कविता -महेंद्र ध्यानी
Garhwali Poem by Mahendra Dhyani
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रूड़ि का घामन माटि छ जळणी
धर्ति म जगा जगा
पड़ि गेनि सैल
बटोया मनखी
पशु पंछी भी
तीसल तड़फणा
हवैगिन घै
सुबेर ब्यखुनी
द्वी दां न्हैकी
पीठम देखा
द्वी मुट मैल
पिपळा डाळि कि
छैल ब्वनी छ
मि बि च्हाणू छौं
मिलि जौ छैल ।
धर्ति म जगा जगा
पड़ि गेनि सैल
बटोया मनखी
पशु पंछी भी
तीसल तड़फणा
हवैगिन घै
सुबेर ब्यखुनी
द्वी दां न्हैकी
पीठम देखा
द्वी मुट मैल
पिपळा डाळि कि
छैल ब्वनी छ
मि बि च्हाणू छौं
मिलि जौ छैल ।
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