Sociopolitical Satirical Poem by Keshav Dobriyal ' Maithi'
हे रै वे विकासा तू पैली किले नि आयी,
अब आणु छै तू जब पाड़ खले ग्यायि।
छुचा तेरु नौ कु विस्वास करी,
झणी कतगा तैरि गिं धौं,
अपणी भितरी भोरी गिं धौं,
हे रै वे विकासा तू पैली किले नि आयी।
कनि अकल,शकल च तेरी,
जो क्वी नि खांदू खैरी,
तेरा नौं ले उंकी मुखडी चट्ट ह्वै जन्दी हैरी,
हे रै वे विकासा तू पैली किले नि आयी।
कभी दिखे भी जांदू,
लाटा हमर इनै भी आंदु,
तेरा नौ का माटु,ढुंगा मि भी चपांदु,
हे रै वे विकासा तू पैली किले नि आयी।
दगड़िया पैली गाली मनदा छायी,
डांड पार रौल धना खुणै,
आज जख भी दिखणु छौं,
जैमा भी सुणनु छौं,
बल विकास रौलों ही ह्वायी,
हे रै वे विकासा तू पैली किले नि आयी,
अब आणु छै तू जब पाड़ खले ग्यायि।
केशव डुबर्याल "मैती"
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