गढ़वाली अनुवाद - भीष्म कुकरेती
[ आजकल योग की बहुत चर्चा है जो आवश्यक भी थी। किन्तु आम लोग योग को केवल आसन तक सीमित समझते हैं। जबकि योग एक जीवन शैली है। पातञ्जली ने योग संहिता में योग का सारा निचोड़ दिया है याने सूत्र दिए हैं। इन सूत्रों का नौवाड करते मुझे अति प्रसन्नता है। ]
तस्य वाचकः प्रणवः -२७
वैको (ईश्वरौ ) वोधक शब्द पणव (कुछ ॐ बुल्दन ) हूंद। कुछ टीकाकार प्रणव माँ अनादि संबंध बथौँदन।
तज्जपस्तदर्थभावनम् -२८
वै प्रणवो तप जप और अर्थभूत ईश्वरो चिंतन बार बार करण चयेंद
वै प्रणवो तप जप और अर्थभूत ईश्वरो चिंतन बार बार करण चयेंद
ततः प्रत्यक्चेतनाधिगमोअप्यंतरायाभा वश्च -२९
वे ईश्वर प्राणिनिधान से प्रत्यक चेतना ज्ञान हूंद अर बिघ्न बाधा बि दूर हूंद
वे ईश्वर प्राणिनिधान से प्रत्यक चेतना ज्ञान हूंद अर बिघ्न बाधा बि दूर हूंद
व्याधिस्त्यानसंशयप्रमादालस्या विरतिभ्रान्तिदर्शनालब्धभूमिकत् वानवस्थिततत्वनि चित्तविक्षेपास्तेअंतर्याः -३०
व्याधि , स्त्यान, संशय , प्रमाद , आलस्य /अळगस , अविरति/व्यसन , भ्रान्ति , अलब्ध -भूमिकत्व (अकेला बगैर सहयोग का ), अनवस्थित्व /भावुकटा यी चित्त (मन , वृद्धि , अहम ) का नौ विघ्न छन
दुःखदौरमनस्यांगमेजयत्वश्वासप् रश्वासा विक्षेपसहभुवः -३१
विक्षेपों दगड्या दगड दुःख , दौर्मनस्य/कमजोर आत्मशक्ति, अंगुन्क कमजोर /कम्पन , श्वास प्रश्वास बि पैदा हूंदन
तत्प्रतिषेधार्थमेकतत्वाभ्यासः -३२
ऊँ विघ्नं /विक्षेप अर उप विक्षेपुं तै एकतत्व का अभ्यास से समाप्त करे जयांद
मैत्रीकरुणामुदितोपक्षाणां सुखदुः खपुण्यापुण्यविषयाणां भावनातश्चित्तत्तप्रसादनम् -३३
सुखी , दुखी , पुण्यात्मा , और पापियों के विही में यथाक्रम मैत्री , करुणा , हर्ष और उपेक्षा अनिष्ठित करण चित्त प्रसन्न अर निर्मल हूंद ।
प्रछरदानविधारणाभ्यां वा प्राणस्य -३४
नासिका की कोठे मा आण -जाण वळी सांस ,रुकणो फिंकणो अभ्यास कारो
विषयवती व प्रवृतिरुपन्ना मनसः स्थितिनिबन्धनी -३५
विषयवती (गंध , रूप , रस , स्पर्श , शब्द ) प्रवृति मन तै आकर्षित करदी (चंचल बणान्दि )
विशोका वा ज्योतिष्मती -३६
अथवा शोकरहित , ज्योति वळी प्रवृति मन तै जगा पर स्थिर रखदी
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