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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, June 8, 2017

Chandi Prasad Bangwal : A varied subject Garhwali poet i

रचना --   चण्डी प्रसाद बंगवाल (जन्म 1961 , अदाली पत्रा0-सौडू.क्षेत्र-देवप्रयाग, टिहरी गढ़वाल )
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Poetry  by - Chandi Prasad  Bangwal -
Critical and Chronological History of Modern Garhwali (Asian) Poetry – 274 
-साहित्य इतिहास , इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती 
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नाम - चण्डी प्रसाद बंगवाल 
पिता का नाम - श्री नत्थी राम बंगवाल 
स्थाई पता-ग्राम-अदाली पत्रा0-सौडू.क्षेत्र-देवप्रयाग, टिहरी गढ़वाल . . 
शैक्षिक योग्यता - एम0ए0 बी0एड0 
कार्य - अध्यापन, (प्रवक्ता, रा0ई0का0डांगचौरा, टि0ग0) 
जन्मतिथि - 15 नवम्बर सन 1961 
साहित्यिक परिचय-बचपन से ही अपनी. गढसंस्कृति, साहित्य. व कला के प्रति प्रेम. व रुचि 1981से गढ़वाली. काब्य. रचनाओं का लेखन. कार्य प्रारंभ 1981से आकाशवाणी. नजीबाबाद द्वारा ग्राम जगत. व शैलवाणी कार्य क्रम में रचनाओं. का प्रसारण 1998से आकाशवाणी. पौड़ी से काब्य प्रसारण इस के अलावा डा0गजेन्द्र बटोही द्वारा प्रकाशित "डांडा-कांठां स्वर एवं उड घुघूती उड़" में रचनायें प्रकाशित साथ ही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी गढ़वाली काब्य रचनाएँ प्रकाशित, "धरति कु परांण" पुस्तक का प्रकाशन विचाराधीन। इसके अलावा उत्तराखंड की लोक संस्कृति एवं कला पर केन्द्रित शैलनट एवं उत्सव ग्रुप श्रीनगर द्वारा प्रस्तुत विभिन्न कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से प्रतिभाग। 
. . . . . .चण्डी प्रसाद बंगवाल.
. .  पता - डांग रोड, कीर्तिनगर.
. . . टिहरी गढ़वाल. 249161. . . . .

. . . . . *. मेरु गढदेश. *
. . . . .   ========
यूं ऊंचि डाड्युं मां हिंवांलि कांठ्युं मां। 
देबतौं कु देश मेरु प्यारु गढदेश।। 

*स्वर्ग बटीक पैलि जख गंगा आई। 
शिवजी की जटा मां जख वा समाई। 
ब्रह्माजी गैन जख शिव जी का 
पास 
शिवजी  रंदांन तै ऊंचा.  कैलाश।।
   युं ऊंचि डाड्युं-------

पंच बदरि जख पंच केदार.। 
तीर्थू मां तीर्थ. जख हरि हरिद्वार। 
हे देवभूमि तेरा पंच प्रयाग। 
मनख्युं. का पाप ध्वैक कैदा उद्धार
युं ऊंचि डाड्युं - --------

देबी भगवति जख नौ छन बैणीं। 
दैत्यों को. नाश कन ह्वैन जु दैंणीं
अष्ट भैरब जख नौ नारसिंग। 
जै जै घंडियाल देब जै कैलापीर। 
युं ऊंचि डाड्युं - - - ---

पावन पवित्रजख द्यबतौं का धाम
गंगोत्री यमुनोत्री. स्वर्ग. समान। 
हे देवभूमि. त्वैकैं शत-शत प्र णाम
भारत कि धरती. मां तेरि छ शान। 
युं ऊंचि डाड्युं मां -------
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निर्दयि परांण (गढ़वाली कविता )

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 क्वीत होलु अपणु , हे निर्दयि परांण 
त्वैन भि एक दिन , दुनिया से जाण।  
            कैकि  धौंस -फौस तु दिखौणि मीं पर 
            य जवानि सदानि नि रौण त्वै पर    
            कैकि चूगलि कैकि छ्वीं कैमां नि लांण  
             क्वीत होलु अपणु , हे निर्दयि परांण।  
सोचि जु अपणु त्वैन , वैन भि जाण 
समझि जु परायु त्वैन , तैन भि जाण 
अपणि अपणि किस्मत कु , जैन भि खाण 
क्वीत होलु अपणु , हे निर्दयि परांण। 
       रौंदा हंसदा दिन सदानि कैका नि रैन 
       जैन भि दुःख पायि होलु , तौंन हि सुख पैन 
      अपणा सुख मा कैकु दुःख , भूलि नि जाण 
      क्वीत होलु अपणु , हे निर्दयि परांण।   

(Ref-Ur Ghughti Ur 2005 ) 

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B.C.Kukreti 

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