Poem by Balbir Rana
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सैकिला द्वी पय्या
दगड़ रिंगण, दगड़ चलण
घिसण लग्यां बरोबर
एक अग्वाड़ी हैकू पिछवाड़ी
अर गिरस्त जोर से पेडल मनु
कम हवा मा भी धकम-पेल
सिंगरा-फिंगर दौड़णा
कब्बी स्यंटुलोंक कज्ये (झगड़)
आँखा तते की
कब्बी घुघुतों गोळा-गळी प्रेम
मुल्य-मुल्या हैंसी की
एक बिगैर हैक नि
हैकक बिगैर एक नि
पाळी बल्दें जोड़ी
बिस्वास पर बंध्यां
एक-दुसरक थैक
चाटी-चाटी मिटे देंद
सिंगन एक-हैकक खैजी कन्ये
भूखा लदोड़ी बी लम्पसार ह्वे
सुनिन्द स्ये जांद
ये आशा फर कि
भ्वोळ घ्वला पोथुलों तें
खूब ल्योला बटोरी की
अडिग ये खुणि
सुफल दाम्पत्य चरितर ब्वनु
दुन्यां त तैल्या-मेल्या कने रेंद।
@ बलबीर राणा "अडिग"
गढ़वाली ब्लॉग 'उदंकार' से
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