डा. बलबीर सिंह रावत
मनुष्य ने अपने बुद्धि कौशल से प्रकृतिदत्त पदार्थों को हर मौसम में उपयोग करने के लिए, सुरक्षित रखने के लिए कई विधियां ढूढ़ निकालीं , इसलिए की उसे अपने भोजन के लिए आसानी से बेमौसमी वस्तुएं भी भे उपलभ होती रहें . ऊष्ण प्रदेशों में , जहाँ खाद्द्य सामग्रियों को साल भर के लिए सुरखित रखने के लिए आज कल के शीत भण्डार और घरेलू फ्रिज नहीं थे, तब पदार्थों को सुखा कर ही रखा जाता था. दालों से और उनके पीठे में साक- सब्जियों को मिला कर बड़ियाँ बनाना भी इसी श्रृंखला का सुखाया हुआ खाद्य पदार्थ है.जो सब्जी और फल , इस काम के लिए उपयुक्त पाए गए वे हैं, भुजेला (पेठा) और पिंडालू (अरबी ) के पत्तों के डंठल जिन्हें नाल कहते हैं और हरी मेथी। उड़द के साथ भुजेला और गहथ के साथ नाल तःथा मेथी का मेल खपता है। बड़ी बनाने के लिए साबुत दाल को भीगने के लिए रात भर रखना होता है। भीगी उड़द को छलनी में मसल कर उसके छिलके उतारने होते हैं, छलनी को पानी भरे गहरे बर्तन में डुबो कर जब छिलके तैर कर ऊपर आते हैं तो इन्हें हटा लिया जाता है. कुछ छिलके रह जाय तो कोइ हर्ज नहीं, गहत के छिलके नहीं उतारे जाते। इस भिगोई, साफ़ की गयी दाल को सिल में बारीक पीसा जाता है, जब तक वह महीन, एक रस न हो जाय. ध्यान रखना होता है की यह मसेटा जितना सख्त हो सके उतना रहे। अब इसे किसी परात में लेकर उसमें मसाले , जैसे भुना साबुत जीरा, काली मिर्च, पिसा धनिया, अदरख की सोंठ ,दालचीनी , मोटी इलायची के साबुत बीज और कोरा हुआ ( रेंदा किया हुआ ) भुजेले का गूदा। इन सब को मिला कर पूरे मसेटे को खूब फेंटा जाता है. फेटने से इसमें हवा के बुलबुले समाते हैं, और बड़ी सूखने पर भी फूली हुई रहती है। इसे सही तरह से पूरा फेंटने पर ही इसका ठीक से पकने का गुण निर्भर करता है। अब इस मिक्सचर के छोटे छोटे गोले, एक दुसरे से अलग किसी साफ़ कपडे के ऊपर, या साफ़ टिन की चादर के ऊपर,या मकानों की छत केसाफ़ से धुले पठालों के ऊपर डाले जातें हैं और तब सुखाने के लिए धूप में रखे जाते हैं। चूंकि भुजेले पहाड़ों में अक्टूबर में ही उपलब्ध होते हैं तो धुप में गर्मी कुछ कम हो जाती है, इलिए २-३ दिन में ही सूख पाते है। सूखने पर इन बड़ियों को किसी ढक्कन दार बड़े बर्तन में सुरक्षित रखा जाता है. गहथ की बड़ी में मसाले कम डाले जाते हैं और नाल के या हरी मेथी के छोटे छोटे टुकड़े कर के डालना ठीक रहता है।
उपरोक्त विधि, परचलित विधियों में से एक है, और केवल घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए बनायी गयी है . चूंकि कई मैदानी इलाकों में बड़ी बनाना और बेचना एक बहुप्रचलित कुटीर उद्द्योग है, तो उत्तराखंड में भी इस हुनर को संवार कर, जितना हो सके उतना इसका मशीनी करण करके, जैसे दाल पीसने के लिए, फेंटने के लिए, और एक आकार की गोलिया बनाने के लिए, और विधियों के परीक्षण, सुधार और मानकी करण करके,लिज्जत पापड स्तर का बड़ी उद्द्योग गाँव गाँव में शुरू किया जा सकता है.
बड़ी का साग -बड़ियों का केवल बड़ियों का साग भी बनाया जा सकता है तो अन्य भोज्य पदार्थों जैसे आलू, हरी सब्जियों के साथ मिलकर भी बड़ियों का साग बनाया जाता है।
बड़ी का साग -बड़ियों का केवल बड़ियों का साग भी बनाया जा सकता है तो अन्य भोज्य पदार्थों जैसे आलू, हरी सब्जियों के साथ मिलकर भी बड़ियों का साग बनाया जाता है।
आलू बड़ियों का साग
बड़ियाँ -आधा कप
आलू -मध्यम कटे दो आलू
टमाटर -दो टमाटर कटे हुए
तेल या घी - चार चमच
छौंके के लिए कुछ दाने जीरे, राय व जख्या
बारीक कटा प्याज, लहसुन , अदरक , हरा धनिया , एक कटी हरी मिर्च
मसाले - एक चमच धनिया पौडर, एक चमच लाल मिर्च पौडर, गर्म मसाला अपने स्वास्थ्य , अपने सहूलियत या स्वाद के हिसाब से। नमक स्वादानुसार
बड़ियों को कुछ देर भीगा दें और फिर उनका पानी निचोड़ दे
कढाई को आंच में चढ़ाएं , गर्म कडाही में तेल या घी गर्म करें फिर गर्म तेल में जख्या, राय और जीरा लाल होने तक भूने ,अब कटे प्याज , लहसुन और अदरक डालें और थोड़ा भुने , फिर बड़ियों को भूने, इसके बाद आलू डालें , कटे टमाटर व नमक सहित मसाले भी डालें और कुछ देर तक भूने,कटी हरी मिर्च भी डालें। भूनने के बाद पानी डालें और ढक क दें और पकने तक बर्नर पर रखें . जब साग पक जाय तो कटा हरा धनिया छिडक दें। गरमा गर्म परोसें
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