उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Friday, June 9, 2017

सुपिणा मा गौं

Garhwali poem by Darshan Singh Rawat Pankhandai
-
ब्यालि राति म्यारु सुपिणा मा,
म्यारु गौं म्यारु मुलुक आई।
बल खुद लगणीं च दि, तु रूणू किलै छाई।। 

अरे इना सूणिदी, पैलि जरा चुप ह्वैदी।
मेरी बात पर जोर से गेड बांधि देदी।।

कैदन त्यारा दाजी परदाजी यख ऐंई।
जौंल कूड़ि फुंगडी अर घाटा बाटा सजैंई।।
पैलि त उ सिरफ चार मौं ऐंई,
आज तुम चौसठ ह्वैग्योऊ।
फुंगड्यूं का खंडका देखिदी,
भलु च भंडिसि उंद चलि ग्योऊ।।

यखी रैंदा त कनुक्वै हिटदा।
सैर्या गळ्या बाटा बिगाणां रैन्दा।।
अरै त्यारा ब्वै बाबुल इलैई त पढैई।
नौकरी कैर ब्वाल अब ज्वान ह्वैगेईं।।

वैदिन जांद तू कनु रूणु छाई।
समझ वैदिनी तिल गौं छोडि द्याई।।।

अपणा बाल बच्चों म खुश रैई।
कभि कभि मैमान सि आणु जाणु रैई।।
अपणि खुद मिटै अर मिथैं भि देखि जैई।
खुश छौं मी, तु अपुणु पराण ना झुरैई।।

अपणि बोलि भाषा संस्कार ना बिसरैई।
जख भि रैलु खुश रै,अपणि पछ्याण बणैई।।

सर्वाधिकार सुरक्षित @:-
दर्शनसिंह रावत "पडखंडाई"
दिनांक :-06/06/2016

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments