उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Thursday, June 8, 2017

मुखड़ि देखी, टुकड़ि छन होणी

Garhwali Poem by Dharmendra Negi 
-


मुखड़ि  देखी, टुकड़ि छन होणी
टुकड़ि  देखी,  मुखड़ि छन रोणी

क्वी बिचारु छुड़ि भात मचकाणूं
कैकुतैं  र् वटि  चुपड़ि छन होणी

खुम्ब,परसूळ,पळखुण्डा हर्चिनी
बूखा क बगैर बुखड़ि छन रोणी

हैंकै भकळौण मा बैरी बण्याँ छौ
डाळ्यूं भिटेकी कुलड़ि छन रोणी

घ्वर्रा भितर कुकरा छौला पणस्यूं
ट्वपि दे दे  की कुखड़ि छन रोणी

मनरेगा  को  बल काम  खुल्यूं छ 
सुदि गारा-माटै थुपड़ि छन होणी 

निरभै बुढ़ापा, बुडड़्यूं की कुदशा
पन्द्यरम बिचरी झुलड़ि छन धोणी

पदनौंs ज्यठुणु किराणू छ 'खुदेड़'
भै बांठौं मा वेकी पुंगड़ि छन होणी

सर्वाधिकार सुरक्षित -:

                    धर्मेन्द्र नेगी
             चुराणी , रिखणीखाळ
                  पौड़ी गढ़वाळ

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments