( अवतरण ग़sळी , डबरालस्यूं , पौड़ी गढ़वाल , १२नवम्बर १९१२ और निर्वाण दुग्गडा , पौड़ी गढ़वाल २४ नवम्बर १९९९)
डा पुष्कर नैथानी १२ नवम्बर उत्तराखंड के इतिहास का महत्त्व पूर्ण दी क्योंकि आज ही के दिन १९१२ में * इन्साएक्लोपीदिया -ऑफ़ उत्तराखंड * या * an institution ऑफ़ उत्तराखंड इन it सेल्फ ** उत्तराखंड के एक मात्र इतिहासविद , परम पूज्य ,प्रातः स्मरणीय आचार्य श्रेष्ठ परम गुरुदेव * डॉक्टर शिव प्रसाद डबराल का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था /
मूल नक्षत्र के जन्मे जातकों के सम्बन्ध में नानाविध भ्रांतियां समाज में है / लेकिन गुरु प्रवर का तो जन्म धनु लग्न में हुआ और लग्न का
नक्षत्र भी मूल था साथ ही चन्द्रमा का नक्षत्र भी मूल था
परा विद्वान विराट व्यक्तित्व के स्वामी मृदु और मधुर भाषी आचार्य डबराल शोध करते करते लिखते लिखते आज अपने आप में शोध और लेखन का विषय बन गए
वे बार कहा करते थे काम करो बस काम करो यदि काम करोगे तो ज़माना ढूँढेगा और यदि बना काम के यश मिला तो आस्थाए और मात्र तुम्हारे जीवन तक रहेगा तुम्हारे अंत के साथ ही वह चक्देती भी चली जायेगी जिसके कारण तुम्हे अस्थाई यश / मान सम्मान मिला जीवन में न जाने कितने सम्मानों पुरुष्कारों को ठुकारादेने वाले उस उदार व्यक्तित्व को आज स्मरण करने का नमन करने का दिन है उन्हें सम्मान देने का दिन है
हिन्दी भगोल के विदियार्थी भूगोल से पी एच डी और इतिहास लेखक ही नही वे एक परा तांत्रिक और ज्योतिष के पराकाष्टित विद्वान थे इस बातकी जान कारी विद्वत समाज में कम है की उन्होंने अपने मृत्यु की तिथी हमें ज्योतिष का ज्ञान देते देते निर्धारित कर दी थी
हमारे जीवन पर तो उनके जो उपकार हैं उसे बस हम स्मरण ही कर सकते हैं एक वाक्य में कहें तो एक अंगुली माल की चंद्रैनी कर दी ( चंद्रैनी गढवाली में शोधन या संस्कार या पुनः शुद्ध पवित्र करने को कहते हैं )
भाव विभोर स्वयं लिखने में असमर्थ बस कबीर के शब्दों में
सात समुन्दर मसि करूण लेखनी सब वन राय
धरापर्य्न्त कागद करू गुरु गुण लिखा न जाय
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