डॉ नरेन्द्र गौनियाल
उन त पहाड़ मा कत्गै बानि का चखुला रैंदा होला,पण घुघूती की त बात ही कुछ हौरि च।पहाडे संस्कृति,सामाजिक अर पारिवारिक जीवन मा जतगा नजदीक घुघूती च,उतगा क्वी हौरि चखुलु नीं।थाड़ मा,डंडियल मा,उरख्यळ मा,पुंगडा मा,भ्यूंळ कि डाळी मा सबि जगा बिराज दीन्द।घुघूती की मयल्दु,मीठी, सुरीली घूर सब्यों को मन तै भलि लगद। द्यखण-दर्शन मा बि सुन्दर अर सीधी-सादी,साफ़ सुथरी घुघूती पहाड़ का लोकजीवन मा खूब रचीं बसीं च।पहाड़ मा घुघूती द्वी तरह कि हुन्दिन। एक छ्वटि सि रैन्द जैतै घर्या घुघूती ब्वल्दिन अर जु बड़ी सी हूंद वैतै देशी ब्वल्दिन।
भले ही उत्तराखंड को राज्य पक्षी को दर्जा घुघूती का बजाय मोनाल तै मिलि गे,पण भै मोनाल तै कतगा लोग जणदिन।उत्तराखंड का लोकजीवन मा जतगा रचीं बसीं घुघूती च,उतगा त क्वी चखुलु नि छ।बेशक मोनाल एक खूबसूरत अर लुप्तप्राय चखुलु च,पण राज्य पक्षी का रूप मा त घुघती की बराबरी क्वी नि कैरी सक्दो।उन त पहाड़ मा घिनुड़ा,सटुला,मुसफकुडा,काणा,करै ंया,तोता,मैना, कोयल वगैरा कत्गै चखुला रैन्दिन पण घुघूती सब्यों मा नंबर एक पर च।
ना बांस घुघूती चैत की,खुद लगीं च मा मैत की,,,अमे की डाई मा घुघूती न बांसा,,,ना बांस घुघूती घूर घूर,घुघूती घुरौण लैगे मेरा मैत की, वगैरा लोक गीत घुघूती की पहाडे लोकजीवन मा रमणा का गवाह छन। सुख-दुःख,प्रेम,संयोग,वियोग,वि रह हर अनुभूति का दगड़ घुघूती जुडीं च।दुध्याल़ा नौन्यालों तै बुथ्याणो गीत ..घुघूती बसुति ..तेरी ब्वै कख जईं च।लर धूणा कु।त्वै खुणि की क्य ल्याली ल्यालि।गुड माछी।मी तै बि देली।मराली,,,घुघूती बसुति ,,,,पहाड़ का घर घर मा गाये जांद।नई नई ब्योलि जब पुंगडा मा घास कटणो जांद अर भ्यूंळ पंया कि डाळी मा घुरदी घुघूती तै द्यखद त वींतई मैत कि याद ऐ जांद।वा इनु समझद कि घुघूती मेरो मैत बिटि रैबार लेकि अयीं।घुरदी घुघूती देखि दूर परदेश जयां पति कि खुद बि बढ़ी जांद।ये तरह से पहाड़ मा घुघूती ही लोक संकृति का दगड़ सबसे निकटता से जुडीं च।
डॉ नरेन्द्र गौनियाल narendragauniyal@gmail.com
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