Copper -Bronze Age in Haridwar , Bijnor and other parts of Uttarakhand
Haridwar in Metal Age -3
धातु युग में हरिद्वार -3
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -8
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 20/11/2014
हरिद्वार में ताम्र- कांस्य उपकरण संस्कृति
Haridwar in Metal Age -3
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -8
History of Haridwar Part --8
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
हरिद्वार से बारह किलोमीटर दूर बहादराबाद में नहर खोदते हुए जो ताम्र उपकरण मिले थे वे ताम्र उपकरण उत्तर प्रदेश के अन्य ताम्र उपकरण संस्कृति के उपकरण सामान हैं।
अम्लानन्द द्वारा संपादित ऐन इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इंडियन आर्कियोलॉजी , पृष्ठ 37 में बहादराबाद के बारे में लिखा है -
इस स्थान से रेड वेयर और बाद में ताम्र उपकरणो के ढेर मिले । इन ताम्र उपकरणों में छल्ले , व अन्य उपकरण मिले जो सोन घाटी की संस्कृति द्योतक थे।
घोष व बी बी लाल ने भी बहदराबाद में खोज की। अम्लानन्द के अनुसार बहादराबाद में जार ( घड़ा )भी मिला।
डॉ डबराल ने डा लाल व डा घोष की खोजों और दलीलों के आधार पर लिखा है की गंगाद्वार (बहादराबाद , हरिद्वार ) से ताम्र परशु , छुर्रिकाएँ , कुल्हाड़ी , भाले , बरछे व हारपून्स मिले .
इतिहासकार मानते हैं की इन ताम्र उपकरणों के बनाने के लिए ताम्बा राजपुताना , छोटा नागपुर , सिंघभूमि और उड़ीसा से आता था।
किन्तु डा डबराल सिद्ध करते हैं कि गंगाद्वार (हरिद्वार ) ताम्र उपकरण निर्माण हेतु ताम्बा गढ़वाल के धनपुर , डोबरी , पोखरी (हरिद्वार से 70 मील दूर ) से ही आता होगा।
हरिद्वार से सटे जिला बिजनौर (उत्तर प्रदेश ) के राजपुर परसु में धातु युगीन कुल्हाड़ियों , छड़ें , हारपून्स ,आदि मिले हैं (पॉल यूल , मेटल वर्क ऑफ ब्रॉन्ज एज इन इण्डिया , पृष्ठ 41 -42 ) ।
इसी तरह , हरिद्वार से सटे सहारनपुर जिले के नसीरपुर में भी धातु युगीन उपकरण मिले है ( पॉल यूल , मेटल वर्क ऑफ ब्रॉन्ज एज इन इण्डिया , पृष्ठ 40 -41 )।
बहादराबाद में ताम्र उपकरण मिलने से व मृतका घड़ा मिलने, बिजनौर के राजपुर परसु में मिले धातु उपकरण (पॉल यूल ) से सिद्ध होता है कि हरिद्वार , बिजनौर व उत्तराखंड की पहाड़ियों में ताम्र संस्कृति भी फली- फूली। यद्यपि इस युग में कौन सी मानव नृशाखा के बारे में विद्वानो में कोई सहमति नही है। पहाड़ों में भी मलारी निवासी ताम्र उपकरण निर्माण करते थे या प्रयोग करते थे।
ताम्र उपकरणों हत्या उपयुक्त हथियार सिद्ध करते हैं कि अवश्य ही युद्ध होते रहे हैं और जनता त्रास में अवश्य रही होगी।
सहारनपुर आदि में हड़पा संस्कृति के अवशेस भी सिद्ध करते हैं कि हरिद्वार , बिजनौर और पहाड़ों में ताम्र संस्कृति परिस्कृत हो चुकी थी।
ताम्र युगांत में उत्तर भारत में अवश्य ही उथल -पुथल मची थी और हरिद्वार में भी उथल -पुथल मची होगी।
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History of Haridwar to be continued in हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग 8
(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
संदर्भ
१- डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास भाग - 2
२- पिगॉट - प्री हिस्टोरिक इंडिया पृष्ठ - 22
३- नेविल , 1909 सहारनपुर गजेटियर
४- अम्लानन्द घोष , 1990 ऐन इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इंडियन आर्कियोलॉजी , पृष्ठ 37 ,
५ -पॉल यूल , मेटल वर्क ऑफ ब्रॉन्ज एज इन इण्डिया , पृष्ठ 41 -42
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