चबोड़ इ चबोड़म खेल गिंदवा ::: भीष्म कुकरेती
ब्याळि दाळ जोरूं से रुणि छे , ऐड़ाट -भुभ्याट करणी छे अर भयंकर सोग मा छे।
मीन पूछ -ये दाळ क्या भंगुल जाम ? किलै इथगा जोरूं से रुणि छे ?
दाळ -ह्यां पैल यी ब्यापरिक अखबारुं भाषा से परेशान थौ अब सि तुम पहाड्यूंन बि दिक कर याल।
मि -व्यापारिक अखबारु भाषा से तू परेशान ?
दाळ -हाँ ! जब मेरी बुवै हुणि हो त व्यापरिक खबर हूंदी बल उड़द अधिक बिकवाली से उछली असमान में ; जब मेरी निरै -गुड़ै समौ ह्वावो त समाचार छपद बल - ग्राहकों की उदासीनता से उड़द नरम पड़ी अर जब कुटै हुणि हो तो खबर आंद बल अधिक आवक से उड़द लुढ़की।
मि -ओहो ! यी व्यापार्युं अपणी आपसै भाषा च। त्वे तैं यूँ शब्दों तैं गंभीरता से नि लीण चयेंद। देख शाही इमाम कु आमंत्रण तैं जन क्वी गंभीरता से नी लीणु च तनि तू यूँ मंडी का गुप्त शब्दों तैं गम्भीरतापूर्बक नि ले.
दाळ -यां इन शब्द त्वैकुण प्रयोग ह्वावन तब दिखुल मि कि त्वै पर कन्न चिर्री पोड़द धौं !
मि -ह्यां ! रुण बंद कौर यी कारोबारी हिंदी भाषा च। तू अंग्रेजी अखबार पढ़ा कर।
दाळ -अंग्रेजीम कम अन्याय हूंद जब मेरी फसल मंडी मा जांद तो अंग्रेजी अखबार छपदन कि उड़द इज ग्राउंडेड या उड़द इज नौट शाइनिंग।
मि -मीन ब्वालना तू कारोबारी भाषाक लंग-लफड़ा मा नि पोड। इन बता कि बिचारा पहाड्यूं से किलै रुसयीं छे , क्रोधित छे , पहाड्यूं पैथर हथ ध्वेक किलै पड़ीं छे ?
दाळ -अरे कारोबारी भाषा त सये बि जांदी किंतु तुम निकज्जों उत्तराखंडी पहाड्यूं करतूत त बिलकुल असह्य च।
मि -ह्यां अब त प्रवासी अर निवासी पहाड़ी कुछ करदा इ नि छंवां तो जब पहाड़ी ही परेशान नि छंवां त त्वै तैं क्यांक दुःख , क्यांक परेशानी , क्यांक अबजाळ (दुविधा ) ?
दाळ -अरे भारत तैं दाळ आयात करण पोड़द त मि तैं बुरु नि लगण ?
मि -इखमा बुरु लगणो बात क्या च जब हम दिवाळि मनाणो वास्ता द्यू -दिया, लक्ष्मी माटो मूर्ति आयत करिक बि नि शर्मांदा तो दाळ इम्पोर्ट करण मा क्यांक शरम , क्यांक लाज , क्यांकि बेज्जती ?
दाळ -तुम हिन्दुस्तान्यूं तैं शरम ल्याज नी च पर हम दाळु तैं त इन्सल्ट फील हूंद कि इण्डिया दाळ इम्पोर्ट करदो।
मि -ह्यां पर इखमा उत्तराखंड का पहाड्यूं क्या दोष ?
दाळ -पता च ? उत्तराखण्ड का पहाड़ों माँ कथगा धरती बांज पड़ीं च ?
मि -हाँ , तकरीबन तीन चौथाई खेती लैक पुंगड़ -पटळ बांज पड़ीं छन।
दाळ -यदि पहाड़ी बांज पड़ीं धरती मा फसल उगावन तो ?
मि -भाषण दीण सौंग हूंद , बुलण सरल हूंद किंतु करण कठण हूंद।
दाळ -क्यांक कठण ?
मि -अरे गांऊं मा गूणी -बांदर , सुंगर छन तो फसल पात कनै करे जावो ?
दाळ -वै प्रवासी गढ़वाळी कैतै छै बेबकूफ बणानि ?
मि -क्या मतबल ?
दाळ -निकज्जा झूठ भौत बुल्दन। उड़द , गहथ , तोर, मसूर तैं गूणी बांदर नि खांदन अर सुंगरुँ कामै चीज दाळ नि हूंद।
मि -तो ?
दाळ -निकज्जा की सोच हुँचि हूंद। तो क्या तुम पहाड़ी यदि पहाडुं मा दाळ की खेती करिल्या तो भारत तैं दाळ आयात करणै जरूरत बि नि होलि धौं !
मि -ह्यां पर दाळ उगाणो वास्ता आदिमुँ जरूरत नि पड़दी ?
दाळ -निकज्जों तैं बहाना चयेंद। जब तुम रोड , कूड़ बणानो वास्ता मजदूर आयात कौर सकदां तो पंजाब जन खेती वास्ता मजदूर इम्पोर्ट नि कर सकदां क्या ?
मि -हाँ पर तीन चौथाई लोग तो प्रवासी छन इनमा खेती कनकै ह्वे सकदी ?
दाळ -निकज्जा हमेशा रचनाधर्मिता से भागद। सहकारिता से खेती नि ह्वे सकदी क्या ?
मि -कनकै ?
दाळ -निकज्जों मा नकारत्मक सोच की भरमार हूंद। प्रवासी अर पहाड़ वासी सहकारिता से मजदूर बुलावो अर दाळ कि खेती कारो।
मि -पर ?
दाळ -नकज्जा किंतु, परन्तु , इन नि ह्वे सकुद आदि का गुलाम हूंदन। सहकारिता से या जमीन लीज पर द्यावो अर पहाड़ों मा दाळ उगाओ।
मि -पर एक समस्या च।
दाळ -निकज्जो हमेशा समस्याओं बोझ उठैक चलणु रौंद अर समाधानो बड़ो दुसमन हूंद।
मि -देखो ! हमर इख एक बड़ी दुखदायी समस्या च। सूण त ले
दाळ - निकज्जा कहींका बोल !
मि -यदि प्रवासी पहाड़ वास्युं तैं क्वी सलाह मशबरा द्यावन तो पहाड़वासी बुल्दन बल अच्छा ! अब हम तैं मुंबईं -दिल्ली वाळ ज्ञान द्याल ?
दाळ -तो तुम प्रवासी पहाड़वास्युं की सूणो।
मि -यदि पहाड़वासी प्रवास्युं तैं राय द्यावन तो पता च प्रवासी क्या बुल्दन ?
दाळ -क्या ?
मि -प्रवासी बुल्दन बल अच्छा ! अब यूँ जयूँ -बित्युं आदिवास्युं बात सुणन हमन ?
दाळ -ठीक च। यदि तुम प्रवासी -वासी एक दुसर से सहकार नि करिल्या तो कुछ दिन बाद गढ़वाल गढ़वाल्युं नि रालो। गढ़वाल कै हौरुं ह्वे जाल !
Copyright@ Bhishma Kukreti 31 /10 /2014
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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