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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, December 3, 2013

उत्तराखंड में पर्यटन , आतिथ्य प्रबंधन का विकास व वृद्धि

Evolution and Growth of Tourism  Hospitality Management in Uttarakhand

           (   Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Haridwar series-5)

                                             उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 5 
                                                    लेखक : भीष्म कुकरेती                              
                                                 (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

 
 उत्तराखंड  आदि मानव संस्कृति  लेकर आज तक पर्यटकों को किसी ना किसी प्रकार इ आकर्षित किया है। 
पर्यटन विकास को हम निम्न कालखंडों में विभाजित कर सकते हैं 
१- आदि मानव काल से लौह युग तक में उत्तराखंड पर्यटन विकास 
२- वैदिक व महाभारत युग में उत्तराखंड पर्यटन विकास
३- चरक सुश्रुवा युग में उत्तराखंड में औषधीय अन्वेषण व व्यापारिक पर्यटन विकास
४-मौर्य काल में उत्तराखंड पर्यटन विकास
५-गुप्त काल में उत्तराखंड पर्यटन विकास
६- गुप्त काल के पश्चात उत्तराखंड पर्यटन विकास में परिवर्तन 
७- अंध युगीन पर्यटन 
८-ब्रिटिश काल में उत्तराखंड पर्यटन विकास
९- स्वतंत्रता पश्चात उत्तराखंड पर्यटन विकास
१०- उत्तराखंड राज्य बनने के पश्चात उत्तराखंड पर्यटन विकास

                आदि मानव काल से लौह युग तक में उत्तराखंड पर्यटन विकास
आदि मानव एक घुमंतू समाज था तो मानव यहाँ से तहां घूमता ही रहता था।  उस समय भी मानव हिमालय में विभिन्न ज्ञान प्राप्त करने पर्यटन परिभाषा के अनुसार उत्तराखंड में पर्यटन अवश्य करते थे।  धातु युग में भी वस्तु विनियम व स्थान अन्वेषण के कारण उत्तराखंड में पर्यटक आते रहते थे।
धार्मिक पर्यटन या रहस्यात्मक पर्यटन शुरू हो गया था।

                           वैदिक व महाभारत युग में उत्तराखंड पर्यटन विकास
वैदिक युग में वैदिक मानव उत्तराखंड में बसे आदि मानव को निष्काषित करने के लिए कटिबद्ध थे अत: वैदिक मानव निरीक्षण , जासूसी आदि के लिए उत्तराखंड भ्रमण पर आते रहे हैं। 
शकुंतला प्रकरण सिद्ध करता है कि उत्तराखंड में ऋषि -मुनि व राजा उत्तराखंड भ्रमण पर आते थे। 
रामायण काल में हनुमान द्वारा जड़ी बूटी लाने उत्तराखंड में आने का प्रकरण सिद्ध करता है कि उत्तराखंड उस समय औषधीय पेड़ पौधों के लिए प्रसिद्ध हो चुका था और औषधि अन्वेषी पर्यटक व व्यापारी पर्यटक उत्तराखंड में आने लगे थे। 
महाभारत काल में तो उत्तराखंड में पर्यटन विकास अपने परवान पर था।  नाना प्रकार के धार्मिक, औषधीय ,  वानष्पतिक, जैविक, कृषि उत्पाद , खनिज, गंगाजल    व अन्य भौतिक वस्तुएं उत्तराखंड से निर्यात  होतीं थीं व कई वस्तुएं आयात होती थीं। व्यापारिक लें दें से पर्यटन में विकास हुआ। 
महाभारत काल में धार्मिक पर्यटन ने बहुत  विकास किया।
                            मौर्य व गुप्त काल पर्यटन का सवर्णिम युग 
 मौर्य राजबंश की नीव एक कुमाऊं के खश  वंशधारी ने ही रखी थी जो द्योतक है कि उत्तराखंड में पर्यटन किस हद तक विकसित था। 
मौर्य काल में गोविषाण (आज का काशीपुर क्षेत्र ) व कालसी विश्व स्तर की मंडियां थीं और इन मंडियों से नाना प्रकार की वस्तुओं का विनियम होता था।  उत्तराखंड की कई वस्तुएं जैसे औषधि , सुरमा व जीव (घोड़े , चंवर गायें आदि ) आदि यूनान व रोम में भी प्रसिद्ध थीं।  जो यह सिद्ध करते हैं कि मौर्य व किसी हद तक गुप्त काल में उत्तराखंड में पर्यटन अपने चरम सीमा पर था।
वास्तु व धातु परिष्करण में निपुण कलाकारों व श्रमिकों की मांग मैदानो में खूब थी।
                        चरक सुश्रुवा युग में उत्तराखंड में औषधीय अन्वेषण व व्यापारिक पर्यटन विकास चरम सीमा पर हुआ।  कहते हैं चरक भी औषधीय अन्वेषण हेतु उत्तराखंड आये थे। 
कई विदेशी पर्यटक भी भारत आये।
                            अंध युग में पर्यटन 
अंध युग में पर्यटन अधिकाँशत: धार्मिक वा राजनायक पर्यटन तक सिमिट  गया . किन्तु पर्यटन ने वह  चरम स्थिति नही पायी जो मौर्य काल में थी।  व्यापार व कृषि में अन्वेषण रुकने से पर्यटन उद्यम पर धक्का लगा।  
पंवार व चंद राजाओं ने मैदानी सैनिकों की भर्ती करने से पर्यटन बढ़ा किन्तु आंतरिक तकनीक विकास में क्षरण से पर्यटन को उतना प्रश्रय नही मिला जितना मिलना चाहिए था। 
शंकराचार्य , माधवा चार्य , मेधाकर आदि  धार्मिक संतों के आने से धार्मिक पर्यटन बढ़ा। किन्तु यह पर्यटन उत्तराखंड के लोगों को वह धन -धान्य नही दे सका जो अन्य माध्यमों के विकसित होने से मिलता है। 
मुग़ल काल में पहाड़ी  राज्य भी युद्ध में लीन रहे तो पर्यटन राजनैतिक रूप में अधिक रहा।
         ब्रिटिश काल में पहाड़ यात्रा का प्रचलन 
ब्रिटिश अधिकारीयों ने मसूरी , नैनीताल , पौड़ी , लैंसडाउन जैसे कस्बों की स्थापना से उत्तराखंड पर्यटन को नया आयाम दिया। पर्यटन संगठित संस्थानों द्वारा संचालित होने की शुरुवात ब्रिटिश काल में हुयी। नैनीताल उत्तर प्रांत की उप राजधानी बनने से पहाड़ों को पर्यटन मिले।    पहाड़ों से नौकरी की खोज से भी पर्यटन में नया बदलाव आया। 
धार्मिक पर्यटन ही सबसे अधिक पर्यटक उत्तराखंड बुलाने में सक्षम रहा ,
                      स्वतंत्रता पश्चात उत्तराखंड पर्यटन विकास
स्वतंत्रता पश्चात उत्तराखंड पर्यटन विकास ब्रिटिश शाशन निर्मित माध्यमो पर ही निर्भर रहा और मंथर गति से चलता रहा। 1991 के पश्चात पर्यटन ने गति पकड़ी।

                उत्तराखंड राज्य बनने के पश्चात उत्तराखंड पर्यटन विकास 
यद्यपि उत्तराखंड राज्य बनने के पश्चात उत्तराखंड पर्यटन में विकासहुआ किन्तु उत्तराखंड राज्य जन आकांशाओं के अनुरूप पर्यटन उद्यम विकसित नही कर सका। 
पर्यटकों हेतु नये नये साधन उत्तराखंड में आये किन्तु आज भी आम जनता पर्यटन उद्यम को अपने से नही जोड़ पायी जिस तरह मौर्य काल में स्थिति थी। 
कुछ नये माध्यम या पर्यटन प्रोडक्ट या उत्पाद  अवश्य आये किन्तु पोटेंसियलिटी या सम्भानवनाओं के अनुसार पर्यटन उद्यम में उतना विकास नही हुआ जितना राज्य से आशाएं थीं। 
आज भी उत्तराखंड धार्मिक पर्यटन या उत्तराखंड के से पलायन कर चुके अपने प्रवासियों पर ही अधिक निर्भर है।

Copyright @ Bhishma Kukreti 3/12/2013

Contact ID bckukreti@gmail.com

Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Haridwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वारा , गढ़वाल 

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