन होते थे आज पर्यटन क्षेत्र व श्रमिकों , कार्मिकों व प्रबंधन शैली में प्रशिक्षण दिखता है। बाबा काली कमली वाली धर्मशालाओं का स्थान शानदार होटलों ने ले लिया है किन्तु धर्मशाला की मांग आज भी कम नही हुयी है। अब धर्मशालाएं या जय बिरला की योग कुटिया भी पंचतारा होटलों के साथ प्रतियोगिता करती देखी जा सकती हैं। निपट गाँव की बस स्टॉप की दूकान में अब तम्बाकू और गुड साथ साथ एमल जोल बढ़ाते नही दिखेंगे जो कभी एक ही बोरे की शान बढ़ाते थे। अब कटघर (हिंवल नदी तीर , तल्ला ढांगू ) के गेंद मेले में घर से रोटी व आलू के गुटके बनाकर लाने की आवश्यकता नही है , कटघर में चाइनीज चाउ माउ ने जलेबी के साथ अब दोस्ती गाँठ ली है। उत्साह व प्रसन्नता की बात है कि अब उत्तराखंड में अति ग्रामीण पर्यटन में भी व्यवसायिकता (Professionalism ) झलकने लगा है।
पर्यटन में सेवा अधिक महत्वपूर्ण होती है। पर्यटन व आतिथ्य प्रबंधन समझने से पहले वस्तु /चीज व सेवा में अंतर समझना आवश्यक है।
---------भौतिक वस्तु ------------------------------ ------------------------------ ---------सेवा
-------दिखती है ------------------------------ ------------------------------ --------------दिखती नही है। केवल अनुभव किया जा सकता है।
-----एक जाती की अलग अलग वस्तु में समरूपता दिखती है ---------------------एक ही सेवा में विषमता होती है। जैसे दो बेयरे चाय दें तो दोनों के चाय देने में अंतर अनुभव किया जा सकता है।
----निर्माण , विधि , वितरण व उपभोग अलग अलग होते है। --------------------सेवा में निर्माण , निर्माण विधि , वितरण ,व उपभोग एक साथ होता है।
---एक चीज /वस्तु ------------------------------ ------------------------------ --------------सेवा एक कार्य पद्धति है
--वस्तु किसी कार्यशाला में निर्मित होती है या उगती है ----------------------------- सेवा विक्रेता व खरीददार के मध्य संबंध है।
-अधिकतर ग्राहक वस्तु निर्माण या कार्य विधि में सहयोगी नही होता है ----------सेवा में ग्राहक भी निर्माण या कार्यविधि का अंग है।
-- गुणों अनुसार वस्तु का भण्डारीकरण हो सकता है। ------------------------------ -------सेवा भण्डारीकरण नही हो सकता है।
-- वस्तु पर मालिकाना हक बदल सकता है (जैसे कैलास पर चीन का अधिकार )------सेवा में मालिकाना अधिकार नही बदलता है।
पर्यटन में भौतिक वस्तुओं की आवश्यकता अवश्य होती है किन्तु पर्यटन में सेवा ही महत्वपूर्ण है। यात्री गंगोत्री में धार्मिक कारणो से जाता है किन्तु किस अवासीय होटल में रुकेगा किस होटल में खाना खायेगा , किस परचून दुकान से यादगार -भेंट की वस्तु खरीदेगा यह विक्रेता की सेवा छवि पर निर्भर करता है।
पर्यटन सेवा का चरित्र
जहां तक पर्यटन सेवा की परिभाषा का प्रश्न है , विपणन शास्त्रियों में सर्वाधिक मतैक्य है।
सेवा विधि (process ) है और एक या कई विधियों से सेवा दी जाती है।
सेवा अधिकतर वहीं निर्मित /रचित होती हैं जहां इसका उपभोग//प्रयोग उपयोग होता है.
कुछ हद तक ग्राहक सेवा निर्माण , सेवा वितरण व उपभोग में भागीदार होता है। जैसे डाइबिटीज का बीमार चाय का आदेस देते हुए कहता है कि चाय में कम मीठा देना। नमकीन के पैकेट को ग्राहक द्वारा छांटना एक अन्य उदाहरण है।
सेवा का आकलन छवि द्वारा होता है। सेवा छवि का आकलन बहुत कठिन होता है क्योंकि सेवा का आकलन मन , वुद्धि, अहम् व चित्त में बनी छवि पर अधिक निर्भर करता है। यदि किसी चाय की दुकान बैयरा चाय के गिलासों में उंगली डालकर गिलास पकड़कर चाय दे तो इस ढंग को अलग अलग ग्राहक अलग अलग ढंग से लेंगे। मै मुम्बई में ऐसी चाय पीना कभी भी पसंद ही नही करूंगा। किन्तु यदि मेरे गाँव के बजार , सिलोगी (मल्ला ढांगू , पौड़ी )गढ़वाल में मेरे स्कूल के मित्र भंडारी के यहाँ इस प्रकार के ढंग को मै बुरा नही मान सकता।
अन्य चुनौतियां
जटिलता - पर्यटन व आतिथ्य प्रबंधन सीधा प्रबंधन नही है। ग्राहक के पर्यटन सुख का कई व्यापारियों , एजेंटों व मुख्य गंतव्य पर्यटक स्थल के प्रबंधन के संयुक्त प्रयास पर निर्भर करता है। बद्रीनाथ में आपके होटल में सेवा अच्छी है किन्तु यदि ग्राहक को मंदिर में दर्शन ठीक से नही हुए तो हो सकता है कि ग्राहक होटल की सेवा में भी नुक्श निकालने लगेगा और होटल के बारे में भी गलत प्रचार करने लग जाय। यदि पर्यटक को सूचना मिले कि बद्रीनाथ के पास माणा में बढ़िया दम आलू मिलते हैं और पर्यटक सरस्वती नदी उद्गम , भीम पुल देखने , व्यास गुफा देखने के बाद पाता है कि माणा में दम आलू ही नही हैं तो पर्यटक को मायूसी भी हो सकती है। सरकारी -गैर सरकारी इंफ्रास्ट्रक्चर -साधन परयन सेवा पर कई तरह से डालते हैं। यदि धार्मिक स्थल में स्थानीय जनता कोई विशेष चरित्र निभाती है तो भी सेवा छवि पर प्रभाव पड़ता है। मुझे शनि मंदिर , शिंगणापुर अहमदनगर की एक घटना याद है जब हमें नल के नीचे नहाना था तो उसी समय स्थानीय लोग आये कि पहले वे पानी भरेंगे फिर नहा पाएंगे।
जटिल उद्योग - पर्यटन से जुड़े वस्तु विक्रय भी अपने आप में जटिल व्यापार है। होटल अपने आप में जटिल उद्योग है। भेंट -यादगार -सौगात वस्तु की दुकान भी जटिल उद्यम है। पर्यटन जटिल उद्योगों का संगम है। पर्यटन की जटिलता के कारण शायद इसीलिए पहाड़ी पर्यटन उद्योग में उतने नही जुड़े जितने जुड़ने चाहिए थे।
छोटे छोटे उद्यमियों की आवश्यकता - पर्यटन उद्यम टुकड़ों में बंटा होता है और एक ही स्थल पर सैकड़ों उदयमी व स्थानीय जनता हो सकते हैं। इस सभी टुकड़ों में बंटे उद्यमियों को व जनता को एक ही उद्येश के प्रति लवलीन करना अति जटिल कार्य है।
राज्य पर्यटन प्रबंधकों को इन्ही जटिलताओं के मध्य कार्य करना पड़ता है।
Copyright @ Bhishma Kukreti 18 /12/2013
Contact ID bckukreti@gmail.com
Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन परिकल्पना ,शैलवाणी (150 अंकों में ) , कोटद्वारा , गढ़वाल
xx
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