Animal Sacrifice by Proto -Australoid Races
हरिद्वार का इतिहास परिपेक्ष में बलि प्रथा
Proto- Australoid Race in Context History of Haridwar -3
कोल , मुंड , शवर जाति और हरिद्वार का इतिहास -3
Racial Elements in Haridwar Population of Prehistoric Period -6
हरिद्वार की नृशस शाखाएं -एक ऐतिहासिक विवेचन -6
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -15
कोल , मुंड , शवर जाति अपनी सम्पदा अक्षुण रखने , सम्पदा वृद्धि , वांछित फल प्राप्ति हेतु पशु पर्क्षियों की बलि दिया करते थे। किसी शील को चिन्हित कर देवी -देवता के लिंग बनाकर पूजा करते थे। कोल , मुंड , शवर जाति शिला लिंग को बलि वाले पशु के रुधिर से स्नान कराते थे। देव लिंग अथवा मूर्ति को बलि पशु के खून से अथवा सिंदूर से लाल करने की प्रथा आज भी चली आ रही है।
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 27 /11/2014
Proto- Australoid Race in Context History of Haridwar -3
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -15
History of Haridwar Part --15
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
कोल , मुंड , शवर जाति अपनी सम्पदा अक्षुण रखने , सम्पदा वृद्धि , वांछित फल प्राप्ति हेतु पशु पर्क्षियों की बलि दिया करते थे। किसी शील को चिन्हित कर देवी -देवता के लिंग बनाकर पूजा करते थे। कोल , मुंड , शवर जाति शिला लिंग को बलि वाले पशु के रुधिर से स्नान कराते थे। देव लिंग अथवा मूर्ति को बलि पशु के खून से अथवा सिंदूर से लाल करने की प्रथा आज भी चली आ रही है।
हरिद्वार दक्षिण काली मंदिर में जनविरोध के बाद भी पशु बलि दी जाती है। कालरात्रि की रात चंडी वन में पशु बलि के कई तरह तांत्रिक क्रियाये पूरी की जाती हैं।
कई धार्मिक कर्मकांडों में गुलाल , सिंदूर , हल्दी का प्रयोग कोल , मुंड , शवर जाति द्वारा शुरू हुए कर्मकांडों के अवशेष हैं।
दैनिक जीवन व पूजा में चावलों का प्रयोग इसी जाती का आविष्कार है। कोल , मुंड , शवर जाति द्वारा शुरू किये गए कर्मकांड की तरह आज भी मेंढे , बकरे , भैंसे , मुर्गे व अन्य पशुओं की बलि हरिद्वार ,बिजनौर व सहारनपुर में दी जाती है।
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 27 /11/2014
History of Haridwar to be continued in हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग 16
(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
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