Poem by Balkrishna Dhyani
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अल्या डण्डा पल्या डण्डा
बिच कबि बग्दी जांदी छे न्यार अ
वख देखा अब सूना हुंयाँ
पड्युं अब अपडो गौं गोठ्यार
कन बिन्सरी सुबेर ऐई
अब की बारी ऐ मेरु पहाड़ा
१७ बरस ह्वैगे राज्य बणिक
पलायन परी अब बी चिंता बिचार अ
कख देखन हुमन भगी
अब रौला ,थौला वो गौला
कख ग्युं हुला मेरु ढूँगा गारों
मां हरयूं बलपन कु बौला
अल्या डण्डा पल्या डण्डा
बिच कबि जांदा छ टिपण हिंसोला
वख देखा अब सुखंण गलण लग्युं
काफल आरु औरृ कीनमोडा
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