चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट ::: भीष्म कुकरेती
-
मि सुबेर बिटेन स्याम तलक कथगा इ कविता पढ़ुद ,व्यंग्य पढ़दु या कथा बाँचदु अर हरेक बँचनेरू तैं अड़ान्द बल ये पाठक ! जा तू शहर की सुविधा छोड़ , जा छोड़ यीं शहरी तनाव की जिंदगी अर जा गाँव जा जख ना तो तनाव च ना ही प्रतिष्पर्धा , ना ही जळथमारी अर गांवुं मा त शांत जिंदगी च। जा उख जा शांत जिंदगी बिता। हरिश्चंद्र युग से हेमंत -मंगलेश डबराल युग तक हरेक हिंदी साहित्यकार एवं हर्षपुरी से लेकर धर्मेंद्र नेगी, आसीस सुन्द्रियाल जन गढ़वाली कवी -साहित्यकार हम तै गांवुं मा बसणो हिदायत दींदन।
पर जरा गांवुं मा जावो त सै शहरुं से बिंडी तनाव तो गांवुं मा च।
अब द्याखौ ना ! गढ़पुर गाँव मा भग्गु बाडाअ कूड़ उजड़ अर दिल्ली मुंबई मा बस्याँ भग्गु बाडाs नात्यूं तै पडीं नी च कि कूड़ आबाद हो या उजड्यूं तो सरा गाँव वळु मा मानसिक अर भौतिक तनाव पैदा ह्वे गे। एक साल बिटेन सरा गाँव तनाव ग्रस्त राइ अर हमर कवि -जगमोहन जयाड़ा , केशव डोबरियाल , सुदेश भट्ट, गीतेश नेगी आद्यूँ तै पता इ नि चौल कि गढ़गांव तनावग्रस्त च। इ सब गाँवों बड़ै की कविता रचणा छ्या। अर इथ्गा तनाव तो पकिस्तान -हिन्दुस्तान बॉर्डर पर बि नि छौ पर मजाल च यूँ कवियोंन ये तनाव पर मोबाइलौ की बोर्ड (पैल कलम हूंदी छै ) पर अंगुली धौर ह्वाऊ धौं।
भग्गु बाडाअ कूड़ उजड़दि सरा गाँव वळु खाणि -हगणि हर्चि गे छे। गाँव दिनचारी जगा निशाचारी ह्वे गे छौ। साल भर तक सरा गाँव रात बिज्ज्वा ह्वे गे थौ पर कुनस च जु जयाड़ा अर नेगी तै यु रतजग्गा गाँव दिखे हो। हरेक तै भग्गु बाडा कूड़ौ पठळ चयेणा था, पथरुं जरूरत छै अर सिंगार - बळिन्डूं आवश्यकता छै। दिन मा तो यु काम नि ह्वे सकुद छौ तो हरेक मौ रात हि भग्गु बाडाअ कूड़ौ सफै मा लगीं राइ।
अब जब कूड़ौ बेकार मलबा बच्युं च तो मूस -लुखंदरों मा डुण्डि कुर्याणो प्रतियोगिता चलणी रांद।
फिर प्रवास्यूं भ्यूंळ -खड़िक कु काटल पर गढ़पुर वास्यूं मा जु रोज जुद्ध चलणु रौंद ुख पर केशव डोबरियाल या धर्मेंद्र नेगी कु मोबाइलौ की बोर्ड किलै नि चलदी भै ?
जब बि गढ़पुर गाँव मा सोलर लाइट की स्कीम आंदि तो हरेक मौ अपण कुलदिबता ठौ मा पौंची जान्दि अर प्रार्थना करदी कि सोलर पोल हमर आस पास लग या नि लग पण हैंक ख्वाळो आस पास नि लगण चयेंद। पता नि हमर साहित्यकारों तै या जळथमारी किलै नि दिखेंदी ह्वेलि ? जयाड़ा जी ही जबाब देला सैत।
गढ़पुर का गाँव वळ इनि घोर प्रतिश्पर्धी , चिंताग्रस्त , कम्पीटीटिव जिंदगी जीणा छन अर हम साहित्यकार टाइप करणा छंवां बल गाँव मा शांति च। कख च शांति ? जरा बथावदि जी मै तै , ऊँ तै , सरा दुन्या तैं।
-
-
Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India , 6 /6/ 2017
Thanking You .
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments