Poem by Virendra Juyal
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Garhwali Poetry Collection series
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चुप क्या हूँ मि घडेक वो उदास समझणा रैं।
मिल जरा गिच्चु ख्वाल वो बकवास समझणा रैं।।
खाली हूणि देवभूमि थैं फैइलो मा वो विकास बताणा रैं।
बजट बंग्ला प्लोट वो अफ द्वि हथुंल हथ्याणा रैं।।
बिरणा मुल्क्यूं क नौं वो रजिस्टरों मा चढाणा रैं।
भितर वलुं क नौं मिटै की वो भैरक बणाणा रैं।।
हमल पांच बरस खुणि जो कुर्सी मा बैठली वो बडी शान चिताणा रैं।
कुर्सी का नशा मा वो अफ्थैं अगाश हमथैं भंया जताणा रैं।।
अपडा वादा भूलिक वो हमथैं अपड नौकर बताणा रैं।
कुर्सी क बान वो हमथैं भाषणों मा सुद्दि भरमाणा रैं।।
चुनौं क बगत वो हम पैथर गरुड सि रिटणा रैं।
आज हम्हर अरमानों थैई वो बुखु सि छिटणा रैं।।
हम हथ ज्वडै कना रौं वुंकु सदनि वो हथ हि हिलाणा रैं।
हम्हर आश का दिवडों थैई वो पाणील मुझ्याणा रैं।।
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