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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, June 8, 2017

पयास पोखड़ा की गजलें

पैलि त गुराव जन तड़क तड़कै जंदि लोग |
फेरि कुछ ब्वाला त नड़क नड़कै जंदि लोग ||
प्याजै दाणि अर लूणा कि कंकरि का दगड़ि |
बोतिळि फर बोतळि खड़क खड़कै जंदि लोग ||
तैळ्या मैळ्या सार्यूं त दुबुलु अर जख्या जामलु |
सरकरि कूल थैं जब गड़क गड़कै जंदि लोग ||
द्वार-मोरु फर हमल कभि संगुळा नि लगाया |
अपणा मोर संगाड़ थैं चड़क चड़कै जंदि लोग ||
सबुथैं पता च ज्यूंदाळ मांगिकि कुछ भि नि हूंद |
पर चौबट्टम चौंळ-दाळ छड़क छड़कै जंदि लोग ||
बस एक हैरि-पिंगळि सि कखड़ि का बाना |
कुंग्ळि लगल्यूं थैं झड़क झड़कै जंदि लोग ||
सर्या जिंदगि जिकुड़ा का फिनका स्यळ्याणा रवां |
बिरणि दैन की झैळ मा थड़क थड़कै जंदि लोग ||
रुळ्यां चिर्यां रिस्तों थैं गठ्ंयाणा रवां सिलणा रवां |
लगा लगदै दियां धागौं थैं धड़क धड़कै जंदि लोग ||
तातु दूध हुईं छन अजकाल नौना कु ब्वै अर ज्वै |
रोज़-रोज़ सासू ब्वारी थैं भड़क भड़कै जंदि लोग ||
म्यारा रस्वड़ा की रस्वै आजतक कम नि पोड़ी |
पर खै पेकि जुठ्ठि थकुळि रड़क रड़कै जंदि लोग ||
म्यारा गांवा का गोर-बछुरु अब तिसळा हि रंदिन |
भ्वरेण से पैलि ढण्ड थैं सड़क सड़कै जंदि लोग ||
पाणि का दगड़ा अपणों पस्यौ भि चरणु रौं "पयाश" |
सैंति पळिं लगुल्युं की जैड़ि मड़क मड़कै जंदि लोग ||
@पयाश पोखड़ा |
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