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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, June 22, 2017

"ढ्वलकी बिचरी"

Garhwali Poem by Sunil Bhatt
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ढ्वलकी बिचरी कीर्तनौं मा,
भजन गांदी, खैरी विपदा सुणादी।
पढै लिखैई बल अब छूटीगे,
एक सुपन्यु छौ मेरू, ऊ बी टूटीगे।
ब्वै बुबा बल म्यरा, दमौ अर ढोल,
अब बुढ्या ह्वैगेनी।
भै भौज डौंर अर थकुली, गरीब रै गेनी।
छ्वटी भुली हुड़की झिरक फिकरौं मा,
चड़क सूखीगे।
हंसदी ख्यल्दी मवासी छै हमारी,
झणी कैकु दाग लगीगे।
ब्वै बाबा, भै भौज भुली मेरी बेचरी
कै बेल्यौं बटैई, भूखा प्वटक्यौं बंधैई
भजन गाणा छन, द्यव्तौं मनाणा छन।
देखी हमरी या दशा,
औफार डीजे वीजे विलैती बाबू ,
गिच्चु चिड़ाणा छन,
ठठा बणाणा छन, दिल दुखाणा छन।
ढ्वलकी बिचरी खैरी लगौंदी, ढ्वलकी बिचरी।।
स्वरचित/**सुनील भट्ट**
17/06/17

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