Psychology Oriented Faith (Mantra , Tantra ) of Proto -Australoid
हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास के परिपेक्ष में आदिमयुगीन विश्वास
हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास के परिपेक्ष में कोलजाति के धार्मिक विश्वास
कोल , मुंड , शवर जाति द्वारा प्रचलित कई धार्मिक , मनोवैज्ञानिक विश्वास आज भी चले आ रहे हैं और हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर इन धार्मिक विश्वासों से अछूता नही है। हरिद्वार में आज भी पुरानतम शैली में भूत भगाने वाले तांत्रिक कर्मकांड क्रियाओं का संचालन गंगा तट पर देखे जा सकते हैं।
कोल , मुंड , शवर जाति ने धार्मिक पूजन में डमरू थाली से देवता नचवाना , पितरों की आत्मा नचवाना शुरू किया।
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 26 /11/2014
वैदिक मंत्र, आयुर्वेद का आधार : कोल -मुंड के मांत्रिक -तांत्रिक विश्वास
Proto- Australoid Race in Context History of Haridwar -2
कोल , मुंड , शवर जाति और हरिद्वार का इतिहास -2
Racial Elements in Haridwar Population of Prehistoric Period -5
हरिद्वार की नृशस शाखाएं -एक ऐतिहासिक विवेचन -5
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -14
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -14
History of Haridwar Part --14
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
अंध विश्वास का नाम मै सही नही ठहराता। विश्वास जो विज्ञानिक तरीकों से सही नही ठहराए जायँ का अर्थ नही है कि ये विश्वास गलत हैं। विपदा में मन को स्थिर करने , सकारात्मक सोच लाने याने मनोवैज्ञानिक समाधान इन मंत्रों व तंत्रों का ध्येय है। वेदों के मंत्रों को सही ठहराना और झाड़ ताड़ को गलत ठहराना नाइंसाफी है। यह ठीक है कि चिकत्सक की चिकत्सा होनी ही चाहिए किन्तु मानसिक चिकत्सा भी आवश्यक है।
निर्जन -वनप्रदेशों में विचरित करने वाली कोलजाति अनदेखी प्रकृति विपदा , भूत -प्रेत , भटकती पितर आत्माओं से त्रस्त रहती थी। अनदेखे , अनसुलझे विपदाओं के निवारण हेतु कोलजाति ने कई रोचक कर्मकांडी उपाय अपनाये।
मजूमदार व पुसलकर जैसे इतिहासकार मानते हैं कि अपरिचित से डरना और उसके लिए उपचार करना जैसे घात लगाना , दाग लगाना या घात उतारना /दाग उतारना आदि मांत्रिक /तांत्रिक उपाय कोलजाति की है।
ग्रामीण हरिद्वार , गढ़वाली -गैर गढ़वाली भाभर , बिजनौर व सहारनपुर में अभी भी नकझाड़ , निछावर जैसी मांत्रिक तांत्रिक विधाओं के जन्मदाता कोलजाति ही थी।
ऊँची -कम ऊँची शिलाओं , शिखर , नदी , गधेरे , ताल -तल्लयों , व पेड़ों जैसे पीपल , बड़ , नीम , आम , महुआ , बबूल , बेल , गूलर , सेमल , बांस , साल व शिवालिक -हिमालयी पेड़ -पौधों से संबंधित तांत्रिक क्रियाओं, अनिष्ट निवारण , जादू टोना आदि का काल्पनिक संसार कोलजाति देन है।
वैदिक मंत्रों में जो मनोवैज्ञानिक ढंग से अपने को तैयार करने वाले मंत्र हैं उनकी आधारशिला वास्तव में कोलजाति , मुँड़जाति , शवर जाति ने ही रखा था। आज भी बिजनौर , हरिद्वार में , सहारनपुर में तंत्र -मंत्र जीवित हैं तो यह कहा जा सकता है कि उन विधियों के प्रारम्भिक रूप को कोलजाति युग में हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर में भी प्रयोग होता था।
कोलजाति के परीक्षणों ने कई पेड़ -पौधों और पृथ्वी की मिट्टी से दवाइयाँ बनाई या इन पेड़ -पौधों -मृदिका से उपचार करना सीखा और जो कालांतर में आयुर्वेद अपनाया व इन उपचारों को विकसित किया।
हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास के परिपेक्ष में कोलजाति के धार्मिक विश्वास
कोल , मुंड , शवर जाति द्वारा प्रचलित कई धार्मिक , मनोवैज्ञानिक विश्वास आज भी चले आ रहे हैं और हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर इन धार्मिक विश्वासों से अछूता नही है। हरिद्वार में आज भी पुरानतम शैली में भूत भगाने वाले तांत्रिक कर्मकांड क्रियाओं का संचालन गंगा तट पर देखे जा सकते हैं।
कोल , मुंड , शवर जाति ने धार्मिक पूजन में डमरू थाली से देवता नचवाना , पितरों की आत्मा नचवाना शुरू किया।
नाना प्रकार के नाग , विष्णु के दसावतार (मत्स्य , कछप , बराह , नृसिंघ , गरुड़ ) आदि का आधार कोल , मुंड , शवर जातिकी देन है। गरुड़ , मूषक , बृषभ , स्वान , शेर हाथी आदि की पूजा आधार भी कोल , मुंड , शवर जाति धार्मिक विश्वास रहे हैं।
पुनर्जन्म की कल्पना भी कोल , मुंड , शवर जाति ने की।
धार्मिक संस्कारों से आपदा -विपदा उपचार भी कोल , मुंड , शवर जातिकी देन हैं।
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 26 /11/2014
History of Haridwar to be continued in हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग 15
(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
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