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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, June 22, 2017

जय भैरव नाथ ठाकुर जी

Spiritual Garhwali Poem by Krishna Kumar Mamgain
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
 दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
दैंणूं ह्वै भैरौं मेरा मुंड मां राखी हाथ । 
शरणांगत तेरा छऊं तू ही माई-बाप ॥ 
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मेरू आधार तू मेरू दातार तू । 
मेरू संसार तू मेरू परिवार तू ॥ 
मेरू सत्कार तू मेरू उद्धार तू । 
मेरू सौकार तू मेरू हितकार तू ॥ 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
 दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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मेरू भरतार तू मींकु अवतार तू । 
मेरू करतार तू मीं लगै पार तू ॥ 
 मेरू आचार तू मेरू ब्योहार तू । 
दिलमां दीदार तू छै सहोदार तू ॥ 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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ध्यान कू कार तू मान कु सार तू । 
मनकु हंकार तू छै परोपकार तू ॥ 
घर कि पगार तू मेरू दीदार तू । 
मेरू सुखकार तू मेरू दुखहार तू ॥ 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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छै सलाकार तू छै मददगार तू । 
छै मेरा घार तू घर का बाहर तू ॥ 
सोच की सार तू पौंच से पार तू । 
दिल कु दरबार तू मेरू संसार तू .. 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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दिलमां साकार तू छै निरंकार तू । 
मनकि बयार तू भक्ति बौछार तू ॥ 
कष्ट उद्धार तू मेरि सरकार तू । 
मेरू दरबार तू दर कु दीदार तू ॥ 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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छै मनोहार तू हे जगत्कार तू । 
मींकु आकार तू मींकु साकार तू ॥ 
 मेरू दिलदार तू मेरू भरतार तू । 
जै नमस्कार तू नम कु आकार तू ॥ 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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सृष्ठि आकार तू शेष फुँकार तू । 
ओम कू सार तू ब्योम से पार तू ॥ 
बेदु उच्चार तू पूजौ आधार तू । 
मेरू ओंकार तू मेरू मोंकार तू ॥ 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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भक्ति कू सार तू मुक्ति दातार तू । 
सुखसंसार तू मन कु विहार तू ॥ 
मेरि मातार तू लड्लो प्यार तू । 
मुक्ति कू द्वार तू मेरू संसार तू ॥ 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
 .
ब्यालि यादगार तू आज की बहार तू । 
भोलै चमत्कार तू सगोर कि सार तू ॥ 
दिल का आरपार तू मेरू बंधनवार तू । 
मेरू सलाहकार तू छै सिपैसलार तू ॥ 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
 .
शंख की टंकार तू गीतकी झंकार तू । 
भजन की पुकार तू कीर्तन की सार तू ॥ 
धन से छै पार तू छै सदाचार तू । 
मेरू ब्यवहार तू मेरू माफिकार तू .. 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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संधि की लकार तू भाषा की पुकार तू । 
बेदू की बहार तू पूजा कू आहार तू ॥ 
मेरू दिलदार तू मेरू अलंकार तू । 
मेरू पालनहार तू जगकु जगत्कार तू ॥
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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दया कु अम्बार तू ब्वै बबू कु प्यार तू । 
दुखम खबरदार तू सुखम बफदार तू ॥ 
मेरू शिल्पकार तू मेरू संस्कार तू । 
मेरू चौकीदार तू मेरू ठेकादार तू ॥
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
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मेरू ब्यवहार तू मेरी पौ बहार तू ।
छै मेरू दिलदार तू मीकु चमत्कार तू ॥ 
 छै निर्बिकार तू मेरी मनसार तू । 
जै मेरा भैरौंजी ईष्ट साकार तू ॥ 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ । 
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भक्ति देनहार तू मुक्ती दातार तू ।
धैर्य की दीवार तू कष्ट निवार तू ॥ 
 पैलु हिस्सादार तू पैलु रिस्तादार तू । 
सारूं कू छै सार तू मेरा भैरौं प्यारु तू ॥ 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
दैंणूं ह्वै भैरौं मेरा मुंड मां राखी हाथ । 
शरणांगत तेरा छऊं तू ही माई-बाप ॥ 
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जय भैरव नाथ ठाकुर जी ।
जय दस जून ॥ 
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Of and By : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: {जै भैरव नाथ जी की }
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