Garhwali Fiction by Famous Satirist Sunil Thaplyal Ghanjir
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वेकी आंखि उकाल ,उंदार , पौन पंछी , हैल पुंगड़ि , थ्वरड़ि बछुरी , भ्याल भौंकारू मा हि खुलिन । गंडेल सटगिग्या नौ छौ वेकु । उमर ई रै ह्वेली तेरा चौदा बरस । भस्स वूं पोड़ु , खिन्ना , सुरैं , पैंया ,किनगोड़ि हिंसर कांडों तैं हि सरी दुन्या मनदु छौ वो ।
कि एक दिन सुबादार साब गौं मा ऐनि । उंकू ब्वलंणु बच्यांणु , खांणु पैनणु व गिच्ची कु एक्सप्रैशन गौं मा सबसे अलग किस्मो व ध्यानार्कषण कु केंद्र छौ । गंडेल बिचरू त् अधा मनिख अधा जनावर हि छौ उबरि ।
जै दिन सुबादार साबै वापिसी छै वे दिन उंल गंडेल सटिगग्या का भरसक बरोबर थौला वेका कांधि मा धरी अर एक मील दूर मोटर सड़की तक वे थै बि ल्ही गेनी ... बल मी थै फट्यांणौ आ रै ... कौन से तिन यख दलीप कुमारो पार्ट ख्यलंणै । दलीप कुमारो नौ पैली दौ सूंणि छौ गंडेल न् । झंणि क्या च् धौं वो दलेप कुमार ... वेन अपंणा काचा मन का लाटा माखा उडैन।
जेमू बसै फ्रंट सीट कब्जांण से पैली सुबादार बोडा वेका हत मा वोजनदार एक रूप्यो गिलट धैर ग्या ... बल गंडेला क्याला खै ले हो ।
गिलट की गरमैश वे पाड़ि बांदर थै साफ मैसूस हूंणि छै ... खुटा असमान पौंछि गेन वेका । कीसा बि नि छयो वेकी कड़कड़ी मैलदार झुल्लीयूं मा । गंवा बड़ा नौनौ का डौरल वो सारी बाटा घौर कब पौंछि गे, वे तै पतै नि चलो । आजतलक त् फूला का पांच अर दस पैंसा हलका सिक्का हि लगदा छया वेका हत कबि कबार ... वो बि देवी मंदिरू मा भैर छिटग्यां ।
आज गिलट कु वजन वेका स्वींणौं कु वोजन बढांणु छौ । वेका शांत अबोध मन मा एक तूफान रिंगण बै ग्या । अब दिन रात गंडेल एक ही बात स्वचदु छौ कि इनमेसी का गिलट रूप्या कौं डाल्यूं मा लगदा होला ।
अर फिर एक दिन गंडेल सटिगग्या वीं हि जेमू बस मा कुचे क् पाड़ बटि सटिग ग्या जिद्दमारि क् जैमा सुबादार साब अलोप ह्वे छया द्वी बरस पैली ।
आज एक दशक बाद वे थै वीं डालि को एड्रेस त् मीलि ग्या ज्यां फर गिलट लगदिन पर ... वेकी गंवै धार नी छ् वे मा । गौं हर्च्यूं छ् वेकू ... अब वो छक्वे वीं घड़ी तै गाली दींणु रांद जैं घड़ी मा सुबादार साब गौं मा आया छया अर वेका कुंगला हतुमा वजनदार एक रूप्या धैर गे छया ।
!!!
सुनील थपल्याल घंजीर
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