गढ़वाली कविता -नवीन डिमरी 'बादल '
Garhwali Poetry Collection Series
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कुनस च तौं!
काकी-बड्यूं अर मां-बैण्यूं तैं
जु बिना दै-दगड्या का
दस-बारा लडक्वाली ह्वेनी
अर बाजी-बाजी बगत त्
निराट बौणम्
उड्यार-उड्यारूं पण
गोर-भैंस्यूं की जन चरूं ब्यैनी,
ततीम् भी बचीं रैनी।
कुनस च तौं!
काकी-बड्यूं अर मां-बैण्यूं तैं
जु सदनी बौण-घsर भारा मूडी च्यपाडी रैनी
तब भी जौन "हे ब्वेsss" नि कैनी।
कुनस च तौं!
काकी-बड्यूं अर मां-बैण्यूं तैं,
जु घास-लाखडौंक् बाना
भेल - पखाणू ढमणाणी रैनी
अर सौणी रैनी कचाक्यूं की पीडा मsर-मsरीक
तब भी कैन हस्पताल नि पौंछेनी।
कुनस च तौं!
काकी-बड्यूं अर मां - बैण्यूं तैं
जौंकी हाथ - खुट्यूं की बिंवै कभी नि मौली
झंगोरा का बुसान भी।
कुनस च तौं!
काकी-बड्यूं अर मां-बैण्यूं तैं
जु नांगै खुट्टौन
बौण-घsर, धार-गाड, तडतडा घाम,
ह्यूं-पाला अर कांडा- कांडौम डबड्याणी रैनी।
भीतरी-भीतर आंसू बगैनी
पण तब भी जौनअपणी खैरी कैमा नी लगैनी।
अर भैरी-भैर हैंसणी रैनी।
कुनस च तौं!
---------0--------
© नवीन डिमरी 'बादल'
काकी-बड्यूं अर मां-बैण्यूं तैं
जु बिना दै-दगड्या का
दस-बारा लडक्वाली ह्वेनी
अर बाजी-बाजी बगत त्
निराट बौणम्
उड्यार-उड्यारूं पण
गोर-भैंस्यूं की जन चरूं ब्यैनी,
ततीम् भी बचीं रैनी।
कुनस च तौं!
काकी-बड्यूं अर मां-बैण्यूं तैं
जु सदनी बौण-घsर भारा मूडी च्यपाडी रैनी
तब भी जौन "हे ब्वेsss" नि कैनी।
कुनस च तौं!
काकी-बड्यूं अर मां-बैण्यूं तैं,
जु घास-लाखडौंक् बाना
भेल - पखाणू ढमणाणी रैनी
अर सौणी रैनी कचाक्यूं की पीडा मsर-मsरीक
तब भी कैन हस्पताल नि पौंछेनी।
कुनस च तौं!
काकी-बड्यूं अर मां - बैण्यूं तैं
जौंकी हाथ - खुट्यूं की बिंवै कभी नि मौली
झंगोरा का बुसान भी।
कुनस च तौं!
काकी-बड्यूं अर मां-बैण्यूं तैं
जु नांगै खुट्टौन
बौण-घsर, धार-गाड, तडतडा घाम,
ह्यूं-पाला अर कांडा- कांडौम डबड्याणी रैनी।
भीतरी-भीतर आंसू बगैनी
पण तब भी जौनअपणी खैरी कैमा नी लगैनी।
अर भैरी-भैर हैंसणी रैनी।
कुनस च तौं!
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© नवीन डिमरी 'बादल'
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