जसपुर (ढांगू ) में छमिया बुड्या लोक नाटक
गीत संकलन- श्रीमती दमयन्ती कुकरेती
प्रस्तुति ; भीष्म कुकरेती
जसपुर में भी अन्य गावों की तरह चैत महीने में रात को सामूहिक व सामुदायक गीत गाये जाते थे। गीत स्व सिचिदा नन्द कुकरेती, स्व राधा कृष्ण कुकरेती , स्व दयाराम कुकरेती व स्व घना नन्द कुकरेती के चौकों में खेले जाते थे. जो एक दुसरे से सटे थे . वैसे प्रथम रात को शुरवात या तो दयाराम बड़ा जी या घना ददा जी के चौक से होता था (घना ददा जी प्रधान थे ).
गीत गानों के अतिरिक्त केवल स्त्रियाँ या स्त्री पुरुष मिलकर स्वांग भी भरते थे (नाटक रचना ).
मुझे गीतों व लोक नाटक देखने का कम ही अवसर मिला क्योंकि मै कक्षा छ से छात्रावास में रहता था किन्तु जो भी याद आता है उसे आप लोगों तक प्न्हुचाता रहता हूँ
एक नाटक की मुझे याद था जिसे छमिया बुड्या कहते थे.
छमिया बुड्या का लोक नाटक अधिकतर गीतों के खेलने के अंत में ही खेला जाता था
इस नाटक में दो मुख्य चरित्र होते हैं एक छमिया बुड्या और एक जवान लडकी। छमिया बुड्या वास्तव में शायद जानवर का रूप होता रहा होगा। वह भयानक शक्ल का बुड्ढा होता था, भयानक पगड़ी पहनता था व इस बुड्ढे की एक विशेषता होती थी कि इसके सर पर दो बड़े सींग होते थे। यह नाटक रोमांच, हास्य, प्रकृति दर्शन , वियोग , त्रास व सामजिक विषय लिए होता था. सबसे अधिक दर्शक इसी लोक नाटक को देखते थे
कथा यह है कि एक लडकी के पिता ने रुपयों के एवज में अपनी पुत्री की शादी छमिया बुड्या से तय कर दी। तय समय पर छमिया आता है और लडकी को उठा कर ले जाना चाहता है इस पर लडकी अपने पिता को सुनाकर निम्न गीत गाते थी। लडकी गीत गाती जाती थी , छमिया लडकी उठाने का प्रयाश करता है, गाँव की औरतें उसे छमिया से बचाती रहती थीं, यह एक छीना झपटी का भी दृष्य पैदा करता था. अंत में छमिया लडकी को उठाने में कामयाब हो जाता है और उसे कंधे में उठाकर भाग जाता है स्त्रियाँ देखती रह जाती हैं . गमगीनी का माहौल बन जाता था
छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा बांदरौ कु जौलु त तिल्लु झाड़ी लालु,तिल्लु झाड़ी लालु,
छिछि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा भल्लु कु जौलु त मुंगरी तोड़ी लालु,
मुंगरी तोड़ी लालु छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा स्याळु कु जौलु त बाखरी मारि लालु , बाखरी मारि लालु छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा गूणि कु जौलु त म्याळा तोड़ी लालु ,म्याळा तोड़ी लालु छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छमिया का अभिनय अधिकतर श्रीमती स्व गयात्री देवी कुकरेती (पत्नी श्री श्री राम कुकरेती ) या श्रीमती स्व भड्वैइ कुकरेती (पत्नी श्री सचिदा नन्द कुकरेती )करती थीं
अभिनय में छमिया का नवजवान लडकी पर लालच भरी आँखें, लडकी को छीनने के लिए आतुरता व युक्तियाँ, अन्य औरतों को झांसा देना, औरतों का छमिया बुड्या द्वारा लडकी को छीनने की क्रिया विरुद्ध रणनीति अपनाना , छमिया बुड्या द्वारा लडकी को भगा ले जाने के पश्चात स्त्रियों का दुखी होना अलग अलग रंग के रस व भाव प्रदान करने में सफल हैं। गीत व नाटक सामयिक सामजिक बुराईयों की और ध्यान भी आकर्षित कराता है। इस नाटक को याद कर मैं कख उठता हूँ - नाट्य शास्त्र के रचयिता भरत की असली चेली तो मेरे गाँव की स्त्रियाँ थी जो नाटक में सभी रसों का प्रवाह करने में सक्षम थीं .
copyright@ Bhishma Kukreti 16/4/2013
गीत संकलन- श्रीमती दमयन्ती कुकरेती
प्रस्तुति ; भीष्म कुकरेती
जसपुर में भी अन्य गावों की तरह चैत महीने में रात को सामूहिक व सामुदायक गीत गाये जाते थे। गीत स्व सिचिदा नन्द कुकरेती, स्व राधा कृष्ण कुकरेती , स्व दयाराम कुकरेती व स्व घना नन्द कुकरेती के चौकों में खेले जाते थे. जो एक दुसरे से सटे थे . वैसे प्रथम रात को शुरवात या तो दयाराम बड़ा जी या घना ददा जी के चौक से होता था (घना ददा जी प्रधान थे ).
गीत गानों के अतिरिक्त केवल स्त्रियाँ या स्त्री पुरुष मिलकर स्वांग भी भरते थे (नाटक रचना ).
मुझे गीतों व लोक नाटक देखने का कम ही अवसर मिला क्योंकि मै कक्षा छ से छात्रावास में रहता था किन्तु जो भी याद आता है उसे आप लोगों तक प्न्हुचाता रहता हूँ
एक नाटक की मुझे याद था जिसे छमिया बुड्या कहते थे.
छमिया बुड्या का लोक नाटक अधिकतर गीतों के खेलने के अंत में ही खेला जाता था
इस नाटक में दो मुख्य चरित्र होते हैं एक छमिया बुड्या और एक जवान लडकी। छमिया बुड्या वास्तव में शायद जानवर का रूप होता रहा होगा। वह भयानक शक्ल का बुड्ढा होता था, भयानक पगड़ी पहनता था व इस बुड्ढे की एक विशेषता होती थी कि इसके सर पर दो बड़े सींग होते थे। यह नाटक रोमांच, हास्य, प्रकृति दर्शन , वियोग , त्रास व सामजिक विषय लिए होता था. सबसे अधिक दर्शक इसी लोक नाटक को देखते थे
कथा यह है कि एक लडकी के पिता ने रुपयों के एवज में अपनी पुत्री की शादी छमिया बुड्या से तय कर दी। तय समय पर छमिया आता है और लडकी को उठा कर ले जाना चाहता है इस पर लडकी अपने पिता को सुनाकर निम्न गीत गाते थी। लडकी गीत गाती जाती थी , छमिया लडकी उठाने का प्रयाश करता है, गाँव की औरतें उसे छमिया से बचाती रहती थीं, यह एक छीना झपटी का भी दृष्य पैदा करता था. अंत में छमिया लडकी को उठाने में कामयाब हो जाता है और उसे कंधे में उठाकर भाग जाता है स्त्रियाँ देखती रह जाती हैं . गमगीनी का माहौल बन जाता था
छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा बांदरौ कु जौलु त तिल्लु झाड़ी लालु,तिल्लु झाड़ी लालु,
छिछि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा भल्लु कु जौलु त मुंगरी तोड़ी लालु,
मुंगरी तोड़ी लालु छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा स्याळु कु जौलु त बाखरी मारि लालु , बाखरी मारि लालु छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा गूणि कु जौलु त म्याळा तोड़ी लालु ,म्याळा तोड़ी लालु छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छि बुबा छमिया कु नि जाणु ये
छमिया का अभिनय अधिकतर श्रीमती स्व गयात्री देवी कुकरेती (पत्नी श्री श्री राम कुकरेती ) या श्रीमती स्व भड्वैइ कुकरेती (पत्नी श्री सचिदा नन्द कुकरेती )करती थीं
अभिनय में छमिया का नवजवान लडकी पर लालच भरी आँखें, लडकी को छीनने के लिए आतुरता व युक्तियाँ, अन्य औरतों को झांसा देना, औरतों का छमिया बुड्या द्वारा लडकी को छीनने की क्रिया विरुद्ध रणनीति अपनाना , छमिया बुड्या द्वारा लडकी को भगा ले जाने के पश्चात स्त्रियों का दुखी होना अलग अलग रंग के रस व भाव प्रदान करने में सफल हैं। गीत व नाटक सामयिक सामजिक बुराईयों की और ध्यान भी आकर्षित कराता है। इस नाटक को याद कर मैं कख उठता हूँ - नाट्य शास्त्र के रचयिता भरत की असली चेली तो मेरे गाँव की स्त्रियाँ थी जो नाटक में सभी रसों का प्रवाह करने में सक्षम थीं .
copyright@ Bhishma Kukreti 16/4/2013
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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