Garhwali Poeties Dr Bhagvati Prasad Mishra
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डा भगवती मिश्रा की गढ़वाली कविताएं
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गुठ्यार गौड़ी बियांयी तता छुम भै तता छुम,
ओबरा लौड़ी कु हो ई तता छुम भै तता छुम,
पुंगडों खिर्रा खबड़ै ,तताछुम भै तता छुम,
सगोंड़ों गोदड़ लबक्या तता छुम भै तता छुम ।
नरेन्द्र भुल्ला नचण बैठी,तता छुम भै तता छुम।
भीष्म भैकी गौत झरकी तताछुम भै तता छुम।
ऐबेटी देबता ऐगी तताछुमभै तताछुम।
ऐ ब्बारीवधूपणू लैजा तताछुम भै तता छुम।
जि्दगी कु मजा देखा तताछुम भै तता छुम।
उत्तराखण्डी ढंडीनाच्या तता छुम भै तता छुम
नाच्याबिग्नी बिरैपाल तताछुम भैनतताछुम
तैलगोठ्या काल ऐगी तताछुम भैतताछुम।
खाडू कूलराट पोड़ी तताछुम भैतताछुम।
ज्यादा दिनक्वी नीचलदू तताछुम भैतताछुम।
धार माँ की देवी बोलनी तताछुम भै तताछुम।
भीष्म भैकाजोंखा मिमरै तता छुम भै तताछुम।
नेगी भुला गीत गबड़ै तता छुम भै तता छुम।
नया नौट मूसा खैग्या तताछुम भै तताछुम।
मेरी किस्सी का पैंसा खैग्या,तताछुम भै तता छुम।।
तता छुम भै तता छुम,
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भीष्म भैकी तता छुम।गुठ्यार गौड़ी बियांयी तता छुम भै तता छुम,
ओबरा लौड़ी कु हो ई तता छुम भै तता छुम,
पुंगडों खिर्रा खबड़ै ,तताछुम भै तता छुम,
सगोंड़ों गोदड़ लबक्या तता छुम भै तता छुम ।
नरेन्द्र भुल्ला नचण बैठी,तता छुम भै तता छुम।
भीष्म भैकी गौत झरकी तताछुम भै तता छुम।
ऐबेटी देबता ऐगी तताछुमभै तताछुम।
ऐ ब्बारीवधूपणू लैजा तताछुम भै तता छुम।
जि्दगी कु मजा देखा तताछुम भै तता छुम।
उत्तराखण्डी ढंडीनाच्या तता छुम भै तता छुम
नाच्याबिग्नी बिरैपाल तताछुम भैनतताछुम
तैलगोठ्या काल ऐगी तताछुम भैतताछुम।
खाडू कूलराट पोड़ी तताछुम भैतताछुम।
ज्यादा दिनक्वी नीचलदू तताछुम भैतताछुम।
धार माँ की देवी बोलनी तताछुम भै तताछुम।
भीष्म भैकाजोंखा मिमरै तता छुम भै तताछुम।
नेगी भुला गीत गबड़ै तता छुम भै तता छुम।
नया नौट मूसा खैग्या तताछुम भै तताछुम।
मेरी किस्सी का पैंसा खैग्या,तताछुम भै तता छुम।।
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शुद्ध पाणी।
Poem by Dr Bhagvati Mishra
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शुद्ध पाणीं पींण कु तरस गी गढवाल,
सूणां भयूं कुमायूं का छन इन्नी हाल।
छोयों कु शुद्ध पाणीं,धारों की वा छमोट,
सफाई की वा बयार हंसी कु लोट-- पोट।
गदन्यं की वा स्यूंस्याट,बोणु कुरगरयाट
पर्यावर्ण अशुद्ध ह्वैगी,ह्वैगी बुरो हाल।।शुदध,।।
गंगा की हरी घाट शांति कु निखार
मिलन कु मीठू प्यार, संगम कु वू श्रृंगार
हरयूं भरयूं रैंदू छौ, गाड गाड धार धार।
खाळ सब सूखी गैन गंदा ह्वैग्याताल,।।शुद्ध।।
हिमालय की स्वच्छ कांति ठंडी--ठंडी शांति शांति
चीड़की लम्बी पांति,बरात की याद लांदी,
पोथुलों कु फफराट सुख सी बतांदी,।प्रदूषण इथगा ह्वैगी
बणगी जी कू जाल।।शुद्ध,।।1998 की प्रकासित कविता।
तब उत्तराखणिड राज्य नहीं बना था।
शुद्ध पाणीं पींण कु तरस गी गढवाल,
सूणां भयूं कुमायूं का छन इन्नी हाल।
छोयों कु शुद्ध पाणीं,धारों की वा छमोट,
सफाई की वा बयार हंसी कु लोट-- पोट।
गदन्यं की वा स्यूंस्याट,बोणु कुरगरयाट
पर्यावर्ण अशुद्ध ह्वैगी,ह्वैगी बुरो हाल।।शुदध,।।
गंगा की हरी घाट शांति कु निखार
मिलन कु मीठू प्यार, संगम कु वू श्रृंगार
हरयूं भरयूं रैंदू छौ, गाड गाड धार धार।
खाळ सब सूखी गैन गंदा ह्वैग्याताल,।।शुद्ध।।
हिमालय की स्वच्छ कांति ठंडी--ठंडी शांति शांति
चीड़की लम्बी पांति,बरात की याद लांदी,
पोथुलों कु फफराट सुख सी बतांदी,।प्रदूषण इथगा ह्वैगी
बणगी जी कू जाल।।शुद्ध,।।1998 की प्रकासित कविता।
तब उत्तराखणिड राज्य नहीं बना था।
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Thanking You with regards
B.C.Kukreti
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